कर्नाटक हिजाब को लेकर हुए नकारात्मक चर्चा का असर लड़कियों की शिक्षा पर हो गया है, बहुत सी लड़कियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया है। ऐसा हिजाब पर लगाई गई रोक के चलते हुआ है। Twocircles.net के लिए मोहम्मद जमीर हसन की यह रिपोर्ट पढ़िए …
कर्नाटक के शिक्षा संस्थानों में हिजाब पहनने पर लगाई गई रोक के कारण अनगिनत मुस्लिम युवतियों का भविष्य अंधकार में है। इन छात्राओं को पढ़ाई और अपनी परम्परा के बीच चुनाव करने की मुश्किल स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। कुछ छात्राओं ने पढ़ाई ही छोड़ दी है, तो कुछ ने परम्परा से समझौता किया है। लेकिन जिन युवतियों ने दबाव में हिजाब छोड़ा है, वे गहरे मानसिक दबाव से गुजर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में स्पष्ट फैसला ना देने से इन छात्राओं की मुसीबत और बढ़ गई है। खैरुननिसा और फारिया मुख्तार बीए की छात्रा है,हिजाब बैन होने के बाद एक का दो साल दूसरी का एक साल बर्बाद हुआ है। जब हिजाब का मामला कर्नाटक के कई शहरों में ज़ोर पकड़ा। उस वक्त खैरुननिसा और फारिया के कॉलेज में भी हंगामा शुरू हुआ।
खैरुननिसा कहती हैं “ फाइनल ईयर इम्तिहान के दौरान हिजाब बैन का मामला शुरू हुआ। जब मैं इम्तिहान देने कॉलेज पहुंचती हूं। हमें कॉलेज के अंदर घुसने नहीं दिया जाता। कॉलेज के अंदर, बाहर भीड़ इकठ्ठा होती है। हम प्रिंसिपल से बात करते हैं कि हमें इम्तिहान देने दिया जाए। लेकिन प्रिंसिपल हिजाब पहन कर इम्तिहान देने की इजाजत नहीं देते हैं। छात्राओं को इम्तिहान और हिजाब में किसी एक को चुनने को कहा जाता है।“ खैरुननिसा और फारिया कॉलेज प्रिंसिपल से अपील करती है कि उन्हें इम्तिहान में बैठने दिया जाए, दोनों छात्राएं लगातार पांच दिनों तक कॉलेज के चक्कर लगाती है लेकिन उन्हें गेट के बाहर से वापस भेज दिया जाता है। अंत में दोनों छात्राएं हिजाब और इम्तिहान में, हिजाब को चुनती हैं।
यह दोनों छात्राएं कर्नाटक के सिरसी ज़िले से है। यह कहानी महज़ इन दो लड़कियों की नहीं है। बल्कि 10 हज़ार से ज़्यादा मुस्लिम छात्राओं की है जिन्हें हिजाब बैन के बाद कॉलेज बदलना पड़ा, पढ़ाई छोड़नी पड़ी या नहीं तो अपनी भावनाओं को मार कर उसी कॉलेज में बिना हिजाब के क्लास करना पड़ रहा है। ये पूरा घटनाक्रम भारतीय संविधान के मूलभूत संरचना के उल्लंघन को दिखाता है। पीयूसीएल की रिपोर्ट में भी यही बात कही गई है। पीयूसीएल ( PUCL ) रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक सरकार ने हिजाब बैन कर संविधान के बुनियादी उसूलों का उल्लंघन किया है।
पीयूसीएल की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक सरकार ने संविधान के बुनियादी उसूलों का उल्लंघन किया है। रिपोर्ट में जिन अधिकारों का उल्लंघन किया गया है उनमें भेदभाव के बिना शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार, गरिमा का अधिकार, निजता का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, गैर-भेदभाव का अधिकार और मनमानी राज्य कार्रवाई से स्वतंत्रता शामिल है। रिपोर्ट ने उन लोगों का भी खुलासा किया जो हिजाब विवाद के परिणामस्वरूप छात्रों को शिक्षण छोड़ने का सुझाव देते थे।
पीयूसीएल की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिजाब न पहनने के आदेश से हिजाब पहनने वाली महिलाओं की शिक्षा के साथ -साथ समाजिक और मनौवैज्ञानिक प्रभाव से संबंधित चिंताएं बढ़ गई है। “मुस्लिम छात्रों को कॉलेज परिसर के भीतर और बाहर सांप्रदायिक रूप से निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें कक्षा के अंदर और बाहर लगातार उत्पीड़न और अपमान का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि प्रमाण पत्र और अन्य महत्वपूर्ण दास्तांवेज जैसे व्यावहारिक परीक्षा रिकार्ड जारी करने से रोकने जैसे मामले में कॉलेज प्रशासन से भी दुश्मनी बढ़ रही है।
फहमा बी.ए की छात्रा है। Twocircles.net से बात करते हुए कहा “ हिजाब बैन का मामला शुरू होने के बाद हमारे क्लास के बच्चे भेदभाव करने लगे। वह लोग भी हमें हिजाब पहनने की नसीहत देने लगे। यहां तक कि चहेती टीचरों ने हमें हिजाब न पहनने की सलाह देने लगे। उन लोगों ने भी मेरे आत्मसम्मान को ज़ोर का ठोकर मारा। अब मैं मजबूरन बिना हिजाब के कॉलेज जाती हूं।“
फहमा सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहती हैं “ देरी से न्याय मिलने का मतलब है न्याय नहीं मिलेगा। दो जजों की एक सहमति नहीं है। पूरे मामले को बड़ी बैंच के पास भेज दिया गया है। आगे सुनवाई कब होगी? इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। मैंने पढ़ाई जारी रखी है लेकिन हजारों लड़कियां है जो इससे प्रभावित होंगी।“ 16% प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने मेंगलोर यूनिवर्सिटी कॉलेज से नाम कटवा लिया है।
