बनारस में जड़ें जमाता जातीय विवाद

By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

वाराणसी: लोकसभा चुनाव हुए एक ख़ासा वक्त बीत चुका है और प्रधानमंत्री की अगुआई में उनका संसदीय क्षेत्र विकास और तमाम वादों के पूरे होने की राह देख रहा है. लेकिन किसे अंदाज़ था कि बनारस को जातिगत विवादों की आड़ में भी देखा जाएगा. ताज़ा मामला है बनारस के गांव अयोध्यापुर का.


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लोहता थाने के अंतर्गत आने वाले अयोध्यापुर गांव के बीरसिंहपुर कस्बे में बीते वृहस्पतिवार को कई सालों से रह रहे मुसहरों की झोपड़ियों में आग लगा दी गयी. मामला समाज को इतना मुख़्तसर लगा कि कुछेक अखबारों को छोड़कर रविवार से पहले किसी भी अखबार ने मामले को पर्याप्त जगह नहीं दी.


Broken shelter
बीरसिंहपुर में तोड़ी गयी झोपड़ी

मुख्य नगर से एक कठिन रास्ता तय करते हुए एक लगभग वीरान जगह पर जब सफ़र का एक पड़ाव आता है तो कुछ लोग ज़मीन के एक गड्ढे में घेरे में बैठकर आग़ ताप रहे हैं. अयोध्यापुर गांव के बीरसिंहपुर कस्बे में एक बंजर भूमि पर ये हरिजन, मुसहर और यादव जातियों के लोग लगभग पिछली चार पीढ़ियों से रहते आए हैं.

लगभग सवा सौ लोगों की इस बस्ती में खेतिहर, मजदूर, मुसहर, कामगार रहते हैं. रोज़ की कमाई पर इनका घर चलता है. बीती 8 जनवरी को सुबह तकरीबन 11 बजे 25 लोग सात गाड़ियों में लदकर बीरसिंहपुर आए. इन कस्बा निवासियों के लिए यह दिन का वह समय था, जब घर के अधिकतर पुरुष कमाने-धमाने के प्रयोजन से मुख्य शहर या आस-पास के गाँवों में गए होते हैं.


Burnt hut
बीरसिंहपुर में जलाई गयी झोपड़ी में ठंड से बचाव करते बच्चे

गाड़ियों में लदकर आए लोगों ने गाड़ी से उतरते ही बंदूकों से हवाई फायरिंग शुरू कर दी. कुछ राउंड गोलियां चलाने के बाद इन दबंगों ने डंडों और असलहों से इन बाशिंदों को पीटना शुरू कर दिया. चूंकि मौके पर गाँव के दो ही पुरुष मौजूद थे, इसलिए उनके साथ महिलाओं और बच्चों को भी पीटा गया. गर्भवती महिला प्रेमादेवी को दौड़ाकर लाठियों से पीटा गया. पांच वर्षीय बालक लालू को भी लोगों ने मारा. सिलसिला यहां नहीं थमा, हमलावरों ने गांववालों की कुछ झोपड़ियों में आग लगा दी, कुछ अस्थायी रिहाईश को भी ढहा दिया और कुछ अन्य को भी उजाड़ दिया. इस प्रकार कुल मिलाकर गांववालों के 16 आशियाने ज़मींदोज़ हो गए.

मौके पर मौजूद 35 वर्षीय पुरुष जवाहर कहते हैं, ‘गाड़ियों से आए लोग औरतों बच्चों को दौड़ा रहे थे. वे बार कह रहे थे कि ‘ये हमारी ज़मीन है, तुम सब भागो यहां से’. बिना किसी बातचीत के उन्होंने मारना शुरू कर दिया. ऐसा लग रहा था वे किसी जल्दी में हैं.’ घटना के अन्य भुक्तभोगी 50 वर्षीय पुरुष लालजी थोड़ा विस्तार से बताते हैं, ‘पास में ही रहने वाले रामाज्ञा पाण्डेय और रामकेश पाण्डेय उन लोगों के साथ आए थे. वे खुद कुछ नहीं कर रहे थे, लेकिन बार-बार उन लठैतों और दबंगों को उकसा रहे थे. जिसके परिणामस्वरूप वे घूम-घूमकर उत्पात कर रहे थे.”


