एक और ख़्वाब का अंत , ‘पढ़ो प्रदेश ‘ योजना बंद

Uttar Pradesh has the largest Muslim population in India. | Picture used for representational purposes

आकिल हुसैन। twocircles.net


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मौलाना आजाद फेलोशिप के बाद अब केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अल्पसंख्यक छात्रों की विदेशों में पढ़ने के लिए दी जाने वाली ‘पढ़ो प्रदेश’ योजना को बंद कर दिया है। मंत्रालय ने इंडियन बैंक एसोसिएशन के रास्ते इस योजना को बंद तो जरुर कर दिया, लेकिन इस योजना को बंद करने का कारण नहीं बताया। ‘पढ़ो योजना’ अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से चलाईं जा रही थी जिसमें विदेश में उच्च शिक्षा के लिए अल्पसंख्यक छात्रों को स्कॉलरशिप दी जाती थी।

2006 में कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों जैसे मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन,पारसी और ईसाई छात्रों के लिए ‘पढ़ो प्रदेश’ योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के अन्तर्गत बाहर विदेश में उच्च शिक्षा जैसे मास्टर डिग्री,पीएचडी और एमफिल डिग्री के लिए जाने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को एजुकेशन लोन पर लगने वाले ब्याज पर सब्सिडी दी जाती थी।

इस योजना का लाभ उन अल्पसंख्यक छात्रों को मिलता था जिनकी सालाना आय मात्र 6 लाख रुपए तक थी। इसके अलावा इस योजना में 35 प्रतिशत अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए रिजर्व थी। इस योजना के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले ग़रीब छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए आगे बढ़ने का हौसला मिलता था।

16 दिसंबर 2022 को इंडियन बैंक एसोसिएशन ने सभी बैंकों को एक नोटिस जारी की थी। नोटिस में कहा गया है कि वर्ष 2022-23 से ‘पढ़ो प्रदेश’ योजना के तहत दी जाने वालीं ब्याज सब्सिडी को बंद किया जाएं। नोटिस में आगे यह भी कहा गया है कि इस योजना के तहत 31 मार्च 2022 तक के लाभार्थियों को ब्याज पर सब्सिडी का फ़ायदा मिलता रहेगा।

इंडियन बैंक एसोसिएशन ने इस योजना को बंद जरूर कर दिया लेकिन उसने कोई कारण नहीं बताया है कि इस योजना को क्यों बंद किया गया है। हालांकि अभी तक अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से अभी तक इस योजना को बंद करने का आधिकारिक बयान नहीं आया है।

इससे पहले केन्द्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले पीएचडी छात्रों को दी जाने वाली मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को बंद कर दिया। सरकार ने मौलाना आजाद फेलोशिप को बंद करने का कारण यह बताया था कि यह फेलोशिप हायर एजुकेशन के लिए सरकार द्वारा लागू की गई विभिन्न अन्य फैलोशिप योजनाओं के साथ ओवरलैप कर रही है। हालांकि सरकार की ओर से इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी कि आखिर किस अन्य फैलोशिप योजना के साथ मौलाना आजाद फैलोशिप ओवरलैप कर रही थी।

अल्पसंख्यक मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में लगभग 20 करोड़ रुपए ‘पढ़ो प्रदेश’ योजना में लोन के ब्याज की सब्सीडी के तौर पर आवंटित हुए थे। मौलाना आजाद फैलोशिप के बाद अब बिना कारण बताए ‘पढ़ो प्रदेश’ योजना को बंद करना केंद्र सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है कि सरकार फेलोशिप नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों का विकास रोक रहीं हैं। इन स्कॉलरशिप के अलावा केंद्र सरकार ने कक्षा 1 से कक्षा 8 तक के छात्रों को मिलने वाली प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप को खत्म करके इसे केवल कक्षा-9 और 10 के लिए सीमित कर दिया है। सरकार के इस फैसले का असर अल्पसंख्यकों के अलावा पिछड़े और दलित वर्ग के बच्चों पर भी पड़ रहा है।

