देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक नीट का रिजल्ट पिछले हफ्ते घोषित कर दिया गया है। हाफ़िज़ अब्दुल रहीम ने नीट परीक्षा में 700 अंकों में से 670 की बदौलत, ऑल इंडिया रैंक 2,702 हासिल की है। महज 12 साल की उम्र में हाफ़िज़ बनकर परिवार में उम्मीद की लौ जगाने वाले हाफ़िज़ अब्दुल रहीम की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरक है। पढ़िए पूरी कहानी…
मोहम्मद ज़मीर हसन । twocircles.net
हाफ़िज़ अब्दुल रहीम हैदराबाद भवानी नगर पुलिस स्टेशन, तालाब कट्टे के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई उर्दू मीडियम से की। फिर 12 साल की उम्र में कुरान की पढ़ाई पूरी की। अब्दुल रहीम बचपन से ही तेज़ दिमाग के थें। इसलिए उनके माता-पिता ने उन्हें दीनी (धार्मिक) शिक्षा के लिए सबसे पहले एमएस एजुकेशन सेंटर में प्रवेश करवाया। दो साल में हाफ़िज़ कुरान बनने के बाद हाफ़िज़ अब्दुल रहीम के परिवार वालों को यकीन हो गया कि यह मेडिकल साइंस में बेहतर कर सकता है। इसके बाद, हाफ़िज़ अब्दुल रहीम ने एक अंग्रेजी माध्यम के छात्र के रूप में अपना करियर शुरू किया। हाफ़िज़ अब्दुल रहीम का कहना है कि हर मदरसा पृष्ठभूमि के छात्रों को अंग्रेजी शिक्षा मिलनी चाहिए। डॉ, इंजीनियरिंग नहीं तो कम से कम बीएसी, बीए और अन्य स्किल कोर्स में एडमिशन लें। मदरसे की पृष्ठभूमि से होना अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने में लाभदायक है।
हाफ़िज़ अब्दुल रहीम ने टू सर्किल से कहा, “लोगों के मन में यह शंका है कि मदरसे से आने वाले बच्चे अंग्रेजी या साइंस की तालीम में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकते। ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि नीट की तैयारी में, हाफ़िज़ कुरान होने से मुझे बहुत फायदा हुआ। मैं चीजों को बहुत जल्दी याद कर लेता था। फिर मैंने कॉन्सेप्ट क्लियर रखने की कोशिश की। ताकि मुझे ज़्यादा दबाव महसूस न हो। लेकिन इन सब में कोचिंग की मदद से लक्ष्य हासिल करना आसान हो गया, हम कोचिंग में बैच के दूसरे बच्चों से प्रतिस्पर्धा करते थे। और फिर शिक्षकों की मदद से अपने कमज़ोर विषयों पर काम करते थे।
एमएस जूनियर कॉलेज के निदेशक (डॉ. गौस) ने टू सर्किल से बातचीत करते हुए कहा, ”यह बच्चा अन्य बच्चों के लिए एक आदर्श है। इस बच्चे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उर्दू माध्यम के बच्चे अंग्रेजी और मेडिकल शिक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। उर्दू माध्यम छात्रों को शुरुआत में केवल दो-तीन महीने ही मेडिकल की पढ़ाई में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस अवधि को पूरा करने के बाद उन्हें भविष्य में काफी फायदा मिलता है। खासकर नीट परीक्षा में। मेडिकल की पढ़ाई में याददाश्त की बहुत बड़ी भूमिका होती है। और जो बच्चे हिफ्ज़ होते हैं उनकी याददाश्त बेहतर होती है अन्य बच्चों की तुलना में।”
डॉ. गौस ने प्रशंसा करते हुए कहा, “हाफ़िज़ अब्दुल रहीम तेज़ होने के साथ। वह समय के बहुत पाबंद थे। उनकी हर कक्षा में सौ प्रतिशत उपस्थिति थी। इसके अलावा, उन्होंने एक भी साप्ताहिक परीक्षा नहीं छोड़ी। जिससे उन्हें नीट की तैयारी में बहुत फायदा हुआ। इस सफलता में उनके माता-पिता ने भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं उन्हें बधाई देता हूं।”
हाफ़िज़ अब्दुल रहीम ने ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा, “नीट जैसी परीक्षा में सफल होने के लिए परिवार के सदस्यों का समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है। घर का काम अक्सर मेरे अन्य भाई-बहनों को दिया जाता था ताकि मैं पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकूँ।” हालांकि, मेरी पढ़ाई का कोई निश्चित समय नहीं था। सप्ताह में एक टेस्ट और हर दिन एक मॉडल पेपर सॉल्व करता था। इससे मुझे अपनी तैयारी का अंदाज़ा लगता था। मनोरंजन के लिए टीवी, और कभी-कभी पबजी गेम भी खेला, इस दौरान माता-पिता का भरपूर सहयोग मिला।
अब्दुल रहीम के पिता ने टू सर्किल से बातचीत करते हुए कहा, “हाफिज अब्दुल रहीम बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे थे। इसलिए हमने सोचा कि पहले हम इसे उर्दू -अरबी माध्यम की शिक्षा देंगे और फिर इसे डॉक्टर की पढ़ाई के लिए तैयार करेंगे। अल्लाह का शुक्र है, बच्चे की कड़ी मेहनत के कारण सफलता मिली है।” हमारा उद्देश्य है कि बच्चे डॉक्टर बनें ताकि गरीबों के काम आ सकें। हम अक्सर देखते हैं कि कई लोग पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पाते हैं। अगर हाफिज अब्दुल रहीम डॉक्टर बनें तो मैं सलाह दूंगा उन्हें मुफ्त इलाज जैसी सुविधाएं शुरू करने के लिए।
न्यूरोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल कर गरीबों का मुफ्त इलाज करेंगे
रहीम न्यूरोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं। न्यूरॉन्स मानव शरीर का सबसे जटिल हिस्सा हैं। इसका अध्ययन अन्य मेडिकल अध्ययनों की तुलना में थोड़ा कठिन है। इसलिए अब्दुल रहीम इसका अध्ययन करना चाहते हैं। अब्दुल रहीम की मानें तो उनका मन आसान पढ़ाई में नहीं लगता है। इसलिए वे कठिन पढ़ाई करने की कोशिश करते हैं। अब्दुल रहीम आगे की पढ़ाई हैदराबाद स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज से करना चाहते हैं। उनकी इच्छा प्रदेश में रहकर पढ़ाई करने की है। ताकि राज्य की जनता की समस्याओं से अवगत हो सके।
अब्दुल रहीम ने आगे चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “पुराने शहर (हैदराबाद) में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। जिसके कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मैं डॉक्टर बनने के बाद अपनी नौकरी सुरक्षित रखूंगा। और आम लोगों के लिए मुफ्त इलाज जैसी सुविधाएं शुरू करूंगा।”