अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बारमेर (राजस्थान) : दलित मेधा की मिसाल बन चुकी डेल्टा मेघवाल की लड़ाई अब घर-घर का हिस्सा बनती जा रही है. मगर इस लड़ाई का दुखद पहलू यह है कि डेल्टा मेघवाल की त्रासदी भी उतनी ही तेज़ी से समाज के कोने-कोने में फैल रही है.
डेल्टा मेघवाल के पिता महेन्द्रराम मेघवाल इस दर्दनाक कहानी के पहलू को बयान करते हैं. उनके मुताबिक़ उनकी बेटी डेल्टा के इस दुनिया से चले जाने के बाद उनकी जानकारी में ऐसे कुल 28 मेघवाल समाज की लड़कियों के मामले आ चुके हैं, जिनका ताक़तवर जाति के लोगों ने शारिरीक शोषण किया और डरा-धमका कर चुप करा दिया. ये सारे मामले बारमेर ज़िला के हैं.
वो अपनी बातचीत में कई दिल दहला देने वाली घटनाओं का भी ज़िक्र करते हैं. वो बताते हैं कि यहां 4 साल की छोटी बच्ची को भी नहीं छोड़ा गया. दरिंदों ने उसे भी हवस का शिकार बनाया. समाज को शर्मसार कर देने वाली ये घिनौनी हरकत स्कूल के समय हुई. उस बच्ची को बहला फुसलाकर स्कूल के बाहर ले जाया गया और सुनसान जगह पर उसके साथ ग़लत कार्य किया गया. बच्ची के चीखने की आवाज़ सुनकर जब वहां लोग पहुंचे तो वो दरिंदे फ़रार हो गए.
महेन्द्रराम आगे एक दूसरी घटना का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि एक महिला के साथ गुंडों ने उसके पति के सामने उसको बंधक बनाकर रेप किया. वहीं एक दूसरी घटना में एक नाबालिग़ बच्ची को ‘समाज के घिनौने दरिंदे’ अपनी हवस का शिकार बना रहे थे, तभी उसकी मां वहां पहुंच गई. उसने अपनी बच्ची को छोड़ देने की मिन्नतें की. लेकिन उन दरिंदों ने नहीं छोड़ा, बल्कि वो कहने लगें कि –‘तेरी आंखों के सामने तेरी बच्ची को ज़िन्दा गाड़ देंगे.’ उन दरिंदों ने बच्ची को उसके मां के सामने हवस का शिकार बनाने के बाद मां के साथ भी छेड़छाड़ व मारपीट की. इन घटनाओं के बारे में बताते-बताते महेन्द्रराम की आवाज़ बैठ जाती है.
वो अपनी आंखों से आंसू पोछते हुए बताते हैं कि डेल्टा की लड़ाई अब लाखों दबी-कुचली दलित लड़कियों के स्वाभिमान और अस्मिता की लड़ाई बन चुकी है. वो इस लड़ाई को अधूरा नहीं छोड़ेंगे.
हालांकि बातचीत के दरमियान वो कई बार मायूस भी नज़र आते हैं. वो काफी मायूस होकर बोलते हैं, ‘आरएसएस के इशारे पर चलने वाली राजस्थान की वसुंधरा राजे की सरकार ने यह मन बना लिया है कि अपने राज में पिछड़े, दलितों, आदिवासियों व मज़दूरों के साथ कोई इंसाफ़ नहीं करना है.’
वो आगे बताते हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की नीयत कभी भी डेल्टा के मामले में साफ़ नज़र नहीं आई. कहते हैं, ‘खुद वसुंधरा राजे ने मुझे डराने के लिए एक मुलाक़ात में कहा था कि ‘सोच लीजिए, अगर सीबीआई जांच करवा दी तो आप जेल चले जाएंगे.’ उनकी इस बात से आप उनकी मंशा का अंदाज़ा लगा सकते हैं.’
महेन्द्रराम ख़ासतौर पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से बेहद नाराज़ हैं. उनके मुताबिक़ सिर्फ़ सियासी फ़ायदा लेने की ख़ातिर राहुल गांधी उनकी चौखट पर आए और सिर्फ़ सियासत की. आलम यह है कि कांग्रेस का कोई नेता अब हाल-समाचार पूछने भी नहीं आता. न तो कांग्रेस ने कोई मदद की और न ही राहुल गांधी ने दुबारा उनका हाल पूछा, जबकि उस समय राहुल गांधी ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि –‘मरते दम तक डेल्टा के लिए संघर्ष करूंगा.’
दबी आवाज़ में महेन्द्रराम यहां तक इशारा करते हैं कि राहुल गांधी की इस सियासी ड्रामे के चलते वसुंधरा सरकार ने भी इस मामले की ओर से मुंह मोड़ लिया है. इंसाफ़ और राहत की उम्मीदों को एक बड़ा झटका लगा है.
महेन्द्रराम इससे अधिक नाराज़ अपने समाज के जन-प्रतिनिधी तरूण राय कागा से हैं. उनका कहना है कि –‘तरूण कागा ने डेल्टा प्रकरण में समाज को धोखा देने का काम किया है. उन्होंने मेरे घर पर कई बार आकर भरोसा दिलाया और कहा कि मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सीबीआई जांच करवाकर न्याय दिलाऊंगा. मैं भी उन पर भरोसा करके हर बार गया. लेकिन उन्होंने जो नीचता दिखाई, वो किसी और के साथ न करें, तो बेहतर हो.’
महेन्द्रराम बताते हैं कि इस देश में मानवाधिकार कार्यकर्ता और मानवाधिकार आयोग भी मुझे सिर्फ़ दिखावा ही लगता है. ऐसा क्यों? यह सवाल पूछने पर बताते हैं कि –‘पिछले महीने राज्य मानव अधिकार आयोग ने उन्हें एक पत्र भेजा था. मैंने उसका लिखित जवाब दिया. मगर आज तक हुआ कुछ भी नहीं…’
डेल्टा मेघवाल के इंसाफ़ की लड़ाई जितनी लंबी है, उतनी ही दुश्वार भी है. डेल्टा के पिता जिस हक़ीक़त की ओर इशारा करते हैं, वो बेहद ही दर्दनाक है. असल ‘हक़ीक़त’ तो यह है कि डेल्टा की निर्मम हत्या के बाद भी यह सच ज़िन्दा है कि अब तक न तो समाज का नज़रिया बदला है और न ऐसे मामलों में कोई कमी आई है.
ऐसे में डेल्टा जैसी मासूम लड़कियों के नाम पर सियासत करने वाले के कामों को बेनक़ाब करने की सख्त ज़रूरत है. जब तक ये राजनीतिज्ञ बेनक़ाब नहीं होंगे, तब तक इस आन्दोलन को धार नहीं मिलने वाली है. राहुल गांधी से लेकर वसुंधरा राजे तक ये सभी नेता इस सियासी पाखंड के जीते-जागते प्रतीक हैं. इसे बेनक़ाब करना और साथ ही दूसरी ‘डेल्टाओं’ को इंसाफ़ दिलाना वक़्त की सख्त ज़रूरत और मांग दोनों है.
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