यूसुफ़ अंसारी
पिछले कई साल से देश में मुसलमानों को बदनाम करने और पूरे मुस्लिम समुदाय की छवि ख़राब करने का सुनियोजित तरीक़े से अभियान चल रहा है। राष्ट्रीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस अभियान को हवा दे रहा है। अभियान का मूलमंत्र यह है कि देश की हर समस्या के लिए पहले मुसलमानों को ज़िम्मदार ठहराओ। उसे बदनाम करो। फिर लोगों को उनके सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के लिए उकसाओ। पिछले कई साल से यह चल रही है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद इसने न सिर्फ़ ज़ोर पकड़ा है बल्कि एक तरह से संस्थागत रूप ले लिया है।
ज़्यादातर टीवी चैनलों पर हर रोज़ प्राइम टाइम शो में किसी मौलाना को बैठाया जाता है। कार्यक्रम में एक भाजपा प्रवक्ता, एक संघ विचारक, एक हिंदू संगठनों बजरंग दल या विहिप से और एंकर मिलकर उसे हर बात के ज़लील करने में कोई क़सर नहीं छोड़ते। इससे यह संदेश दिया जाता है कि मुसलमान ऐसे ही होते हैं। जाहिल, बदतमीज़, दकियानूस, कट्टरपंथी और वग़ैरह वग़ैरह। टीवी चैनलों ने दो-चार मौलाना पकड़ रखे हैं। वो चेहरे ही बदल-बदल कर अलग-अलग समय पर अलग-अलग टीवी चैनलों पर दिखते हैं। ये मौलाना टीवी चैनलों के लिए टीआरपी मैटेरियल बन गए हैं। टीआरपी का खेल मुस्लिम समाज को खलनायक बनाने की क़ीमत पर खेला जा रहा है।
इस साज़िश को नाकाम करने और देश में मुस्लिम समुदाय की छवि बदलने और एकजुट होकर उसकी आवाज़ उठाने कोशिशें भी शुरु हो गई हैं। मुस्लमि समाज क सही तस्वीर समाज के सामने रखने के मक़सद से ‘इंडियन मुस्लिम्स फॉर प्रोग्रेस एंड रिफॉर्म्स’ (IMPAR) नाम से एक संस्था बनी है। इस समिति में मुस्लिम समाज के 200 से ज्यादा जाने-माने लोगों को शामिल किया गया है। इस संस्था ने मुस्लिम समाज के ‘थिंक टैक’ के तौर पर काम करन शुरु कर दिया है। IMPAR के मुताबिक़ वो सभी समुदाय के बुद्धिजीवियों और विचारकों के साथ काम करते हुए देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब और धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को जोड़ने की कोशिश करेगा।
कौन हैं ‘थिंक टैंक’ का हिस्सा
मुस्लिम समाज के इस पहले ‘थिंक टैंक’ में प्रगतिशील सोच रखन वाले जानी मानी हस्तियों को शामिल किया गया है। सभी लोग अपने-अपने विषय के जानकार हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनकी बात न सिर्फ मुस्लिम समाज में बल्कि ग़ैर मुस्लमि समाज में गंभारता से सुनी जाती है। ऐसे लोगों का ‘थिंक टैंक’ सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर मुसलमानों के विचार देश और मीडिया तक पहुंचाने का काम करेगा। इस थिंक टैंक में राज्यसभा के पूर्व डिप्टी चेयरमैन और पूर्व केंदेरीय मंत्री के रहमान खान, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ एसवाई कुरैशी, उड़ीसा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस क़ुद्दुसी, पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक़ अनवर और रोशन बेग़, इस्लामिक कल्चर सेंटर के चेयरमैन सिराजुद्दीन क़ुरैशी, ब्रिगेडियर सईद अहमद, पूर्व स्पेशल पुलिस कमिश्नर एए खान, सीआरपीएफ के पूर्व ADG आफ़ताब खान, पूर्व नौकरशाह अनीस अंसारी, शिक्षा विद पीए इनामदार, एसडब्लू अख़्तर, और जम्मू-कश्मीर के कोंद्रीय वार्ताकार के साथ ही यूसीजी के सदस्य और केंदेरीय सूचना आयुक्त रहे एमएम अंसारी जैसी हस्तियां शामिल हैं।
