अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net,
मैं तीसरी बार फिर से मेवात के तावड़ू क़स्बे में हूं. समाज को जला देने वाली दो घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए तावड़ू पहले भी आ चुका हूं. पहली घटना दंगे की आग में मेवात की सामाजिक सौहार्द्र को जलाने की थी. एक डंपर की चपेट में आकर एक बाइक सवार की मौत के कारण पूरा मेवात जला भी था. कर्फ्यू में रिपोर्टिंग करने का यह मेरा पहला अनुभव था.
दूसरी घटना हाल के दिनों में ईद के मौक़े से एक प्राईवेट स्कूल में कथित तौर पर बच्चों को नमाज़ पढ़ाने को लेकर थी. इस घटना में हमने स्पष्ट तौर पर सुना था, ‘हमें सेकूलर स्कूलों की ज़रूरत नहीं है. यह इलाक़ा काफी संवेदनशील है, क्योंकि हिन्दू यहां अल्पसंख्यक हैं.’ न जाने ऐसी कई बातें खुलकर इस कवरेज़ में सामने आई थीं. सच पूछे तो तावड़ू की इस छोटी घटना ने पूरे मेवात के अंदर आपसी भाईचारे के मायने ही बदल दिए थे.
और अब ये रात के अंधेरे में गौरक्षकों द्वारा दो लोगों की हत्या, एक नाबालिग़ समेत दो के साथ गैंगरेप और लूट की तीसरी घटना, जो इस मेवात के इतिहास में शायद पहली बार हो रही है, ने वाक़ई सबके ज़ेहन को अंदर तक झकझोर कर रख दिया है.
पहले की दोनों घटनाओं में हमने पाया था कि फ़िरक़ापरस्त ताक़तों ने समाज को तोड़ने की पुरज़ोर कोशिश की थी. लोगों के दिलों को बांटने और एकजुट न होने देने की तमाम साज़िशें की थी.
और अब यह तीसरी घटना भी मेवात के लोगों के दिलों में पहले से पल रहे नफ़रत को और गहरा करने की साज़िश के तहत ही थी. यहां के लोगों की मानें तो इस वारदात को अंजाम देने वाले न सिर्फ़ शराबी थे, बल्कि उन्होंने अपने ऊपर गौरक्षक होने का चोला भी ओढ़ रखा था.
मेवात के लोग बताते हैं कि जिस घिनौने तरीक़े से इस घटना को अंजाम दिया गया है वह अपराधियों के दिलों में पल रही नफ़रत को साफ़ तौर पर ज़ाहिर करता है. लोगों का आरोप है कि जब पीड़ित लड़कियां पानी मांग रही थी, तो दरिंदों ने पेशाब पिलाने की कोशिश की. लोगों के मुताबिक़ उस रात कमरे में एक लड़की का दो साल का बच्चा भी था. जब वह लड़की किसी तरह से खुद को इन गुंडों से छुड़ाकर भागने लगी तो उन्होंने उस बच्चे को उल्टा टांगकर गला काट देने की धमकी दी, अपने बच्चे के ख़ातिर उस लड़की को मजबूरन वापिस आना पड़ा.
यहां के लोग कहते हैं कि ज़रा सोचिए कि अगर उन दरिंदों का इरादा लूट का होता तो विरोध करने वालों के साथ मारपीट करते, माल लूटते और भाग जाते. हो सकता था कि इस मारपीट में किसी को गंभीर चोट भी लगती और किसी की मौत भी हो जाती. अगर उनका इरादा बलात्कार का होता तब भी अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके बलात्कार करते और भाग जाते. अगर इरादा हत्या का होता तो हत्या करते और भाग जाते. लेकिन उन्होंने सबको पहले गंभीर रूप से घायल किया. घायलों के हाथ-पैर बांधे. फिर घायल बंधकों के सामने ही दोनों लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इसके बाद लूटपाट की. घायल बंधको को इतना मारा किया दो की मौत हो गई, हालांकि वो अपने हिसाब से सबको मार चुके थे. वह तो बाक़ी लोगों ने अपनी सांस रोककर जान बचाई. आख़िर यह कैसी मानसिकता थी, जिसने इंसानियत ही नहीं, बल्कि दरिंदगी की सभी हदें पार कर दी?
यहां के लोगों की मानें तो इस वारदात को जिस तरह से अंजाम दिया गया, उसे लूटपाट की घटना हरगिज़ नहीं कहा सकता. यह तो उस गंदी ज़ेहनियत व दुश्मनी की जीती जागती तस्वीर है, जिसे गौरक्षा या फिर धर्मरक्षा के नाम पर आमतौर पर इस देश ने दादरी से लेकर मुज़फ्फ़रनगर तक देखा है.
यहां के लोगों का मानना है कि इस पूरी घटना को एक योजना के तहत अंजाम दिया गया. यह इलाक़े के अमन को ख़त्म करने की साज़िश थी. उनका कुछ न कुछ मक़सद ज़रूर था. अन्यथा पुलिस व सरकार यूं ही उन्हें बचाने की कोशिश नहीं करती. यहां के लोगों का यह भी कहना है कि पुलिस ने सिर्फ़ चार लोगों को ही गिरफ़्तार किया है, जबकि इस घटना को अंजाम देना चार लोगों के बस की बात हो ही नहीं सकती. कम से कम 8-10 लोग इस वारदात को अंजाम देने में शामिल थे. कुछ लोगों का यह आरोप है कि भाजपा से जुड़े एक सांसद आरोपियों को बचाने में लगे हुए हैं, आख़िर इसके पीछे राज क्या है.
लोगों के यह भी सवाल हैं कि आख़िर इस मसले पर मेनस्ट्रीम मीडिया व ज़्यादातर स्थानीय खामोश क्यों हैं? जबकि लगभग एक महीने ही पहले ही इसी मीडिया ने बच्चों को नमाज़ पढ़ाने की झूठी घटना को खूब तूल दिया था.
इन तमाम बातों के अलावा सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि इस बार जो हुआ, वह समाज को बांटने वालों की उम्मीदों के ख़िलाफ़ गया, बल्कि इस घटना ने नफ़रत फैलाने वालों के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया है.
मेवात की दो निर्भयाओं के लिए समाज के अलग-अलग तबक़े न सिर्फ़ एकजुट हुए हैं, बल्कि इस बार एक साथ खड़े होकर इंसाफ़ के लिए आवाज़ भी बुलंद कर रहे हैं. 36 बिरादरियों ने एक साथ इस घटना को अपने घर के बहू-बेटियों के इज़्ज़त के साथ जोड़कर देखा. ये इस मामले की सबसे बड़ी ताक़त रही, जिसने इंसाफ़ के ख़ातिर सबको एक छतरी के नीचे ला दिया.
मेवात एक क़िस्म की प्रयोगशाला बन चुकी है. हर छोटी-बड़ी घटना के ज़रिए यहां के माहौल को सुलगाने और उसे हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई का रूप देने की कोशिश की जाती है. इन कोशिशों के पीछे फ़िरक़ापरस्तों का समूचा आपराधिक तंत्र काम करता है. भगवा चोला ओढ़कर अपराध करने वाले लोगों का पूरा का पूरा गिरोह है. लेकिन इस बार उम्मीद है कि यह घटना ऐसे लोगों को बेनक़ाब करने का ज़रिया बनकर उभरेगी और समाज को बांटने वाली ताक़तें ऐसी साज़िश करने से पहले सौ बार सोचेंगे.
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