By ए. मिसराब, TwoCircles.net,
मुम्बई: मुख्यतः हैदराबाद में केंद्रित राजनैतिक संगठन आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने आन्ध्र और तेलंगाना के इलाकों से बाहर पाँव पसारते हुए 15 अक्टूबर को होने जा रहे महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अपने 24 प्रत्याशी खड़े किए हैं. जैसी आशा थी, ये सारे प्रत्याशी मुस्लिम बहुल इलाकों में खड़े किए गए हैं, विशेषकर मराठवाड़ा में, जो आज़ादी के पहले हैदराबाद के निजाम के सूबे में शामिल था. अकेले मराठवाड़ा से अधिक प्रत्याशियों को खड़ा करने का कारण भी ज़ाहिर ही है क्योंकि नांदेड़ में 11 पार्षदों के साथ मुंसीपाल्टी स्तर पर एमआईएम के पैर मजबूत हैं. यही कारण है कि नांदेड़ को एमआईएम की गतिविधियों का केन्द्र माना जाता है.
जहां तक एमआईएम की प्लानिंग की बात की जाए तो एमआईएम का मकसद बहुत बड़ी जीत का नहीं है. लेकिन विधानसभा में एक सफल प्रत्याशी को भी भेजने में एमआईएम के सामने दो दिक्क़तें हैं: एक, आक्रामक हिन्दूवादी पार्टियों की उपस्थिति और हरेक सीट पर कम से कम एक मुस्लिम प्रत्याशी की उपस्थिति. इस तरह से मुस्लिम मतों का विभाजन एमआईएम के लिए एक चिंता का विषय है.
सोशल मीडिया पर एमआईएम समर्थकों द्वारा प्रसारित तस्वीर
दूसरी निगाह से देखें तो एमआईएम की उपस्थिति से कांग्रेस और राकांपा की फिक्रमंदी देखी जा सकती है. कांग्रेस-राकांपा गठबंधन टूटने के बाद मुस्लिम मतों के बिखरकर एमआईएम के पक्ष में जाने के आसार हैं. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि प्रत्याशियों का चुनाव उनकी क्षमता, प्रतिभा, अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति उनकी धारणा और उनके प्रति स्थानीय जनता के रुझान को ध्यान में रखकर किया जाता है. पार्टी को चुनाव चिन्ह के रूप में ‘पतंग’ का निशान मिला है.
लगभग दो दर्जन प्रत्याशियों में से तीन गैर-मुस्लिम प्रत्याशी भी हैं, जिनमें अक्कलकोटे से सुभाष आनंदराव शिन्दे, सोलापुर शहर उत्तरी से डा. विष्णुपंत गवाडे और कुर्ला, मुम्बई से अविनाश गोपीचंद बर्वे शामिल हैं. दलित वोटों का आकर्षण बढ़ाने के लिए इन तीन सीटों पर गैर-मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किए गए हैं. एमआईएम द्वारा लड़ी जा रही कुल 24 सीटों पर यही तीन सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतों का प्रतिशत अन्य के मुक़ाबिले काफी कम है.
एमआईएम ने कुछेक क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी न खड़ाकर वहां के प्रत्याशी को अपना समर्थन दिया है. इस दिशा में ताज़ा उदाहरण पैंथर रिपब्लिकन पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे दलित नेता और पूर्व मंत्री गंगाधर गाडे हैं. इन सभी 24 सीटों पर कुल मिलाकर 147 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े हैं, जो प्रति सीट 6 प्रत्याशी का औसत बनाते हैं. इस लिहाज़ से एमआईएम के लिए मुस्लिम मतों को जुटाना एक कठिन काम साबित हो सकता है.
नांदेड़ में कार्य-केन्द्र होने के कारण पार्टी ने यहां की दोनों सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए हैं क्योंकि पार्टी का सोचना है कि भाजपा-शिवसेना के गठबंधन के टूटने से हुए गैर-मुस्लिम मतों के विभाजन से नांदेड़ में पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी, परिणामस्वरूप दोनों सीटों पर विजय आशान्वित है.
