यूसुफ़ अंसारी, Twocircles.net
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ पिछले डेढ़ महीने से ज़्यादा वक्त से धरन पर बैठी महिलाओं के हौंसले ने आख़िरकार मोदी सरकार को बातचीत करने के लिए मजबूर कर ही दिया है। यह शाहीन बाग़ की बड़ी जीत है। लेकिन अहम सवाल यह है कि सरकार शाहीन बाग़ में किससे बात करेगी? शाहीन बाग़ की प्रदर्शनकारी महिलाएं बात करने सरकार के पास जाएंगी या फिर सरकार का कोई नुमांइदा उनसे बात करने शाहीन बाग़ के धरनास्थल पर जाएगा? इस गुत्थी के सुलझने के बाद ही बातचीत की ज़मीन तैयार हो सकती है।
मोदी सरकार की तरफ़ से शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों से बातचीत के रास्ते क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने खोले हैं। उनके ज़रिए मोदी सरकार की तरफ़ से पहली बार कहा गया कि वो शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिये तैयार है। इसकी शुरूआत एक टीवी चैनल के कार्यक्रम मे क़ानून मंत्री से पूछे गए सवाल से हुई और बाद में क़ानून मंत्री ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से बाक़ायाद बातचीत की पेशकश की गई।
दरअसल, बीती रात क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद इंडिया टीवी के एक कार्यक्रम मे शामिल हुए। कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता और टीवी चैनलों की बहसों में मुस्लिम मुद्दों पर बात रखने वाले शोएब जामई ने उनसे पूछा कि नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ में धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें इतना लंबा समय हो गया है कि लेकिन सरकार के किसी नुमाइंदे ने उनसे बातचीत करने की ज़रूरत तक नहीं समझी।
केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसके जवाब में कहा, ‘आप लोग विरोध कर रहे हैं तो अच्छी बात है, लेकिन आपकी जमात के बाक़ी लोगों का हम जो स्वर सुनते हैं टीवी पर कि जब तक सीएए वापस नहीं करोगे तो कोई बातचीत नहीं होगी। लेकिन अगर वे चाहते हैं कि सरकार का कोई नुमाइंदा बातचीत करे तो वहां से स्ट्रक्चर्ड रिक्वेस्ट आनी चाहिए कि हम सब लोग तैयार हैं। कोई अगर इनसे बात करने गया और उससे बदसलूकी की गई तो…।’ प्रसाद ने आगे कहा कि अगर आप यह कहेंगे कि वहीं आकर बातचीत करें तो वहां से कैसे बातचीत होगी।
बाद में रविशंकर प्रसाद ने इस कार्यक्रम का वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा है कि मोदी सरकार प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने और नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर उनकी जो भी शंकाएं हैं, उन्हें दूर करने के लिये तैयार है। उनके इस ट्वीट को हाथों हाथ लिया गया। कुछ ही घंटो में इसे हज़ारों लोगों ने इसे पसंद और रिट्वीट किया।
रविशंकर प्रसाद की बाााचीत की इस पहल पर जब शनिवार की सुबह हमने शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों से बात की तो उन्होंने इस पहल का स्वागत तो किया लेकिन साथ ही यह भी साफ़ कर दिया कि वो बात करने सरकार के पास नहीं जाएंगे। सरकार को ही यहां आना होगा। इससे पहले भी जिसे बात करनी था वो यहीं आया। धरने पर बैठी महिलाओं का पहले दिन यही फैसला है कि वो बात करने कहीं नहीं जाएगी। जिसे बात करनी होगी वो यहीं आएगा।
