Twocircles.net के लिए दरियापुर( मुकामां) से आसिफ इकबाल की रिपोर्ट
पटना से करीब 90 किमी पूरब में गंगा नदी किनारे दरियापुर गांव बसा है। यहां छोटे से मैदान में लड़कियां कबड्डी खेल रही हैं और एक 55 वर्षीय व्यक्ति इन बच्चियों को कबड्डी के गुर सिखा रहा है। उनकी गलतियां बता रहा है। ये शख्स हैं मोहम्मद इलियास। कबड्डी के एक गुमनाम कोच, जिन्होंने इस छोटे से गांव को कबड्डी की नर्सरी बना दिया है। इस छोटे से गांव से एक दर्जन से अधिक नेशनल और स्टेट लेवल की महिला कबड्डी खिलाड़ी निकल चुकी हैं और यह सब उस्ताद इलियास की तीन दशक की जी-तोड़ मेहनत का नतीजा है। इनमें उनकी बेटी और शिष्या शमा परवीन और कोमल ने देश-दुनिया में बिहार का नाम रोशन किया है। शमा परवीन ने अंतराष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता है, वहीं कोमल नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड जीत चुकी हैं। दोनों फिलहाल भारतीय रेलवे में अपनी सेवाएं दे रही हैं।
सीमित संसाधनों के बीच इलियास ग्रामीण लड़कियों के सपनों को नई उड़ान दे रहे हैं। बच्चियों को कबड्डी सिखाने का यह सफर कैसे शुरू हुआ। ! इस पर इलियास Twocircles.net को बताते हैं, ‘बात 1995 की है, उन दिनों मैंने 10 वी की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुकामां में ही एक कंपनी में काम शुरू किया था। तभी से मन में कशिश थी कि बच्चियों के लिए कुछ करना चाहिए। इसी कड़ी में सामाजिक कुरीतियों को तोड़ते हुए लड़कियों के लिए साइकिल रेस की प्रतियोगिता आयोजित कराई। यह रेस कराना मेरे और यहां के लोगों के लिए बिल्कुल नया अनुभव था। लोगों ने इस पहल को काफी सराहा और सड़क के दोनों तरफ लोगों का मजमा लग गया था।’ इलियास आगे बताते हैं कि साइकिल रेस रोज-रोज संभव नहीं थी, इसलिए गांव की बच्चियों को कबड्डी सिखाने की ठानी, इसके पीछे सोच यह थी कि यह ग्रामीण परिवेश का खेल है और इसके लिए कोई ज्यादा संसाधन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।
शुरुआत में हम कुछ साथियों के साथ घर-घर जाते थे और लोगों से विनती करते थे कि अपनी बच्चियों को कबड्डी सीखने के लिए भेजें। शुरू में बच्चियों को ग्राउंड तक लाने में खूब मशक्कत करनी पड़ती थी। बहुत बार तो विरोध भी झेलना पड़ा, लोग कहते थे कि लड़कियां कबड्डी खेलकर क्या करेंगी? यह उनका काम नहीं है। जैसे-तैसे कुछ लोगों ने अपनी बच्चियां भेजना शुरू किया और यह सफर शुरू हुआ। कई बार निराशा तब होती थी जब समाज के दबाव में उम्दा खिलाड़ी खेलना ही छोड़ देती थी। हमने लड़कियों को हमेशा समझाया कि किसी के कमेंट पर ध्यान न दें। बस अपने खेल पर फोकस करना है।
इलियास कहते हैं, ‘2017 में जब शमा को अंतरराष्ट्रीय मेडल मिला तो लोगों के ज़ेहनियत में बड़ा बदलाव देखने को मिला। मुझे खुशी है कि इस पूरे संघर्ष में मेरी पत्नी ने पूरा साथ दिया।’ अभी भी गांव की 35 से ज्यादा बच्चियां इनसे ट्रेनिंग ले रही हैं। इलियास के चहेरे पर अपनी इस उपलब्धि पर संतोष भी दिखता है, लेकिन उन्हें दुख है कि इन बच्चियों की बेहतरी के लिए सरकार ने कभी कुछ नहीं किया। वे कहते हैं कि यहां कबड्डी का स्टेडियम नहीं होने की वजह से लड़कियों का काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
स्टेडियम और जिम के लिए वे प्रशासन और सरकार से कई मर्तबा अर्जी लगा चुके हैं। इलियास कहते हैं कि अभी बीते दिनों भी स्थानीय सांसद से मिलकर उनसे स्टेडियम बनवाने का आग्रह किया है। वे कहते हैं कि अब तक वे 20 से अधिक मैदान बदल चुके हैं, कई वर्षों तक बच्चियों को गंगा के रेत पर प्रैक्टिस कराई। अगर स्टेडियम और जिम जैसे सुविधा इन बच्चियों को मिल जाए तो इससे उनके खेल में और निखार आ सकता है। उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनकी यह अर्जी जरूर सुनी जाएगी। वे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि ‘आखिर वह सुबह कभी तो आएगी’। दरियापुर पंचायत के पूर्व मुखिया राजू प्रसाद कहते हैं, ‘शुरू से इलियास साहब ने समाज से लड़ते हुए लड़कियों को खेलने के लिए प्रेरित किया। जब 2016 में मुखिया बना तब से ही स्टेडियम के लिए कोशिश कर रहा हूं। खेल मंत्री और मुख्यमंत्री जी को भी लेटर भी लिखा पर अब तक सपना पूरा नहीं हो सका।