नांदेड़ से ताल्लुक रखने वाले एक्टिविस्ट और एमआईएम समर्थक वकील एन. खान कहते हैं, ‘महाराष्ट्र के दोनों बड़े गठबंधनों के टूटने के बाद नांदेड़ में एमआईएम का पक्ष मजबूत हो गया है. नांदेड़ के मुस्लिम एमआईएम के साथ जाने के लिए एकजुट हैं, क्योंकि गैरमुस्लिम मत कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना, भाजपा और मनसे में बँट जायेंगे.’ खुद नांदेड़ और अन्य दूसरे क्षेत्रों में अन्य पार्टियों के मुस्लिम प्रत्याशियों से टक्कर के सवाल पर खान कहते हैं, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई मुस्लिम एमआईएम के खिलाफ़ लड़ने की इच्छा रख रहे हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे हमारी पार्टी पर कोई असर पड़ेगा क्योंकि अधिकतर युवा हमारे साथ हैं, और मुस्लिमों को हमारे साथ लाने के लिए वे लगातार प्रयास कर रहे हैं.’
मराठवाड़ा के बाद मुम्बई वह जगह है, जहां एमआईएम को कड़ी टक्कर मिल रही है. मुम्बई लगभग आधी सीटों पर एमआईएम ने अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं. यहां कि मुम्बादेवी सीट पर एकसाथ कुल 13 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े हैं, जो कुल 24 सीटों में सबसे ज़्यादा है. यहां एमआईएम की ओर से प्रसिद्ध गायक स्व० मोहम्मद रफ़ी के बेटे मोहम्मद शाहिद रफ़ी खड़े हैं.
एमआईएम भिवंडी के ज़ुबैर खान कहते हैं, ‘बदलाव की आशा में कई युवा हमसे रोज़-ब-रोज़ जुड़ रहे हैं. मुस्लिम युवा समुदाय में जागरूकता फैलाने की दृष्टि से हमने वाट्सएप पर अभियान शुरू किया है. केवल भिवंडी से ही नहीं, मुम्बई के अन्य क्षेत्रों से भी हमें अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं.’
कुर्ला, वर्सोवा, कोलीवाड़ा (सभी मुम्बई), ओस्मानाबाद और अक्कलकोटे(मराठवाड़ा) ही वे सीटें हैं, जहां एमआईएम के प्रत्याशियों के खिलाफ़ सिर्फ़ एक प्रत्याशी खड़ा है. मुस्लिम मतों के बंटवारे पर एमआईएम सवालों के घेरे में खड़ी है. कई सीटों पर सपा बेहत स्थिति में है और 2009 में इन सीटों से विधायक भी चुने गए थे.
प्रतिद्वंदी प्रश्न उठा रहे हैं कि ‘मजबूत मुस्लिम प्रत्याशियों के खिलाफ़ एमआईएम उम्मीदवार क्यों खड़े कर रही है?’ अब्दुल राशिद ताहिर ने सपा के टिकट पर पिछली बार भिवंडी(पश्चिम) से चुनाव जीता था, इस दफ़ा वे राकांपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. सपा महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी मनखुर्द-शिवाजी नगर से चुनाव लड़ रहे हैं. बीएमसी के विद्यालय के कर्मचारी साजिद शेख कहते हैं, ‘मैं एमआईएम को पसंद करता हूं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं उन्हें उस समय वोट दूंगा जब वे उन मुस्लिम विधायकों के खिलाफ़ उम्मीदवार खड़े करते हैं, जिन्होंने पिछले पाँच सालों में समुदाय के लिए काम किया है.’
मुम्ब्रा-कलवा वह सीट है, जहां से 2009 में राकांपा के टिकट पर जितेन्द्र अवहद ने चुनाव जीता था, और इस बात भी वे इसी सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर एमआईएम ने अशरफ़ मुलानी को खड़ा किया है. मुम्ब्रा के एडवोकेट वकील शेख कहते हैं, ‘अवहद ने बीते पाँच सालों में यहां कुछ भी काम नहीं किया. मुझे लगता है कि अब बदलाव की ज़रूरत है और एमआईएम को खुद को साबित करने का एक मौक़ा ज़रूर देना चाहिए.’ मुम्ब्रा के युवा मोहसिन शेख एमआईएम के विकास के दावों को चिन्हित करते हुए कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में एमआईएम के बारे में हमने पहले कभी नहीं सुना. (इंटरनेट पर) विकास के दावों के मद्देनज़र मुझे कोई भी साक्ष्य नहीं मिला, जो यह साबित करता हो कि एमआईएम ने हैदराबाद में विकास कार्यों को अंजाम दिया है. हम कैसे भरोसा कर लें कि उनके दावे सच हैं?’
