मोहम्मद जमीर हसन। Two circles.net
हैदराबाद की रहने वाली प्रीति कोंगारा ने 2023 के एशियाई खेलों के लिए क्वालिफाई किया है। वे यह उपलब्धि हासिल करने वाली तेलंगाना की पहली महिला सेलर हैं। प्रीति बेहद गरीब घर से ताल्लुक रखती हैं और उनके परिवार में से किसी का दूर-दूर तक सेलिंग से वास्ता नहीं रहा है। खुद प्रीति ने कक्षा-8 तक कभी जलाश्य में कदम तक नहीं रखा। आज प्रीति मिक्सड डबल 470 बोट श्रेणी में देश की नंबर-1 नाविक हैं। उद्योगपति आनंद महिद्रा भी प्रीति की तारीफ कर चुके हैं। प्रीति कोंगारा के इस सपने को उनके कोच सुहेम शेख ने उड़ान दी है। वे हैदराबाद की हुसैन सागर झील में याट क्लब ऑफ हैदराबाद चलाते हैं और नौकायन की दुनिया में देश को नई पहचान दिला रहे हैं। खास बात यह है कि उनका क्लब सिर्फ गरीब और बेसहारा बच्चों के लिए ही है।
सुहेम शेख बताते हैं कि उन्होंने बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर अपना करियर शुरू किया। कुछ दिनों तक इंजीनियरिंग फील्ड में काम किया। फिर अपनी कंपनी भी शुरू की लेकिन शुरू से ही उनकी दिलचस्पी नौकायन में थी। इसलिए अपनी कंपनी बंद कर एक नेक मकसद के साथ नौकायन के क्षेत्र में लौट आया। सुहेम के अनुसार मकसद था नौकायन के ज़रिए गरीब और बेसहारा बच्चों के सपने में उड़ान भरना। इसके लिए सुहेम ने हुसैन सागर झील में बोट क्लब शुरू करने के लिए तेलंगाना सरकार से अनुमति मांगी और इस काम के लिए सरकार ने उन्हें मंजूरी दे दी। उन्होंने 2008 में महज 3 बोट के साथ यॉट क्लब ऑफ हैदराबाद की नींव रखी। उन्होंने हैदराबाद के दलित-अल्पसंख्यक बस्ती के बच्चों को प्रशिक्षण सिखाना शुरू किया और उनका यह सफर जारी है। आज क्लब के पास 160 से अधिक बोट हैं। सुहेम बताते हैं, ‘इस क्लब के ज़रिए अब तक 2 हजार से अधिक बच्चे नौकायन का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। यहां से अब तक 6 राष्ट्रीय चैंपियन, 25 राष्ट्रीय पदक विजेता और 10 राज्य चैंपियन निकल चुके हैं।’
नौकायन के प्रशिक्षण के साथ-साथ क्लब के अंदर बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था भी की गई है। बच्चे जितनी लगन से ट्रेनिंग करते हैं, उतनी ही मेहनत से पढ़ाई भी करते हैं। इस साल दो-तीन बच्चों ने दसवीं की परीक्षा दी है। इतना ही नहीं, सुहेम क्लब के बच्चों के न्यूट्रीशियन का भी पूरा ख्याल रखते हैं। यहां ट्रेनिंग लेने वाले बच्चों को 5 टाइम भोजन कराया जाता है। फिटनेस चेकअप के लिए बच्चों को हर महीने सुचित्रा एकेडमी भेजा जाता है। सुहेम शेख कहते हैं, ‘बच्चों को शिक्षा से दूर नहीं रखना चाहिए। मेरे माता-पिता अक्सर कहा करते थे कि तालीम के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता।’ क्लब इस काम को और अच्छे तरीके से करने के लिए फंड की कमी से जूझ रहा है। सुहेम कहते हैं, किसी भी तरह के सामाजिक और कल्याणकारी एनजीओ को चलाने के लिए पैसों की जरूरत होती है। इंजीनियरिंग और अपनी कंपनी से कमाए पैसों से इस एनजीओ को शुरू किया था। अभी भी अपने पैसे और 10 करीबी दोस्तों की मदद से इस मुहिम को चला रहे हैं। क्लब में इस वक्त 60 बच्चे ट्रेनिंग ले रहे हैं। सुहेम इस खेल को पूरे देश में फैलाने के लिए तेलंगाना और केंद्र सरकार की तरफ आशाभरी नजरों से देख रहे हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि सरकार मदद को आगे आएगी। सुहेम क्लब का दरवाजा पूरे देश के गरीब और बेसहारा बच्चों के लिए खोल रहे हैं। इसके लिए वह एनजीओ की मदद से दूसरे राज्यों से गरीब बच्चों को अपने यहां प्रशिक्षण के लिए बुला रहे हैं। अभी महाराष्ट्र से 20 बच्चों की टीम आई है, जिसे नन्ही कली नाम की संस्था ने चुनकर भेजा है। इसमें से 8-10 बच्चों को ही आगे के प्रशिक्षण के लिए चुना जाएगा।
क्लब में हमारी मुलाकात दीक्षिता और लाहिरी से होती है। दोनों सगी बहनें हैं, इनमें एक अंतरराष्ट्रीय और दूसरी राष्ट्रीय सेलर हैं। इनके पापा बाल काटने का काम करते हैं। दीक्षिता बताती हैं कि पांच लोगों के परिवार में सिर्फ पापा ही कमाने वाले हैं। घर बड़ी मुश्किल से चलता है। वो कहती हैं कि उन्होंने इस एनजीओ के बारे में सुना था। एक दिन शिक्षकों से यहां नौकायन सीखने की रूचि जाहिर की। इसके बाद शिक्षकों ने यॉट क्लब ऑफ हैदराबाद से जुड़ने की सलाह दी। दीक्षिता अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की कई सेलिंग प्रतिस्पर्धा में शामिल हो चुकी हूं। हाल ही में, कोरिया में एक प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया था और सौ लोगों में से साठवें नंबर पर रही थीं। टीसीएन से बात करते हुए दीक्षिता कहती हैं, ‘मैं अपने प्रदर्शन से बिल्कुल खुश नहीं हूं। लेकिन यहां तक हम सिर्फ इस क्लब की बदौलत पहुंचे। यहां ट्रेनिंग से लेकर पढ़ाई और खाने तक की सहूलियतें फ्री में मुहैया कराई जाती हैं। यह सब सिर्फ सुहेम शेख की वजह से मुमकिन हो पाया। वह हमेशा हम लोगों को सर्वश्रेष्ठ करने के लिए प्रेरित करते हैं। मेरा सपना देश के लिए खेलना है और भारतीय नेवी में शामिल होना है।’ वहीं, लाहिरी बहुत ही चंचल हैं और अच्छी इंग्लिश बोल लेती है। अपनी बड़ी बहन दीक्षिता से प्रभावित होकर एक साल से नौकायन का प्रशिक्षण ले रही हैं। लाहिरी कहती हैं कि अगर यह क्लब फ्री में हमें ट्रेनिंग नहीं देता तो शायद हम यहां नहीं होते।’ दीक्षिता और लाहिरी जैसी सैकड़ों बच्चें जिनके माता-पिता समान्य काम धोबी, ऑटो चालक, सफाई का काम करते है। उनके बच्चे इस क्लब में अपने सपनों में रंग भर रहे हैं।