मौलाना आजाद फैलोशिप के बाद पढ़ो प्रदेश योजना को बंद करना उन अल्पसंख्यक छात्रों को उस उच्च शिक्षा के लाभ प्राप्त करने से वंचित करना है जिसे सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया था। अगर मौलाना आजाद फैलोशिप की बात करें तो 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से लेकर फेलोशिप बंद करने तक लगभग 6,700 अल्पसंख्यक छात्रों को फेलोशिप का फायदा मिला था। इनमें से अधिकतर छात्र वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के थे। सरकार का अल्पसंख्यकों से संबंधित स्कॉलरशिप को बंद करना कहीं न कहीं अल्पसंख्यकों को उच्च शिक्षा हासिल करने से रोकना है।

इस मामले में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव गौरव तुषिर TwoCircle.net से कहते हैं कि ‘पढ़ो प्रदेश’ स्कॉलरशिप 2006 में डाॅ मनमोहन सिंह की सरकार ने शुरू की थी क्योंकि वो खुद विदेश से पढ़े थे वह शिक्षा का महत्व जानते थे। इन स्कॉलरशिप की मदद से गरीब वंचितों को अपने बच्चों को उच्च शिक्षा तक ले जाने में में काफी मदद मिलती थी। लेकिन सरकार ने मौलाना आजाद फैलोशिप और पढ़ो प्रदेश स्कॉलरशिप पर रोक लगाकर यह साफ़ कर दिया है कि सरकार उच्च शिक्षा से अल्पसंख्यकों को वंचित रखना चाहती है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे मोहम्मद नजम TwoCircle.net से कहते हैं कि “उच्च शिक्षा में अल्पसंख्यकों की भागीदारी दलित और पिछड़े वर्ग से भी कम हैं। ऐसे में केंद्र सरकार ने जिस प्रकार मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप के बाद अल्पसंख्यकों को मिलने वाली “पढ़ो प्रदेश” फेलोशिप बंद की है, उससे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि सरकार अल्पसंख्यकों को आगे बढ़ाने की बिलकुल पक्ष में नहीं है बल्कि वह अल्पसंख्यक छात्रों को और पीछे खींचना चाहती है, भाजपा का नारा सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास सिर्फ एक ढोंग साबित हो रहा है।”

छात्र संगठन फ़्रेटरनिटी मूवमेंट के अध्यक्ष शमसीर इब्राहिम TwoCircle.net से कहते हैं कि मौजूदा सरकार सच्चर कमेटी की सिफारिशें के बाद अल्पसंख्यक के विकास और हितों के लिए लाईं गई योजनाओं को खत्म कर रहीं हैं। मौलाना आजाद फैलोशिप के बाद अब पढ़ो प्रदेश योजना बंद करने का असर अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम छात्रों की पढ़ाई पर पड़ेगा। फेलोशिप बंद करके सरकार मुस्लिम छात्रों को हशिए पर ढकेलना चाहतीं हैं। सरकार अल्पसंख्यकों की स्कॉलरशिप को बंद करके अपनी समाजिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने कि कोशिश कर रही है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शोधार्थी और पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष फैजुल हसन कहते हैं कि आरएसएस की नींव अल्पसंख्यक समुदायों और ख़ास करके मुसलमानों के खिलाफ़ पड़ी थी और 2014 के बाद से भाजपा सरकार लगातार मुसलमानों के खिलाफ़ या तो कानून पास कर रही है या तो उनके अधिकारों के खिलाफ तानाशाही रवय्या अपना रही है। न आर्थिक रूप से कमज़ोर मुसलमानों के बच्चों के लिए पिछली सरकारों ने फ़्री शिक्षा और फेलोशिप/स्कॉलरशिप की जो सुविधा दे रखी थी उसको भी बंद करके सीधा सीधा मैसेज दे रही है कि मुसलमानों की हैसियत कुछ भी नहीं है इस देश में। सरकार अपने किये गए वादे ” सबका साथ सबका विकास” को खुद तोड़ रही है।

एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक तरफ़ ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ की दिशा में काम करने का दावा करते हैं, उनकी सरकार समाजिक न्याय और बराबर की हिस्सेदारी की बात करती हैं। वहीं दूसरी तरफ उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के हितों के लिए चलाईं जा रही योजनाओं को बंद करके अल्पसंख्यक को हशिए पर ढकेलना की कोशिश कर रही है। आखिर में सवाल उठता है कि क्या अल्पसंख्यकों को उनकी शिक्षा से वंचित करके भारत विश्व गुरु बन पाएगा?

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