धर्म प्रचार नहीं, मुसलमानों को इस्लाम के मुताबिक़ जीना सिखाती है तबलीग़ जमात

यूसुफ़ अंसारी, Twocircles.net 

पिछले कई दिनों से तबलीग़ जमात और दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित उसका मरकज़ तमाम मीडिया चैनलों और अख़बारों की सुर्ख़ियां बना हुआ है। कई चैनलों ने मरकज़ को कोरोना वायरस का एपी सेंटर क़रार दे दिया है और जमात से जुड़े लोगों को देश भर में कोरोना वायरस फैलाने का ज़रिया करार दे दिया है। मीडिया का एक बड़ा हिस्सा तबलीग जमात को पूरा वायरस का विलेन साबित करने पर तुला हुआ है वही मीडिया के कुछ लोग तबलीग जमात के बारे में अज्ञानता के चलते उल्टी सीधी बातें भी बता रहे हैं।


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तबलीग़ जमात को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। मीडिया में इसे लेकर अधकचरी जानकारियां परोसी जा रही हैं। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने भी तबलीग़ जमात को आतंक का स्रोत करार दे दिया है। वहीं उत्तर प्रदेश के शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने तबलीग जमात के सदर को फांसी की सजा देने की मांग की है। मीडिया में लगातार जमात पर तरह-तरह के आरोप लग रहे हैं। इस लेख के ज़रिए हम को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आख़िर तबलीग़ जमात है क्या? इसका असल मकसद क्या है? यह कब और क्यों शुरू हुई?

तब्लीग़ जमात की शुरुआत

तब्लीग़ जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर हुई थी। मौलाना मोहम्मद इलियास कांधलवी ने
इसकी शुरुआत की थी। यह धार्मिक आंदोलन इस्लाम की देवबंदी विचार धारा से प्रभावित और प्रेरित है। मौलाना मोहम्मद इलियास उत्तर प्रदेश के  मुज़फ़्फ़रनगर जिले के कांधला गांव में पैदा हुए थे। उनके जन्म की ठीक तारीख़ पता नहीं है। इतना पता है कि 1303 हिजरी यानी 1885-1886 में उनका जन्म हुआ था। कांधला गांव में पैदा होने की वजह से ही उनके नाम में कांधलवी लगता है। देवबंद से जुड़े तमाम मौलाना अपने नाम में अपने पैदा होने की जगह का नाम बड़े फख्र से जोड़ते हैं। यह पुराना चलन है और आज भी जारी है। मोलाना इलियास के वालिद मोहम्मद इस्माईल थे और मांं सफ़िया थीं। एक स्थानीय मदरसे में उन्होंने एक चौथाई कुरान का हिफ़्ज़ किया यानि मौखिक तौर पर याद किया। बाद में अपने पिता के मार्गदर्शन में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में क़ुरआन को पूरा याद किया। उसके बाद अरबी और फ़ारसी की शुरुआती किताबों को पढ़ा। बाद में वो रशीद अहमद गंगोही के साथ रहने लगे। 1905 में रशीद गंगोही का इंतेक़ाल यानि निधन हो गया। 1908 में मौलाना मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाख़िला लिया।

मेवात से ही क्यों शुरू हुई तब्लीग़ ?

हरियाणा के मेवात इलाके में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते थे। इनमें से ज्यादातर ने काफ़ी बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार किया था। लिहाज़ा उन पर हिंदू रीति रिवाज हावी थे। उनके नाम भी आधे हिंदू और आधे मुसलमान हुआ करते थे। मसलन मोहम्मद रमेश या फिर राकेश अहमद। मेवात और इसके आसपास के कुछ इलाक़ों मे आज भी ऐसे नाम मिल जाते हैं। तब वहां के मुसलमान बस नाम के ही थे। रोज़े नमाज़ से दूर थे। यहां तक कहा जाता है कि तब्लीग़ का काम शुरू होने से पहले तक मेवात के लोग सही से कलमा तक पढ़ना नहीं जानते थे।

इसाई मिशनरी के ख़िलाफ़ शुरु हुआ था तब्लीग़ आंदोलन

20वीं सदी में उस इलाक़े में मिशनरी ने काम शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमानों ने मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया। यहीं से इलियास कांधलवी को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इस्लाम को मजबूत करने का ख्याल आया। उस समय तक वह सहारनपुर के मदरसा मज़ाहिरुल उलूम में पढ़ा रहे थे। वहां से पढ़ाना छोड़ दिया और मेव मुस्लिमों के बीच काम शुरू कर दिया। 1927 में तब्लीगी जमात की स्थापना की ताकि गांव-गांव जाकर लोगों के बीच इस्लाम की शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाए।

मरकज़ क्या होता है? 

तब्लीगी जमात के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। बड़े-बड़े शहरों में उनका एक सेंटर होता है जहां जमात के लोग जमा होते हैं। उसी को मरकज कहा जाता है। वैसे भी उर्दू में मरकज़ जो है वह इंग्लिश के सेंटर और हिंदी के केंद्र के लिए इस्तेमाल होता है।

जमात क्या होती है? 