इस धरना प्रदर्शन को संचालित कर रही टीम के एक वॉलिटिंयर आबिद शेख़ ने twocircles.net से कहा, ‘यहां से कोई किसी से मिलने कहीं नहीं जाएगा। सरकार चाहे तो अपना नुमांइंदा शाहीन बाग़ भेज सकती है। वो अपना बात यहां आकर रख सकता है। उसकी बात सुनकर धरने पर बैठी महिलाएं जो भी फैसला करेंगी वो सबको मंजूर होगा।’ उनका कहना है, ‘यह धरना किसी पार्टी या संगठन के बैनर तले नहीं हैं। यह यहां की जनता ख़ासकर महिलाओं का अपना मंच है। इसे जारी रखने और ख़त्म करने का अधिकार उन्हीं को है।’
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की शंका का निवारण करते हुए आबिद शेख़ गारंटी देते हुए कहते हैं, ‘अगर कोई सरकारी नुमाइंदा यहां आएगा तो प्रदर्शनकारी यह सुनिश्चित करेंगे उसकी बात धैर्य से सुनी जाए और उसके साथ किसी भी तरह की बदसुलूक़ी न हो।’ साथ ही उनका कहना है कि प्रदर्शनकारी अपनी बात खुले मंच पर कह रहे हैं। इस लिए वो सरकार के साथ बंद कमरे में कोई बात करने को तैयार नहीं है। सरकार को जो भी बात करनी है वो यहां आकर खुले मंच से करे।
दरअसल मोदी सरकार की नीयत पर प्रदर्शनकारियों को शक है। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके है कि वो एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे। गृहमंत्री अमित शाह डंके की चोट पर ऐलान कर चुके हैं कि कोई चाहे कितना भी विरोध कर ले नागरिकता संशोधन क़ानून वापिस नहीं होगा। प्रदर्शनकारी ऐलान कर चुके हैं कि नागरिकता संशोधश क़ानून की वापसी तक वो अपना आंदोलन वापिस नहीं लेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि क़ानून मंत्री के पास आख़िर ऐसा कौन सा फ़ॉर्मूला हैं जिसके आधार पर वो प्रदर्शनकारियों से बात करना करके बीच का रास्त्ता निकालना चाहते हैं। इसी मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है।
ग़ौरतलब है कि कुछ दिन पहले शाहीन बाग़ के कुछ लोग एक प्रतिनिधिमंडल लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल से मिले थे। वो सरकार के आश्वासन पर धरना ख़त्म करन चाहते थे लेकिन धरने पर बैठी महिलाओं ने उनकी पेशकश ठुकरा दी। प्रतिनिधिमंडल में जाकर उपराज्यपाल से मिलने वालों का बॉयकाट कर दिया गया। कुछ लोगों ने सड़क के एकतरफ़ का रास्ता खुलवाने की कोशिश की थी तो प्रदर्शनकारियों ने उनका भी बॉयकाट कर दिया। ऐसी सूरत में यब सवाल बड़ा अहम है कि कि बातचीत हो तो है कैसे?
शाहीन बाग़ में बैठे प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सरकार नागरिकता संशोधन क़ानून को वापस ले लेकिन सरकार इससे साफ़ इनकार कर चुकी है। ऐसे में सरकार अगर बातचीत के लिये तैयार है और प्रदर्शनकारी भी राज़ी हो जाते हैं तभी यह माना जा सकता है कि सुलह का कोई रास्ता निकलेगा। क्योंकि सरकार ने अगर बातचीत के लिए क़दम आगे बढ़ाया है और प्रदर्शनकारी भी बातचीत के लिये क़दम आगे बढ़ाते हैं तो इस मसले का समाधान हो सकता है। दिल्ली में शाहीन बाग़ की ही तर्ज पर 13 और जगहों पर धरने चल रहे हैं। जबकि देशभर चल रहे ऐसे प्रदर्शनों की संख्या दो सौ को पार कर चुकी है। सरकार चाहती है कि देश में और शाहीन बाग न बने। वहीं प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि सरकार नागरिकता संशोधन कानून से अपने कदम पीछे खींच ले। लेकिन अपने अपने रुख़ पर दोनों की ज़िद की वजह से कोई समाधान नहीं निकल पा रहा। बातचीत के लिए दोनों पक्ष गंभीर होंगे तभी कोई समाधान निकल सकता है।