ग्राउंड रिपोर्ट : बिहार में स्नातक की डिग्री में लगते हैं छह और परास्नातक में चार साल, छात्र है बेहाल 

आसिफ इकबाल | Twocircles.net

बिहार के आरा की रहने वाली अपर्णा कुमारी की इच्छा दिल्ली के जेएनयू से पीएचडी कर प्रोफेसर बनने की है। लेकिन उनके इस सपने के आगे उनका वीर कुंवर विश्वविद्यालय अड़चन बनकर खड़ा हो गया, जहां से वे परास्नातक कर रही हैं। उन्होंने 2020 में दाखिला लिया था, लेकिन विश्वविद्यायल में इन तीन वर्षों में पहले वर्ष की ही परीक्षा हुई है। अब बस उनकी यही ख्वाहिश है कि विश्वविद्यालय जल्द से जल्द परीक्षा कराकर रिजल्ट जारी करे, ताकि वो नेट की परीक्षा में शामिल हो सकें और पीएचडी के लिए जेएनयू में आवेदन कर सकें। वो कहती हैं कि सत्र में देरी की वजह से उनकी उम्र बढ़ रही है और हम लड़कियों के लिए यह बहुत बड़ी पीड़ा है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ ही परिवार की तरफ से शादी का दबाव बनने लगता है। 


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शैक्षणिक सत्र में देरी की समस्या अकेले अपर्णा की यूनिवर्सिटी की नहीं है। बिहार के ज्यादातर विश्वविद्यालय में सत्र में देरी के चलते यहां के लाखों छात्र-छात्राओं के सपने दम तोड़ रहे हैं। यहां बच्चों को तीन साल की स्नातक डिग्री लेने में छह साल और दो साल की परास्नातक की डिग्री लेने में 4 साल साल लग रहे हैं। इसके चलते यहां छात्र-छात्राएं आए दिन आंदोलन कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही कहानी छपरा के जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय से स्नातक कर रहे आकाश की भी हैं। उनका सत्र 2020-23 का था, लेकिन अब तक सिर्फ पहले वर्ष का ही परीक्षा हुई है। यहां तीन साल की डिग्री पांच साल में पूरी होना आम बात है। आकाश  कहते हैं कि जिस तरह से सत्र में देरी चल रही है, 2025 से पहले डिग्री मिलने के आसार नहीं दिख रहे हैं। वे बिहार लोक सेवा आयोग और एसएससी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। आकाश कहते हैं कि जब तक स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं होगी तब तक प्रतियोगी परीक्षाओं के रास्ते बंद हैं।

हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका के अनुसार जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय से संबद्ध 35 कॉलेज हैं। स्नातक में लगभग 38 हजार छात्र नामांकित  हैं, परन्तु अभी तक सत्र  2018- 21 की भी परीक्षा नहीं हो पाई है। इसी विश्वविद्यालय के पोस्ट ग्रेजुएशन एक अन्य छात्र ( नाम न बताने की शर्त पर)  कहते हैं, ‘हमारा सेशन 2019-21 का था। लेकिन अभी तृतीय सेमेस्टर का एग्जाम दे रहा हूं, चार साल बाद भी डिग्री हाथ में नहीं है। वे आगे कहते हैं कि इस बीच बीएड भी कर लेता पर दो रेगुलर कोर्स एक साथ नहीं कर सकते।  अंजली मगध विश्वविद्यालय की छात्रा हैं। इनका सत्र 2019-21  का है। अब तक अंजली एक भी सेमेस्टर का परीक्षा नहीं  दे पाई है। अंजली का भी  सपना था कि  एमए पास कर यूजीसी नेट का परीक्षा दे। वह एसटीईटी, बीटीईटी ( शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास है। अगली टीचर  बहाली में वह संभवतः टीचर बन जाएगी। सत्र की देरी से इसका पूरा समय बेकार चला जाएगा। वह कहती हैं कि एक लड़की के लिए एक-एक साल कीमती होता है।मगध यूनिवर्सिटी ने हम लोगों का उम्र बर्बाद कर दिया।