उर्दू में इस्तेमाल होने वाले जमात शब्द का मतलब किसी एक खास मक़सद से इकट्ठा होने वाले लोगों का समूह है। तब्लीगी जमात के संबंध में बात करें तो यहां जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीग़ी मिशन को को समर्पित कर देते हैं। इस दौरान उनका अपने घर, कारोबार और सगे-संबंधियों से कोई संबंध नहीं होता है। वे गांव-गांव, शहर-शहर, घर-घर जाकर मुसलमानों के बीच इस्लाम की बुनियादि शिक्षा का प्रचार करते हैं। इस दौरान इस्लामी शिक्षा के मुताबिक़ जिंदगी गुज़ारने के तौर तरीक़े सीखने और सिखाने का दौर चलता है। जमात से जुड़े लोग बाक़ी लोगों से अपने साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं। इस तरह उनके घूमने को गश्त कहा जाता है।

जमात का एक मुखिया होता है जिसको अमीर-ए-जमात कहा जाता है। गश्त के बाद का जो समय होता है, उसका इस्तेमाल वे लोग नमाज़, कुरान की तिलावत और ज़िक्र (प्रवचन) में करते हैं। जमात से  जुड़ने का एक नियम यह है कि हर साथी महीने में कम से कम 3 दिन, तीन महीने में 10 दिन साल में 40 दिन और जिंदगी में 4 महीने तबलीग जमात के मिशन को अनिवार्य रूप से देंगे।  बाक़ी लोग एक निश्चित समय के लिए जुड़ते हैं। कोई लोग तीन दिन के लिए, कोई 40 दिन के लिए, कोई चार महीने के लिए तो कोई साल भर के लिए शामिल होते हैं। इस अवधि के समाप्त होने के बाद ही वे अपने घरों को लौटते हैं और रोज़ाना के कामों में लगते हैं।  सबसे खास बात यह है कि जमात में जाने वाले लोग अपना ख़र्च खुद उठाते हैं वह किसी पर निर्भर नहीं होते हैं और ना ही इसके लिए चंदा करते हैं।

तब्लीगी जमात के सिद्धांत 

तब्लीगी जमात के सिद्धांत छह बातों पर आधारित हैं। इन्हें छह बातें, छह सिफ़आत और छह नंबर भी कहा जाता है। वे सिद्धांत इस तरह हैं…
1. मुकम्मल ईमान यानी पूरी तरह अल्लाह पर यक़ीन रखना
2. दिन मे पांच वक़्तत पाबंदी से नमाज़ पढ़ना
3. इल्म ओ ज़िक्र यानी धर्म से संबंधित बातें करना
4. इकराम-ए-मुस्लिम यानी मुसलमानों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना।
5. इख़्लास-ए-नीयत यानी नीयत का साफ़ रखना
6. रोज़ाना मर्रा की ज़िंदगी में इस्लामी उसूलों को व्यवहारिक रूप से अमल में लाना

तालीम और फ़ज़ाइल-ए-आमाल 

फ़ज़ाइल-ए-आमाल जिसका मतलब हुआ अच्छे कामों के फायदे या ख़ासियतें। फ़ज़ाइल-ए-आमाल तब्लीग़ी जमात के बीच पवित्र किताब है। उस किताब में उनके छह सिद्धांत से संबंधित बातें है। दोपहर की नमाज़ के बाद तब्लीग़ी जमात से जुड़े लोग एक कोने में जमा हो जाते हैं। वहां कोई एक व्यक्ति फ़ज़ाइल-ए-आमाल पढ़ता है और बाकी लोग ध्यान से सुनते। सऊदी अरब समेत कई इस्लामी देशों में फ़ज़ाइल-ए-आमाल पर पाबंदी है। लिहाज़ा पिछले कई साल से तबलीग़ जमात ने मुंंतख़िब अहादीस नाम की किताब को अपने मिशन में शामिल किया है।

तब्लीगी जमात का मरकज़ 

भारत में दिल्ली के हज़रत निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद में तब्लीग़ जमात का मरकज़ है। दुनिया भर में तब्लीग़ जमात के बीच इस मरकज़ की हैसियत तीर्थस्थल जैसी हैंं। 6 मंजिली इमारत में करीब 10 हज़ार लोग एक साथ रह सकते हैं। हर साल सालाना जलसा होता है। जलसा के बाद दुनिया भर के लिए जमा कर निकल जाती हैंं। इस साल भी 13 से 15 मार्च के भी जलसा हुआ और जमातों के निकलने का सिलसिला शुरू हो गया था। लेकिन अचानक लॉकडाउन के ऐलान के बाद डेढ़ हज़ार लोग यहीं रह गए।

पाकिस्तान से तबलीग़ जमात की दूरी 

एक और ख़ास बात यह है तबलीग़ जमात ने सुबह कहीं पाकिस्तान से दूरी बनाए रखी है। पाकिस्तान के लोग भारत में तबलीग जमात में शामिल होने के लिए आते हैं और ना ही भारतीय लोग पाकिस्तान जाते हैं। बाकी दुनिया भर से भारत में और भारत से दुनिया भर में तबलीग़ जमात में लोगों का आना जाना लगा रहता है। पाकिस्तान के रायवंड में मदनी मस्जिद में तब्लीग़ जमात का मरकज़ है। ये दोनों अहम मरकज़ हैं। बांग्लादेश का अपना अलग मरकज़ है। इसी तरह कई इस्लामी और मुस्लिम देशों में भी जमात के अलग-अलग मरकज़ हैंं।

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