राष्ट्रीय टीम की खिलाड़ी शमा कहती हैं कि इलियास साहब जैसा कोच सभी को मिलना चाहिए। शमा कहती हैं कि मैंने कबड्डी खेलने का सपना जरूर देखा पर उसे उड़ान सर ने दी। जब सर हम लोगों को सिखाते थे तो समाज के लोग ताने दिया करते थे। असमाजिक तत्व ऐसी हरकते किया करते थे कि हम उसको बयां भी नहीं कर सकते। यहां तक की जहां हम लोग प्रैक्टिस किया करते थे, वहां पर शौच कर देते थे। ऐसे में इलियास सर हम लोगों को नकारात्मक चीजों से दूर रहने और खेल पर फोकस करने को कहते थे। उन्हीं की मेहनत की वजह से मुझे देश के लिए खेलने का मौका मिला। जब मैं ईरान में एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए प्लेन में चढ़ी तो काफी भावुक हो गई थीं। मेरे जैसे गांव की लड़की के लिए प्लेन पर चढ़ना एक सपना जैसा था। ईरान में जब टीम ने गोल्ड मेडल जीता और राष्ट्रगान बजा तो यह दृश्य जिंदगी के सबसे अनमोल पल में से एक था। मैं सोच रही थी कि कैसे सर के साथ खुशियां साझा करूं। ईरान से गांव दरियापुर आई तो लोग स्वागत के लिए खड़े थे। वही लोग माला पहना रहे थे, जो कभी हमारा रास्ता रोक रहे थे। सर ने एक चीज हम लड़कियों को सिखाया कि कभी हार नहीं माननी है। ये अप्रोच हमेशा काम आ रही है। आज मैं रेलवे में काम कर रही हूं, कभी माहौल सही नहीं होता तो मैं उसी जज़्बे को याद करती हूं।
एक दूसरी खिलाड़ी कोमल कहतीं हैं कि इलियास सर नहीं होते तो घर से बाहर निकलने की भी नहीं सोच सकती थीं। मैं आज जो भी हूं वह इलियास सर की वजह से हूं। जब हम खेलते थे तो गांव के लोग खूब ताने मारते थे। लोग कहते थे कि लड़की होकर छोटे कपड़ों में कबड्डी खेल रही हैं। कभी कभी हम लोग हिम्मत हार जाते थे। तब इलियास सर ही थे जो ये हौसला देते थे कि एक दिन तुम अच्छा करोगी तो यही लोग तारीफ करेंगे। और ऐसा हुआ भी। यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रही रीता कुमारी से हमारी मुलाकात दरियापुर में अभ्यास के दौरान हुई। वह 2013 से कबड्डी खेल रही हैं। रीता ने नेशनल लेवल के सब जूनियर प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता है। राष्ट्रीय स्तर पर रीता के नाम दो पदक है। वह कहती हैं कि इलियास सर की प्रेरणा से हम लोगों ने खेलना शुरू किया। शमा परवीन को जब एशियन चैम्पियनशिप में पदक मिला तो हम लोगों का और हौसला बढ़ा। हम भी इलियास सर के मार्गदर्शन में गोल्ड जीतेंगे। यहां हमारी मुलाकात दो महीने पहले ही सब-जूनियर लेवल पर नेशनल खेल कर आई सुमन कुमारी से हुई। पटना में आयोजित इस प्रतियोगीता में सुमन ने सिल्वर पदक जीता है। इसका पूरा श्रेय वह अपने कोच इलियास को देती हैं।
तमिलनाडु में फेडरेशन स्तर का खेल हुआ था उसमे सुमन ने कांस्य पदक जीता था। सुमन कहती हैं कि स्पोर्ट्स ऑथिरिटी ऑफ इंडिया के कैंप में हर तरह की सुविधाएं है। पर हमारे यहां स्टेडियम तक नहीं है। मोहम्मद इलियास भी कहते हैं कि शमा और कोमल को जब से नौकरी मिली है तब से लड़कियों में खेलने का जज्बा बढ़ा है। इलियास कहते हैं कि स्पोर्ट्स कोटे से जो जॉब भारत सरकार निकालती हैं उसमें बिहार के खिलाड़ियों की बहुत कम भागीदारी है। ग्रामीण स्तर पर खेल की भरपूर संभावनाएं हैं। केवल लड़कियों के लिए अलग स्टेडियम हो जाए, तो बिहार भी हरियाणा को टक्कर देगा। अगर सरकार लड़कियों को खेलने के लिए स्टेडियम दे दे तो यह सम्मान मेरे लिए द्रोणाचार्य अवॉर्ड से कम नहीं होगा।