डेक्कन हेराल्ड (Deccan Herald) द्वारा डाली गई आरटीआई अर्जी के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार कन्नड़ और उडुपी जिलों में मेंगलोर यूनिवर्सिटी (एमयू) के सरकारी, सहायता प्राप्त और घटक कॉलेजों में, कुल 900 मुस्लिम छात्राओं में से 145 ने टीसी के लिए मांग की। टीसी की मांग 2020-21 और 2021-22 में विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्राओं ने की। ट्रांसफ़र सर्टिफिकेट लेने के बाद, इनमें से कई छात्राओं ने ऐसे कॉलेज में नामांकन करवाया है। जहां पर हिजाब पहनने की इजाज़त है। वहीं कई छात्राओं के पास पैसे न होने के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मुस्लिम लड़कियों ने सबसे ज्यादा सरकारी कॉलेज को छोड़ा है।
डेक्कन हेराल्ड द्वारा डाले गए आरटीआई के मुताबिक सहायता प्राप्त कॉलेज की तुलना में सरकारी कॉलेजों में टीसी की मांग करने वाली मुस्लिम छात्राओं की संख्या अधिक है। सहायता प्राप्त कॉलेज में महज़ 8 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने टीसी की मांग की है। वहीं सरकारी कॉलेजों में 34 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने टीसी की मांग की। दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिलों में 39 सरकारी और 36 सहायता प्राप्त कॉलेज हैं। उडुपी ज़िले में 14 प्रतिशत छात्राओं ने टीसी की मांग की तो वहीं दक्षिण कन्नड़ में 13 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने टीसी की मांग की है। हिजाब विवाद का मुख्य केंद्र उडुपी ज़िले का अज्जरकाड गवर्नमेंट फर्स्ट ग्रेड कॉलेज था। यहां पर सबसे ज़्यादा मुस्लिम छात्राओं ने कॉलेज से टीसी के लिए अप्लाई की है। इस तरह का मामला कर्नाटक के लगभग सभी जिलों के कॉलेज में देखने को मिला जहां पर मुस्लिम छात्राओं को पढ़ाई छोड़नी पड़ी, कॉलेज बदलना पड़ा या नहीं तो मन को मार कर भेदभाव का सामना करते हुए आगे की पढ़ाई करने पर मजबूर हैं।
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की अलग -अलग राय
कर्नाटक हाईकोर्ट के हिजाब बैन के फैसले के बाद हिजाब का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। हिजाब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के दो जज जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कि लेकिन दोनों जजों ने खंडित फैसला सुनाया। एक जज ने प्रतिबंध को सही ठहराया तो दूसरे ने गलत। दोनों जजों की राय तीन मुद्दों पर बिल्कुल उलट थी। यह मुद्दे थे, पसंद की आज़ादी ,धार्मिक क्रियाकलापों का अधिकार और बंधुत्व यानी भाईचारा कायम रखना।
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में कहा कोई स्टूडेंट स्कूल में धार्मिक क्रियाकलापों के लिए नहीं जाता और राज्य के पास सेक्युलर स्कूल परिसर के भीतर हिजाब पहनने को प्रतिबंधित करने का अधिकार है। जस्टिस हेमंत गुप्ता का फैसला कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया।
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा “ हिजाब बैन प्राइवेसी का उल्लंघन, गरिमा पर हमला और सेक्युलर शिक्षा से वंचित करना है”। जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा, “किसी लड़की को स्कूल के गेट में घुसने से पहले हिजाब उतारने को कहना तो सबसे पहले तो उसकी प्राइवेसी का उल्लंघन है, फिर यह गरिमा पर हमला है और आखिरकार यह उसे सेक्युलर शिक्षा से वंचित करना है।
यह साफ तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25((1) का उल्लंघन है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा है या नहीं, इसका इस विवाद से कोई मतलब ही नहीं। असली मुद्दा तो मुस्लिम लड़कियों के ड्रेस चुनने की आज़ादी के अधिकार का है। जस्टिस सुधांशु धूलिया आगे कहते हैं सभी याचिकाकर्ता हिजाब पहनना चाहती है। क्या लोकतंत्र में यह मांग करना बहुत ज़्यादा हो गया ? यह पब्लिक आर्डर, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ कैसे हो गया? या यह संविधान के भाग 3 के किसी प्रावधान के खिलाफ कैसे हो गया? यह कहते हुए, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया।
इस फैसले के बाद पूरे मामले की सुनवाई अब बड़ी बैंच ही करेगी। इसमें काफ़ी वक्त लग सकता है। हिजाब मामले को लगभग दस महीने हो चुके हैं। इस दौरान कई मुस्लिम लड़कियों को मानसिक, शारीरिक और असामनताओ का सामना करना पड़ रहा है। निशात अंजुम बगल कोट ज़िले की हैं। ग्रेजुएशन के दूसरे साल में है, टीसीएन बात करते हुए कहती हैं “मुझे बहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मैं बिना हिजाब के कॉलेज में पढ़ने जाती हूं। यह मेरे पसंद की पहनने की आज़ादी के खिलाफ है लेकिन मैं कुछ कर भी नहीं सकती। क्योंकि मेरे पास यहां पढ़ने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं।“
निशात अंजुम जैसी कर्नाटक राज्य की लाखों मुस्लिम लड़कियों को उनके पसंद की पहनने की आज़ादी क्यों नहीं है , यह सवाल कर्नाटक की लाखों छात्राओं के ज़हन में चल रही है। उन्हें कोई विकल्प क्यों मुहैया नहीं कराया जा सकता !