हैदराबाद छात्र संघ चुनाव में अंबेडकर वादियों और सामाजिक न्याय के पैरोकारो ने झंडा गाड़ दिया है। एएसए,डीडीयू, एसएफआई और अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन गठबंधन ने सभी पदों पर चुनाव जीत लिया है और इसे सामाजिक न्याय की जीत बताया है। हैदराबाद छात्र संघ में एक और ऐतिहासिक बात हुई है वो यह है कि एक ट्रांसजेंडर छात्र ऋतिक ने कार्यसमिति सदस्य का चुनाव जीता है। यह रिपोर्ट पढ़िए
मोहम्मद जमीर हसन।Twocircles.net
हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में एएसए डीडीयू एसएफआई और अंबेडकर छात्र संघ के गठबंधन ने एकतरफा जीत हासिल की है। इस गठबंधन ने छात्रसंघ के सभी पदों पर कब्जा कर लिया है। दलित समुदाय से आने वाले प्रज्वल गायकवाड अध्यक्ष चुने गए हैं। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) के बालकृष्ण को 608 मतों से हराया। कार्यकारी समिति पद का चुनाव दलित ट्रांसजेंडर ऋतिक लक्ष्मण ने जीता। वे हैदारबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के किसी पद पर चुनाव जीतने वाली पहली ट्रांसजेंडर हैं। उपाध्यक्ष पद के लिए पृथ्वी साई, महासचिव पद पर कृपा मारिया जॉर्ज, संयुक्त सचिव के पद पर काठी गणेश, खेल सचिव पद पर सी एच जयराज और सांस्कृतिक सचिव पद पर लखित कुमार ने जीत दर्ज की है। इन सभी ने इस जीत को सामाजिक न्याय की जीत बताया है। इस चुनाव में 5300 छात्रों को मतदान के लिए योग्य पाया गया, इनमें 76 प्रतिशत वोटिंग हुई।
जीत के बाद अध्यक्ष प्रज्वल ने कहा कि दलित होने की वजह से हॉस्टल मिलने में भी उन्हें दिक्कत आई थी। आज वो अध्यक्ष है। वो सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे उन्हें ताकत इसी विचारधारा से मिली है। महाराष्ट्र के नासिक से ताल्लुक रखने वाले प्रज्वल बेहद साधारण परिवार आते हैं। प्रज्वल इस जीत का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं। वे कहते हैं कि मेरे माता-पिता ने अपने प्रोफेशन लाइफ में काफी भेदभाव का सामना किया, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षक की ड्यूटी पूरी ईमानदारी से की। ताकि हम पढ़ सकें और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकें। वो कहते हैं कि यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। यहां 2019 में एमए सामान्य अध्ययन में प्रवेश लिया। लेकिन हॉस्टल नहीं मिलने की वजह से पहले तीन महीने काफी खराब गुजरे।
प्रज्वल कहते हैं कि ऐसा नहीं था कि विश्वविद्यालय में छात्रावास की सीटें नहीं थीं। वो मेरी पहचान देखकर देना नहीं चाहते थे। विश्वविद्यालय प्रशासन और एबीवीपी पर आरोप लगाते हुए वो कहते हैं कि यूनिवर्सिटी प्रशासन भवन में महीनों से सुबह-शाम हॉस्टल के लिए मेरा आना-जाना लगा रहता था, लेकिन मुझे हॉस्टल अलॉट नहीं किया जा रहा था, जबकि उच्च जाति और एबीवीपी के लोगों के लिए छात्रावास सुलभ उपलब्ध था। इस संघर्ष के दौरान मैं अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के लोगों के संपर्क में आया और उनके दखल के बाद हॉस्टल अलॉट हो गया। तब से में अंबेडकर छात्र संघ का हिस्सा हूं और हमेशा सामाजिक न्याय के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की गलत नीतियों के खिलाफ खड़ा रहा हूं। आज जो कुछ भी हूं, अंबेडकर स्टूडेंट एसोशिएशन की वजह से ही हूं।
प्रज्वल कहते हैं कि मै दलित अध्यक्ष हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि मेरा फोकस सिर्फ दलितों पर रहेगा। जब भी आरक्षण खत्म करने या लागू नहीं करने की बात होगी। हम उसके खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे। हमने सामान्य छात्रों को मिलने वाले ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लागू करने के लिए भी लड़ाई लड़ी है। 2019 में जब कैंपस में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू नहीं हुआ तो हमने चार महीने तक लड़ाई लड़ी। यहां मुस्लिम बच्चों के साथ भेदभाव के मुद्दे को उठाया और हमारे संघर्ष के चलते यहां चीजों में सुधार हुआ है। हम सामाजिक न्याय के लिए हम हमेशा लड़ते रहेंगे। वे कहते हैं कि हम लोगों ने एकजुट होकर फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीती भी। हमने ट्रांसजेंडर उम्मीदवार ऋतिक को मैदान में उतारा है, ताकि वह भी अपने लोगों को विश्वविद्यालय में ला सके और उन्हें उनका हक दिलवा सके।
छात्र संघ चुनाव में कार्यसमिति का चुनाव जीतने वाले ट्रांसजेंडर ऋतिक लक्ष्मण गुजरात के कच्छ जिले के रहने वाले हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय में एमए समाजशास्त्र स्टूडेंट हैं। ऋतिक लक्ष्मण बताते हैं कि हमारे साथ हर जगह भेदभाव किया जाता है। हम इन भेदभावों के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना चाहते हैं। हमें बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा जाता है। उदाहरण के लिए ट्रांसजेंडर लोगों को पुरुषों या महिलाओं के लिए बने शौचालयों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जाता है। हमारे लिए कैंपस में विशेष छात्रावास की सुविधा नहीं होती है। हम यहां तक भारी संघर्षों के बाद पहुंचते हैं। हम इन्हीं बुनियादी सुविधाओं की लड़ाई को यहां से लेकर देश की तमाम यूनिवर्सिटी में फैलाना चाहते हैं।
ऋतिक की ऐतिहासिक जीत के बाद उनके पिता लक्ष्मण ललन ने गर्व महसूस करते हुए कहा कि जिस समाज के लिए हमने उन्हें लड़ने के लिए तैयार किया था। आज ऋतिक ने एक मुकाम हासिल किया है। लेकिन मैं उन्हें इस जीत से ज़्यादा खुश होने कि सलाह बिल्कुल भी नहीं दूंगा। ऋतिक को 85% लोगों की आवाज बनना है, इस पर हमने उनसे पूछा कि आप 85% में किसे देखते हैं, तो उन्होंने कहा कि इस देश में दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों की संख्या 85% है। केवल 15% लोग ऐसे हैं जिन्होंने 85% लोगों को हाशिए पर रखा है। और हमारी लड़ाई इन लोगों के खिलाफ है।
उन्होंने बताया कि हमने हमेशा अपने बच्चों को बाबासाहेब की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। हमें अपने समाज के साथ दलित, आदिवासी अल्पसंख्यक की आवाज बनना है। यही कारण था कि मैंने केवल आठवीं और मेरी पत्नी दिव्या लल्लन ने सातवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। लेकिन हमने ऋतिक को एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाया ताकि वह हमारे समाज के लोगों की आवाज बन सके। हमने जिन परेशानियों को झेला है यह लोग नहीं झेले। ऋतिक की स्कूली शिक्षा कच्छ, गुजरात में ही हुई है। हैदराबाद में इस जीत की काफी चर्चा है।