अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : हज कमिटी ऑफ़ इंडिया भले ही यह कहती हो कि ‘हज कमिटी बग़ैर किसी मुआवज़े व मुनाफ़े के हाजियों के लिए काम करती है.’ लेकिन TwoCircles.net के पास मौजूद तथ्य ये बताते हैं कि यही हज कमिटी मुनाफ़ा कमाने का कोई भी मौक़ा छोड़ना नहीं चाहती है.
बताते चलें कि हज कमिटी ऑफ़ इंडिया भारतीय हाजियों से इंडियन करेंसी में पैसे लेती है, लेकिन ख़र्च सऊदी रियाल में करती है. इसके लिए उसे फॉरेन एक्सचेंज करना होता है और यही एक्सचेंज हज कमिटी के लिए एक कमाई का बेहतरीन ज़रिया भी है.
हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के गाईडलाइन्स के मुताबिक़, हाजियों की रिहाईश, कुर्बानी, सवारियों से आना-जाना और दूसरे तमाम ज़रूरी खर्चों की अदायगी हज कमिटी ऑफ़ इंडिया सऊदी रियाल में करती है. इसलिए एक्सचेंज रेट तय करने के लिए हज कमिटी ऑफ़ इंडिया टेंडर निकालती है और फिर सऊदी रियाल की क़ीमत तय की जाती है.
इस बार हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने एक सऊदी रियाल की क़ीमत 17.39 रूपये तय किया है, जबकि आज की तारीख़ में ये रेट 17.10 रूपये चल रहा है.
हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के ज़रिए जारी गाईडलाइन्स यह भी बताती है कि, एक्सचेंज रेट के कम या ज़्यादा होने पर अगर खर्चे की रक़म ज़्यादा है तो हर हाजी से या तो रवानगी के वक़्त उनके ज़रिए जमा की गई पेशगी रक़म में से ले ली जाएगी या फिर इस बारे में हज कमिटी ऑफ़ इंडिया अलग से ऐलान करेगी, जिसके तहत हर हाजी को ज़्यादा रक़म अदा करनी होगी.
लेकिन यहां यह भी बताते चलें कि हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने यह कहीं नहीं लिखा है कि हज के लिए सऊदी अरब चले जाने के बाद यदि सऊदी रियाल की क़ीमत गिरती है तो बची हुई रक़म हाजियों को वापस लौटा दी जाएगी.
बताते चलें कि हज कमिटी ऑफ़ इंडिया प्रत्येक हाजी से बतौर पेशगी रक़म 80 हज़ार रूपये लेती है. फिर इस रक़म में से 2100 सऊदी रियाल हर हाजी को सऊदी अरब पहुंचने से पहले दे दिया जाता है ताकि वो इस रक़म को अपने खाने-पीने पर खर्च कर सकें.
इस सिलसिले में हज कमिटी ऑफ़ इंडिया से बात करने पर सीईओ मो. शहबाज़ अली का कहना है कि, ‘ये बात ग़लत है. कमिटी एक्सचेंज के लिए टेंडर निकालती है और इस दौरान हाजियों के फ़ायदे का पूरा ध्यान भी रखती है. बाक़ी मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. क्योंकि मुझे हज कमिटी ऑफ इंडिया का एडिश्नल चार्ज मिला है. अभी मुझे आए हुए तक़रीबन दो महीने हुए हैं.’
बताते चलें कि शहबाज़ अली फिलहाल नेशनल माईनॉरिटीज़ डेवलपमेंट एंड फाईनेंस कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं.
फॉरेन एक्सचेंज से होने वाली कमाई का नया आंकड़ें फिलहाल हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने आरटीआई के ज़रिए भी नहीं दिए हैं, लेकिन हज कमिटी की 2010-11 की एक रिपोर्ट बताती है कि फॉरन एक्सचेंज से लगभग 48 करोड़ का मुनाफ़ा हज कमिटी को हुआ था.
वहीं हज के मामलों पर काम करने वाले मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता अत्तार अज़ीमी बताते हैं कि, इस फॉरेन एक्सचेंज के ज़रिए हज कमिटी ऑफ़ की अच्छी कमाई होती है.
वो कहते हैं कि, हज कमिटी ऑफ़ इंडिया से ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि वो आख़िर क्यों हाजियों से उनके खुद के खर्चे के लिए भी अपने पास पैसे जमा कराती है और खुद उनके इंडियन कैरेंसी को सऊदी रियाल में बदल कर देती है. जब इससे इनको कोई लाभ नहीं मिल रहा है तो वो ऐसा क्यों कर रहे हैं. आप उनका फॉर्म देख लीजिए उन्होंने साफ़ तौर पर लिख रहा है कि हाजियों के सारे पैसे हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ही एक्सचेंज करेगी.
ग़ौरतलब बात है कि भारत का संविधान अपने तमाम नागरिकों को पूरी आज़ादी के साथ फॉरेन एक्सचेंज करने की आज़ादी देता है. हर नागरिक जब भी मुल्क से बाहर जाता है तो अपने मुताबिक़ अपने रक़म को वहां की करेंसी में तब्दील करता है, तो फिर हाजियों के लिए ऐसे क़ानून कैसे बना सकती है कि वो सिर्फ़ हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के ज़रिए फॉरेन एक्सचेंज कर सकते हैं.
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