टीएसएआरआई के पास शाहजहाँ और औरंगज़ेब के समय के मुगल–युग के दस्तावेजों का सबसे बड़ा संग्रह मौजूद है। इन दस्तावेजों की मरम्मत के साथ–साथ इनका डिजिटलीकरण भी किया जा रहा है। इससे लोगों को देश के इतिहास से जुड़े अनछुए पहलुओं को जानने में मदद मिलेगी। अब तक 80 हजार दस्तावेजों को संरक्षित किया जा चुका है। पढ़िए खास रिपोर्ट…
मोहम्मद ज़मीर हसन|twocircles.net
हाल ही में एनसीईआरटी ने अपने पाठ्यक्रम से मुगल काल से जुड़े तमाम अंशों को हटा दिया है। ऐसे समय में तेलंगाना स्टेट आर्काइव्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीएसएआरआई) द्वारा मुगल काल से जुड़े दस्तावेज को सुरक्षित रखने के लिए एक बड़ा प्रयास किया जा रहा है। ताकि आने वाली पीढ़ियों तक सही इतिहास पहुंच सके। टीएसएआरआई नूर इंटरनेशनल माइक्रो सेंटर के सहयोग से हैदराबाद दक्कन, निज़ाम और मुगलिया सल्तनत काल की उर्दू, फारसी भाषाओं में लिखे गए दस्तावेजों की मरम्मत कर रहा है। साथ ही, इन दस्तावेजों का डिजिटलीकरण भी किया जा रहा है। इन सभी दस्तावेजों को वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। दुनिया भर के शोधकर्ता आसानी से इन दस्तावेजों तक पहुंच सकते हैं। टीएसएआरआई और नूर इंटरनेशनल माइक्रोफिल्म सेंटर का दावा है कि हम हर्बल उपायों की मदद से इन दस्तावेजों को 200 साल तक सुरक्षित रख सकते हैं।इसके लिए तेलंगाना सरकार ने 1 करोड़ रुपए की सहायता राशि प्रदान की है।
टीएसएआरआई के पास सबसे पुराने फरमानों में से एक फरमान फिरोज शाह बहमनी का फरमान मौजूद है। यह फरमान फिरोज शाह बहमनी द्वारा 14 मई 1406 को कर्नाटक के कल्याणाबाद (बसवकल्याण) शहर में मौलाना मुहम्मद काजी को जमीन देने के संबंध में लिखा गया था। फारसी भाषा में हस्तलिखित यह दस्तावेज देश में उपलब्ध सबसे पुराने फारसी दस्तावेजों में से एक है। टीएसएआरआई के पास लगभग 44 मिलियन अभिलेखीय सामग्रियों का समृद्ध भंडार है, जिनमें से 80 प्रतिशत से अधिक शास्त्रीय फ़ारसी और उर्दू भाषाओं में हैं। टीएसएआरआई वर्तमान में 33 मिलियन ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेजों और पांडुलिपियों को भावी पीढ़ी के लिए डिजिटाइज़ कर रहा है। फारसी और उर्दू तत्कालीन हैदराबाद दक्कन की दो आधिकारिक भाषाएँ थीं। बहमनी शासकों के समय से, जो बाद में दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए और दक्कन का पहला मुस्लिम राजवंश बना।
टीएसएआरआई के पास शाहजहां और औरंगजेब के अधीन मुगल काल से लेकर आसफ जाही-काल तक के दस्तावेज उपलब्ध हैं। दक्कन पर निज़ामों ने अगले 224 वर्षों तक शासन किया जब तक कि अंग्रेजों के चंगुल से भारत आजाद नहीं हो गया। इस दौरान के तमाम अधिकारिक दस्तावेज मौजूद है।
आने वाली पीढ़ियों को सही इतिहास से जोड़ना हमारी जिम्मेदारी
