आकिल हुसैन।Twocirles.net
शुक्रवार को महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का जब रिजल्ट घोषित हुआ तो मुंबई के एक मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों की खुशी दुगुनी हो गई, वज़ह है मदरसे में पढ़ने वाले 22 बच्चों ने हाफ़िज़ कोर्स के साथ साथ महाराष्ट्र माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की एसएससी की परीक्षा अच्छे नंबरों के पास की है। ख़ास बात यह है कि 22 हाफ़िज़ो में से 14 ने डिस्टिंक्शन(विशेष योग्यता जिसे 75 फ़ीसद अंको के बाद प्रदान किया जाता है) साथ परीक्षा पास की है।
एसएससी यानी 10वीं की परीक्षा पास करने वाले 22 हाफ़िज़ बच्चें मुंबई के मालवानी मलाड स्थित जामिया ताजवीदुल कुरान मदरसा और नूर मेहर उर्दू स्कूल के हैं। यह मदरसा जामिया ताजवीदुल कुरान लगभग सन् 2000 से संचालित हैं। मुंबई के ही एक बिजनेसमैन अली नामक व्यक्ति ने अपना एक घर मदरसे को सौंप दिया था। मदरसे ने बिजनेसमैन अली द्वारा दिए गए इस घर को एक शैक्षिक संस्थान में बदल दिया जिसका नाम नूर मेहर उर्दू स्कूल रखा, जिससे मदरसे में पढ़ने वाले बच्चें दीन के साथ साथ दुनिया की भी तालीम हासिल करने लगें।
2011 में यह स्कूल मदरसे के साथ मिलकर शुरू हुआ। 2011 में ही ताजवीदुल कुरान मदरसा और नूर मेहर उर्दू स्कूल से 13 हाफ़िज़ बच्चें ने एसएससी की परीक्षा पास की। यहां से 2013 में 9 हाफिजों ने हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी तो 2014 में यह संख्या 5 थी। पिछले 10 सालों में मदरसे से निकले 97 हाफ़िज़ो ने यहां से हाईस्कूल की परीक्षा पास की हैं। यहां से पढ़कर निकलें कई हाफ़िज़ अब इंजीनियर, डॉक्टर और फार्मासिस्ट समेत कई नौकरी में हैं तो कई हाफ़िज़ बच्चें उच्च शिक्षा भी हासिल कर रहे हैं।
यह दोनों स्कूल और मदरसा मलाड की एक ही बिल्डिंग में नूर मेहर चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत चल रहे हैं। मदरसे में हाफ़िज़ा करने वाले बच्चों को कंप्यूटर की भी शिक्षा दी जाती है। मदरसे में उर्दू के अलावा अंग्रेजी बोलना और लिखना भी सिखाया जाता है। आज मदरसे के कई बच्चे हिंदी, उर्दू के अलावा अंग्रेजी और मराठी बोल और लिख दोनों लेते हैं। इस मदरसे की शुरुआत में सिर्फ दो बच्चे थे और आज लगभग 160 से ज़्यादा बच्चे यहां पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। स्कूल में केवल आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को दाखिला मिलता है।
मदरसे के बच्चे एक साथ धार्मिक और आधुनिक शिक्षा हासिल करते हैं। नूर मेहर उर्दू स्कूल का समय सुबह 7:50 से लेकर दोपहर के 12:30 तक हैं। वहीं मदरसे सुबह 6 बजें से लेकर 7 बजें तक एक घंटा ही चलता है जिससे मदरसे में पढ़ने वाले बच्चें आसानी से स्कूल जा सकें।इसके अलावा मदरसा शाम में फिर तीन घंटे चलता है जहां पर बच्चे कुरान का हिफज़ करते हैं। मदरसे से पढ़कर निकलें हाफ़िज़ मोहम्मद मेराज और हाफ़िज़ फैजुल्लाह आज कामर्स की पढ़ाई कर रहे हैं तो वहीं हाफ़िज़ साहिल बीएससी कर रहे हैं। इसके अलावा मदरसे के हाफ़िज़ अल्ताफ़ आटोमोबाइल के क्षेत्र में इंजीनियरिंग की कर रहे हैं। अल्ताफ़ के अलावा मदरसे से हाफ़िज़ा करने वाले राहिल भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।
इस वर्ष की महाराष्ट्र बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में 22 हाफ़िज़ बच्चें पास हुए हैं। इन 22 हफ़िज़ों में से 14 को 75 फीसदी से अधिक अंक मिले हैं तो 8 ने 60 फीसदी अंक प्राप्त किए हैं। इसी मदरसे के ही एक छात्र अबु तलहा अंसारी ने हाफ़िज़ा की पढ़ाई के साथ-साथ हाईस्कूल की परीक्षा भी अव्वल दर्जे के साथ पास की है। अबु तलहा अंसारी ने एसएससी की परीक्षा में 83.40 फीसदी अंक प्राप्त करें हैं। हाईस्कूल में 83.40 फीसदी अंक पाने वालें मदरसे के छात्र हाफ़िज़ अबु तलहा अंसारी ने मीडिया को बताया कि वह रोज़ सुबह 4 बजे से ही अपना दिन शुरू कर देते थे और एक दिन में लगभग 18 घंटे पढ़ाई करते थे। इस दौरान उन्होंने खेल-कूद भी नहीं छोड़ा क्योंकि खेल से दिमाग को ताजा रखने में मदद मिलती थी और इससे पढ़ाई के दौरान वह नींद पर भी काबू पा सके।
स्कूल के प्रिंसिपल साजिद खान मीडिया से बताया कि मदरसे के इन हाफ़िजों ने दिन-रात में फर्क छोड़ कड़ी मेहनत की और यहीं वजह रहीं कि ये हाफ़िज अच्छे नंबर लाने में सफल रहे। वह बहुत खुश हैं। मदरसे की पढ़ाई के साथ उन्होंने आज की शिक्षा भी हासिल की। स्कूल के प्रिंसिपल ने मीडिया को बताया कि,”हम बच्चों को दोनों पढ़ाई करवाते हैं, इस दौरान हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि बच्चों को किसी भी तरह की बोरियत न महसूस हो। इसके लिए उनके सुबह से शाम तक का टाईम टेबिल तैयार किया जाता है। इसके साथ ही जो बच्चा जिस विषय में कमजोर होता है, उसे उस विषय में तेज करने के लिए विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है।”
मदरसे के शिक्षक हाफ़िज़ एजाज़ ने मीडिया से कहा कि,”यह शैक्षणिक सत्र वाकई में कठिन था। लॉकडाउन के कारण आठ महीने तक छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाया जाता था। वे केवल चार महीने के लिए ऑफलाइन कक्षाओं में आए लेकिन कड़ी मेहनत से उन्होंने परीक्षा पास कर ली।
जामिया ताजवीदुल कुरान मदरसा और नूर मेहर उर्दू स्कूल दोनों एक ही बिल्डिंग में संचालित हैं। देश के अन्य मदरसों के लिए आज मलाड का यह भदरसा एक मिसाल की तरह है कि आधुनिक शिक्षा और धार्मिक शिक्षा को एक साथ कैसे हासिल किया जा सकता है।