मगध विश्वविद्यालय की गिनती राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालय में होती है। इस विश्वविद्यालय से 44 महाविद्यालय, 24 स्नातकोत्तर विभाग सहित 85 कॉलेज सम्बद्ध हैं।मगध विश्वविद्यालय में लगभग 4 लाख छात्र-छात्राएं नामांकित है। परन्तु दो- तीन सालों से विश्वविद्यालय परीक्षा आयोजित नहीं करा पाई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सत्र 2017- 20 के लगभग 90 हजार  छात्रों का रिजल्ट अभी भी  पेंडिंग है। वहीं सत्र 2018-21 के  पार्ट-2  की  परीक्षा  ले ली गई है, परन्तु नतीजे अभी नहीं आए हैं। सत्र 2019 -22 के पार्ट- 1 के  परिणाम भी  अभी  जारी नहीं किए गए हैं।  वहीं 2020- 23 के पार्ट- 2  के  छात्रों का रजिस्ट्रेशन तक  करने में विश्वविद्यालय असफल रही है। मगध विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि पिछले कई सालों से विश्वविद्यालय में अधिकारियों की स्थायी नियुक्ति नहीं थी। इस वजह से कार्यालय संबंधी काम राजभवन से होता था। इस वजह से अनावश्यक देरी होती रही है। पिछले दिनों स्थायी परीक्षा नियंत्रक आए हैं। अब काम तेज़ी से हो रहा है। परीक्षा और रिजल्ट में हो रही देरी का क्या कारण है और इसमें कब तक सुधार किया जाएगा। इस संबंध में जानकारी के लिए जब हमने मगध यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक को फोन किया तो उनके द्वारा यह कहकर कॉल काट दिया गया कि अभी मैं काफी व्यस्त हूं। बाद में बात करता हूं। बाद में फोन वह उपलब्ध नहीं हुए।

 

सत्र पर देरी के सवाल पर वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के सूचना और जन संपर्क पदाधिकारी प्रोफेसर रण विजय सिंह भी कुछ ऐसी ही कहानी बताते हैं। वे कहते हैं कि विश्वविद्यालय में पर्याप्त स्टाफ नहीं हैं। इस विश्वविद्यालय में गैर शैक्षणिक संवर्ग के कर्मचारियों आधे से अधिक सीट खाली है।इस वजह से सत्र में देरी हुई है। इस समस्या को दूर करने के लिए हम लोग देर रात तक काम करते है। वे आगे कहते हैं कि बीते दिनों महामहिम राज्यपाल महोदय के साथ हम लोगों की मीटिंग हुई थी। हम अगले 6 माह में इस समस्या पर काबू पा लेंगे।  

पिछले दिनों पटना उच्च न्यायालय ने सत्र में देरी को रहते लगाई गई एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन को फटकार लगाई और एक निश्चित समय सीमा के भीतर सत्र को दुरुस्त करने को कहा है। पटना हाई कोर्ट के वकील और जनहित याचिकाकर्ता विवेक कहते हैं कि जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई  कर रहा था, तब वहां कुछ ऐसे भी छात्र मिलें, जिनका दिल्ली विश्वविद्यालय में इस वजह से एडमिशन नहीं हो पाया क्योंकि उनका स्नातक का ही रिजल्ट नहीं आया था। इसी समस्या के समाधान के लिए हमने पटना उच्च न्यायलय में जनहित याचिका  दायर की। अब तक 9 सुनवाई हो चुकी है और अगली सुनवाई 28 अगस्त 2023 को है। याचिका में  सत्र देरी से हो रहे छात्रों के लिए क्षतिपूर्ति की भी मांग की गई है. इसमें यह भी कहा गया है कि, राज्य स्तरीय ट्रिब्यूनल गठित कर इन अनियमितताओं की  शिकायत सुनी जानी चाहिए. समय पर डिग्री का न मिलना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। बता दें कि बिहार पूर्वी भारत में एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थान में से एक है। बिहार में कुल 30 विश्वविद्यालय, 17 राज्य विश्वविद्यालय, छः  केन्द्रीय  विश्वविद्यालय, दो डीम्ड और पांच निजी यूनिवर्सिटी है। उच्च शिक्षा में बिहार के केवल 1 %  छात्र ही नामांकन करा पाते है (तकनीकी और  गैर-तकनीकी कोर्स सहित)। एक आंकड़े के मुताबिक बिहार का ग्रॉस एनरोलमेंट अनुपात (18- 23 साल के बीच ) 14.9  प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह अनुपात 25.2 प्रतिशत है। बिहार में प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख छात्र बारहवीं पास करते हैं। उनमें  से केवल 10 लाख छात्र ही उच्च शिक्षा में जा पाते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ), केंद्र की शिक्षा विभाग द्वारा जारी किया जाता  है। हर साल देश के 100 सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों का इसके अंतर्गत चयन किया जाता है।  इस लिस्ट में बिहार के एक भी विश्वविद्यालय शामिल नहीं हैं।

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