टीएसएआरआई की निदेशक डॉ ज़रीना परवीन ने टू सर्कल को बताया कि हमारे पास जो रिकॉर्ड हैं उनमें आधिकारिक संधियां, भूमि रिकॉर्ड, राजस्व और वित्त विभाग के रिकॉर्ड, सर्वेक्षण दस्तावेज और नक्शे, अदालती आदेश आदि शामिल हैं। हम इन सभी चीजों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित कर रहे हैं। हमारा प्रयास है कि इन सभी दस्तावेज़ों में सांस्कृतिक दृष्टिकोण, सामाजिक परिवेश, गंगा जमुनी तहजीब और वित्तीय स्थिति दक्कन, निजाम, मुगल और औरंगजेब के समय में कैसी थी। वह आगे खुशी जाहिर करते हुए कहती हैं, “हमने लगभग 80 हजार दस्तावेजों को संरक्षित कर लिया है और इसे डिजिटाइज कर रहे हैं। ”
हर्बल नुस्खों का प्रयोग कर इन दस्तावेजों को 200 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है
टीएसएआरआई की पहली मंजिल पर एक कोने के हॉल में, संरक्षण और डिजिटलीकरण विशेषज्ञों की एक टीम सप्ताह में छह दिन सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक काम करती है। उनका काम पुराने दस्तावेजों के मूल्यांकन से शुरू होता है। यदि कोई दस्तावेज़ अच्छी स्थिति में हैं, तो वे डिजिटलीकरण के साथ आगे बढ़ते हैं। यदि क्षति मामूली है, तो उसे मजबूत बनाने के लिए कागज की एक अतिरिक्त परत चिपकाई जाती है और फिर डिजिटलीकरण के लिए बढ़ाया जाता है। असली काम तब शुरू होता है जब कागज बहुत खराब स्थिति में होता है या दीमक ने नुकसान पहुंचाया होता है। हर्बल नुस्खों का इस्तेमाल कर इन दस्तावेजों की सुरक्षा की जा रही है। हर्बल रेसिपी एक ऐसी विधि है जिसमें नीम, शकरकंद, मकई के बीज और बहुत कुछ मिलाकर हर्बल गोंद तैयार किया जाता है। मौके पर मौजूद कलाकार ने बताया कि हर्बल गोंद तैयार करने के बाद वे तीन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर किसी भी दस्तावेज को ठीक करते हैं। सबसे पहले दस्तावेज को तीन परत वाले प्लास्टिक पर रखा जाता है, उसके बाद उस पर हर्बल गोंद लगाकर पूरे दस्तावेज पर रगड़ा जाता है। तीसरे चरण में एक सफेद रंग का शिफॉन कपड़ा जो बिल्कुल कागज जैसा होता है, उस पर रखकर सुखाया जाता है। फिर इसी तरह पूरे पृष्ठ को एक पुस्तक के रूप में तैयार किया जाता है। एक बार किसी दस्तावेज़ पर हर्बल गोंद का प्रयोग करने के बाद उसकी आयु लगभग दो सौ वर्षों तक बढ़ जाती है।
एनआईएमसी के क्षेत्रीय निदेशक निरूमंद के अनुसार, हमारी उपचार प्रक्रिया अद्वितीय और विशिष्ट है क्योंकि इसमें हर्बल गोंद, हस्तनिर्मित कागज, शिफॉन कपड़ा और विशेष कीट-और-दीमक प्रतिरोधी बक्से का उपयोग किया जाता है।
दक्कन के इतिहास को संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है
टू सर्किल से बात करते हुए तेलंगाना स्टेट आर्काइव्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के उप निदेशक महेश ने कहा, “इतिहास को संरक्षित करना हम सभी की जिम्मेदारी है। खासकर दक्कन के इतिहास को लोगों तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है। दक्कन का इतिहास भव्य और विशाल रहा है। यहां निज़ाम की सत्ता दो सौ साल से भी ज़्यादा समय तक रही है।इस दौरान दक्कन में जो गंगा-जमुनी तहजीब और संस्कृति थी, उसे आम लोगों तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है। और हम इसमें कामयाब हो रहे हैं।अगले एक साल में लगभग 70 प्रतिशत दस्तावेजों को हम सुरक्षित कर लेंगे। ”