मराठवाड़ा की लड़ाई:
औरंगाबाद में नज़ारा एकदम उलट है. यहां की तीनों सीटों पर एमआईएम ने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं और एमआईएम के स्स्तार प्रचारक और सांसद ओवैसी खुद इन सीटों के लिए घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं. एमआईएम के जिला अध्यक्ष जावेद क़ुरैशी ने TCN से बात करते हुए कहा, ‘हम ध्यानपूर्वक औरंगाबाद पर फोकस कर रहे हैं. असद साहब(ओवैसी) खुद पैदल प्रचार कर रहे हैं, और हरेक दरवाज़े पर जाकर हम मतदाता को मना रहे हैं. हमें ऐसा लगता है कि औरंगाबाद में हमारी उपस्थिति के चलते कांग्रेस थोड़ी परेशानी में है.’
औरंगाबाद(पूर्व) से एमआईएम के प्रत्याशी डा. अब्दुल गफ्फ़ार क़ादरी कहते हैं, ‘हम अपने आपको अल्पसंख्यकों के सामने आवाज़ उठाने के सबसे बेहतर माध्यम के रूप में रख रहे हैं. हम गैरमुस्लिमों के पास भी जा रहे हैं और उन्हें यह भरोसा दिला रहे हैं कि हम साम्प्रदायिक नहीं सेकुलर पार्टी हैं.’
सोशल मीडिया पर एमआईएम समर्थकों द्वारा प्रसारित तस्वीर
क़ादरी, जो कांग्रेस के कददावर नेता और मौजूदा विधायक राजेन्द्र दर्डा के खिलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं, आगे कहते हैं, ‘सभी ने देखा है कि कांग्रेस ने 60 सालों में मुस्लिमों को क्या दिया है. आज जनता जागरूक हो गयी है और सब कुछ जानती है. वह कांग्रेस के अकर्मण्य उम्मीदवार के खिलाफ़ वोट नहीं करेंगे.’ मुहम्मद, जो कादरी के बेटे हैं, कहते हैं कि एमआईएम की सोशल मीडिया पर बहुत मजबूत पकड़ है, यहां वे लोगों को अपने एजेंडे और अपनी विचारधारा से रू-ब-रू कराते हैं.
पूर्व टीवी पत्रकार सैयद इम्तियाज़ जलील ने राजनीति में आगमन एमआईएम के टिकट के ज़रिए किया है. वे औरंगाबाद(सेन्ट्रल) से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उन्हें सभी बड़ी पार्टियों के साथ-साथ 4 अन्य मुस्लिम प्रत्याशियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. यह पूछने पर कि लोग उन्हें वोट क्यों दें, जलील पूरे आत्मविश्वास से TCN से कहते हैं, ‘लोगों को बदलाव चाहिए और हम उनके लिए ऐसे विकल्प हैं, जिस पर वे भरोसा कर सकते हैं.’ गैर-मुस्लिमों के समर्थन पर वे कहते हैं, ‘सब आपके व्यक्तिगत सम्बन्धों पर निर्भर करता है. हम गैर-मुस्लिम इलाकों में भी प्रच्चार कर रहे हैं.’
बिना एमआईएम का विदर्भ:
आश्चर्यजनक रूप से एमआईएम ने विदर्भ से किसी भी प्रत्याशी को नहीं खड़ा किया है, जबकि यहां के जिलों-कस्बों की मुस्लिम आबादी एक अच्छी संख्या में है. विदर्भ की कुल 60 विधानसभा सीटों में लगभग 10 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम समुदाय का बाहुल्य है लेकिन एमआईएम ने यहां कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया.
एमआईएम विदर्भ की मोहम्मद सिद्दीक ने TCN से कहा, ‘हम पूरी तरह चाहते थे कि एमआईएम विदर्भ की कम से कम 5 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करे, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते पार्टी ने इस क्षेत्र को फिलहाल छोड़ रखा है. हमें चिंता है कि हमें यहां गैर-एमआईएम प्रत्याशी को वोट देना होगा लेकिन साथ ही हम लोगों को यह भरोसा भी दिला रहे हैं कि भविष्य में पार्टी पार्षदीय चुनावों के मद्देनज़र यहां भी अपने आप को विस्तार देगी.’
(अनुवाद: सिद्धान्त मोहन)