इनके अलावा मीडिया जगत से जाने माने पत्रकार सईद नक़वी, लगातार आठ साल तक ‘आज तक’ चैनल के डायरेक्टर रहे क़मर वहीद नक़वी, विदेश मामलों के जानकार क़मर आगा, उर्दू अख़बार नई दुनिया के संपादक और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दिक़ी, मशहूर टीवी पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक यूसुफ़ अंसारी, सीमा मुस्तफ़ा, सबा नक़वी, शीबा असलम फ़हमी और मुस्लिम टुडे के संपादक माजिद अली ख़ान जैसे लोग भी शामिल हैं।
कौन है ‘थिंक टैंक’ के पीछे
इस ‘थिंक टैंक’ के पीछे भारतीय कृषि एवं खाद्य परिषद (Indian Chamber of Food and Agriculture) चेयरमैन डॉ. एमजे ख़ान है। ख़ान मूल रूप से कृषि क्षेत्र में पिछले पच्चीस वर्षों से काम कर रहे हैं। पिछले क़रीब 15 साल से वो मुस्लिम समाज से जुड़े मुद्दों पर भी काम कर रहे हैं। उन्होंने ही अलग-अलग क्षेत्र में एकस्पर्ट मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एकजुट कर यह मंच तैयार किया है। एम जे ख़ान राजनीतिक दलों के साथ कई सामाजिक संगठनों के बीच तालमेल बैठाकर काम करने के माहिर माने जाते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने 2015 में भारतीय अल्पसंख्यक आर्थिक विकाल एजेंसी (Indian Minority Economic Development Agency) यानि IMEDA के गठन से की थी। इसका संयोजक कई साल से ग़ैर-सरकारी संगठनों के गठजोड़ से मुस्लिम समाज में आर्थिक विकास के क्षत्र में उल्लेखनीय काम कर रहे ख़ालिद एम अंसारी को बनाया गया। तब से लंबे विचार मंथन के बाद IMPAR वजूद में आया है।
मुस्लिम समुदाय की नकारात्म छवि
हाल में टीवी चैनलों ने मुस्लिम समुदाय की नकारात्मक छवि गढ़ी है। कम शिक्षा और संसाधनों तक सीमित पहुंच के चलते मुस्लिम समुदाय का एक तबक़ा नई परिस्थितियों और चुनौतियों का प्रभावी तरीके से जवाब नहीं दे पाता। IMPAR की योजना है कि वो मुस्लिम समुदाय को आधुनिक शिक्षा और साझे सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़कर राष्ट्र निर्माण में भागीदार बना सके। इसके लिए संस्था की मेन बॉडी के अलावा कई सब-ग्रुप बनाए गए हैं। इनमें राजनीतिक मामलों पर चर्चा के लिए अलग ग्रुप है। वहीं मुस्लिम समाज के अंदरूनी सुधार पर चर्चा के लिए अलग ग्रुप है। मीडिया और सोशल मीडिया में मुसलमानों की भागीदारी बढ़ाने और उनकी लगातार गढ़ी जा रही नकाकात्म छवि को बदलने की रणनीति बनाने के लिए अलग ग्रुप है।
