By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग द्वारा तैयार किए जा रहे विवादित कनहर बांध पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल/ राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल के सामने जांच समिति ने यह स्वीकार किया कि उनके द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट में खामियां और गलतियां हैं. ट्रिब्यूनल द्वारा गठित इस जांच समिति को ट्रिब्यूनल के 7 मई 2015 के आदेश का पालन करते हुए निर्माणाधीन बांध के सन्दर्भ में ज़रूरी जानकारियां रिपोर्ट में सौंपनी थी.
इस मामले में सौंपी गयी इस रिपोर्ट से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जज असंतुष्ट हैं. जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने आईआईटी कानपुर की ओर से किसी कमेन्ट की अनुपस्थिति और रिपोर्ट को फ़ाइल करने में हुई देर के कारणों के लिए जांच कमेटी से स्पष्टीकरण मांगा है.
बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ के गांवों के बाशिंदों के पुनर्वास के सन्दर्भ में पूरी जानकारी और बांध से प्रभावित होने वाली समूची जनसंख्या की जानकारी पर ट्रिब्यूनल ने कमेटी से जवाब तलब किया है. इस बांध के निर्माण के बाद डूबने वाले जंगलों और महज़ 12 प्रतिशत के सरवाईवल रेट पर ट्रिब्यूनल ने गहरी चिंता प्रकट की है.
ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने जांच कमेटी को आखिरी मौक़ा दिया है, ताकि कमेटी इन सभी बिन्दुओं के मद्देनज़र तीन हफ़्तों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर सके.
ओ.डी. सिंह और देबदित्यो सिन्हा द्वारा दायर की गयी याचिका के तहत सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि ट्रिब्यूनल के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए राज्य सरकार ने नए निर्माण करवाने शुरू कर दिए हैं.
ज्ञात हो कि आदेश के अनुसार सरकार बांध स्थल पर किसी भी किस्म का नया निर्माण नहीं करवा सकती है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों की मानें तो राज्य सरकार ने इस आदेश का ज़ाहिरा तौर पर उल्लंघन किया है. जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा है कि प्रदेश सरकार को आदेश के अनुसार चलना होगा अन्यथा विपरीत परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
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