मुसलमानों के बारे में झूठी ख़बरें चलाकर उनकी छवि खराब करने की कोशिशों पर पैना नज़र रखने के लिए मीडिया वाचडॉग नाम से अलग ग्रुप बना है। इसका काम सबसे महत्वपूर्ण है। यह ग्रुप मुसलमानों को बदनाम करने वाली झूठी, मनगढ़ंत ख़बरें दिखाने वाले टीवी चैनलों के रिपोर्टर, एंकर, संपादक और मालिकों के ख़िलाफ़ पुलिस, अदालत और सूचना प्रसाकण मंत्रालय में शिकायत दर्ज कराके उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई कराने पर ज़ोर देगा। यह ग्रुप टीवी चैनलो क कटेंट पर पैना नज़र रखेगा। ज़रा भी ग़लत ख़बर चलते ही न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएश को लिखित में शिकायत करेगा। शिकायात पर सुनवाई नहीं होने पर पुलिस में एफ़आईआर दर्ज कराने से लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाने और सूचना प्रसारण मंत्रालय में चैनल का लाइलेंस रद्द करने की मांग करेगा।
मुस्लिम समाज में अंदरूनी सुधार पर ज़ोर
IMPAR का साफ़तौर पर मानना है कि मुस्लिम समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए आंतरिक सुधारों की ज़रूरत है। मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर हिस्से में अच्छी शिक्षा का अभाव है, सामाजिक और आर्थिक मौक़े कम हैं। इसकी मातृ संस्था भारतीय अल्पसंख्यक आर्थिक विकाल एजेंसी (Indian Minority Economic Development Agency) यानि IMEDA पिछले कई साल से मुस्लिम समाज में मदरसा शिक्षा को रोज़गार से जोड़ने पर काम कर रही है। इसका मक़सद मुस्लिम नौजवानों को रोज़गार की ट्रेनिंग देकर उन्हें स्वरोज़गार के क़ाबिल बनाना है। इसके अलावा इसका मक़सद मुस्लिम समाज में धार्मिक मुद्दों पर संतुलित रुख़ अपनाने पर ज़ोर देना है। समाज में धार्मिक मुद्दों पर टकराव का रास्ता छोड़कर सहअसतित्व की भावना को अपनाने पर भी ज़ोर है।
टीवी चैनलों को मौलवियों का विकल्प देने की कोशिश
पिछले कुछ दिनों में ऐसा देखा गया है कि मुस्लिम समुदाय का मीडिया में ख़राब प्रतिनिधित्व हुआ है। मुसलमानों का प्रतिनिधित्व स्वयंभू मौलवी या फिर अधूरी जानकारी रखने वाले लोग कर रहे हैं। इससे समुदाय के असली मुद्दे लोगों तक नहीं पहुंच रहे। ग़ैर मुस्लिम समाज में मुस्लिम समुदाय के बारे में ग़लत धारणा बनी है। IMPAR की कोशिश जाने-माने लोगों के अपने पैनल के साथ मी़डिया में ठोस और असरदार चर्चाएं करवाने की है। इसके लिए संस्था की तरफ़ से सभी टीवी चैनलो के संपादको को अलग-अलग विषय के जानकारो का लिस्ट भेजकर उनसे अनुरोध किया गया है कि मुस्लिम समाज से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए मौलवियों को न बुलाकर इनमें से मुद्दे के हिसाह से उस विषय के जानकारों को बुलाया जाए।
फिलहाल लॉक डाउन में फोरम से जुड़े लोग वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए बैठक करके हालात पर चर्चा करते हैं। दो अप्रैल को सकी पहली बैठर हुई थी। उसके बाद कई ऐऔर बैठकों हो चुकी हैं। अलग-अलग ग्रुप की कई बैठकें हो चुकी हैं। इस संस्था नें कई फेक न्यूज़ के मामलों कई स्तर पर शिकायत की है। मोटे तौर पर यह फोरम रिसर्च के ज़रिए मुसलमानों का सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक डाटा इकट्ठा करेगा जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्क्ष रूप से समुदाय पर असर पड़ता है। मंत्रालयों, राज्य सरकारों, मीडिया, राजनीतिक दलों, सामाजिक- बुद्धिजीवी संगठनों से बातचीत करके मुसलमानों के मुद्दों मुख्यधारा में लाना भी फोरम का मक़सद है।