Jawahar and Lalji with others
पीड़ित जवाहर और लालजी घर की महिलाओं के साथ

मुद्दा दरअसल यूं है कि बीरसिंहपुर के ये बाशिंदे पिछली चार पीढ़ियों से एक बड़े बंजर भूखंड पर रह रहे हैं. पास के ही गाँव के पाण्डेय परिवार ने कई सालों से इस अमूल्य ज़मीन पर नज़र बनाई हुई है. मुसहर बस्ती के 45 वर्षीय बुद्धू बताते हैं कि बस्ती के हरिजन, मुसहर और यादव बनाम पाण्डेय परिवार के रामाज्ञा पाण्डेय के बीच इस भूमि को लेकर लगभग दो दशकों से मुकदमा चल रहा है. इस भूखंड का माप लगभग साढ़े तेरह एकड़ का है. रामाज्ञा पाण्डेय इस भूमि पर लगातार दावा करते रहे हैं. जबकि भूमि पर रहने वाले लोगों का कहना है कि बंजर भूमि पर तो कोई भी रह सकता है और बंजर भूमि पर किसी का मालिकान कैसे हो सकता है.

इस भूखंड को लेकर पिछले कई सालों से चल रहे तनाव के बीच रामाज्ञा पाण्डेय और उनके रिश्तेदार रामकेश पाण्डेय ने लखनऊ स्थित बिल्डर से इस भूमि का एग्रीमेंट कर दिया. बिल्डर ने पहले ट्रक इंटें विवादित ज़मीन के पास उतरवा दीं. चूंकि भूमि पर पहले से पिछड़ी जातियों के लोग रह रहे थे और वे अपने वजूद में ज़्यादा संगठित हैं, इसलिए कब्ज़े में असफल उक्त बिल्डर रामाज्ञा पाण्डेय पर भूमि पर अधिग्रहण के लिए दबाव बनाने लगा. इस अधिग्रहण या कब्ज़े के लिए रामाज्ञा पाण्डेय और रामकेश पाण्डेय द्वारा उठाया गया कदम वृहस्पतिवार को हुए हमले के रूप में सामने आया. इस घटना के बाद गांववालों ने लोहता थाने में एफआईआर दर्ज़ करायी, जिसके फलस्वरूप रामाज्ञा पाण्डेय और रामकेश पाण्डेय को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया.


Land in Dispute with flag
विवादित भूखंड

मामले के दूसरे पक्ष को जानने के लिए TCN ने रामाज्ञा पाण्डेय के परिवार से मुलाक़ात की. रामाज्ञा पाण्डेय के परिवार के सदस्य बिलकुल दूसरी ही कहानी बताते हैं. परिवार के युवा हिमांशु कहते हैं, ‘ज़मीन कब से इन लोगों की हो गयी? हम ज़मीन पर अभी तक कोई क्लेम नहीं कर रहे थे, न इन लोगों को हटा रहे थे तो ठीक था. अब जब हमने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए अपनी ही ज़मीन बेचनी चाही तो लोग बुरा मानने लगे.’

परिवार के लोगों ने हमले की बात पूरी तरह खारिज़ करते हुए कहा, ‘सच तो यह है कि इन लोगों ने खुद ही अपनी झोपड़ियां जला दीं, अपने साथ के लोगों को खुद ही पीट दिया ताकि दिखाने के लिए कुछ सबूत सामने हो. फ़िर खुद ही चिल्लाने लगे कि यह सब हमने किया है.’ गिरफ़्तारी के बारे में पूछने पर हिमांशु कहते हैं, ‘रामाज्ञा और रामकेश घटना की जानकारी देने और खुद को निर्दोष बताने ही थाने पर गए थे, लेकिन पुलिस ने उलटा इन्हें ही बंद कर दिया.’


Pandey Family
रामाज्ञा पाण्डेय का परिवार

पाण्डेय परिवार के सदस्य अपने बयानों और दावों की वैधता दिखाने के लिए एक कागज़ लेकर आते हैं. वह कागज़ लखनऊ स्थित कंस्ट्रक्शन कम्पनी ‘शाइन सिटी’ के साथ किया गया महज़ एग्रीमेंट है. इस एग्रीमेंट के आधार पर पाण्डेय परिवार के लोग यह कह रहे हैं कि ज़मीन उनकी ही है. ज़मीन को देखकर ही अंदाज़ लग जाता है कि कोई भी रसूखदार इस ज़मीन के लिए दांवपेंच क्यों आजमाएगा? ज़मीन से सटकर नया पुल बना है. सड़क अभी निर्माणाधीन है, जो आगे चलकर पूरे गाँव को मुख्य शहर से जोड़ देगी.


Pregnant Prema Devi
पीड़िता गर्भवती प्रेमादेवी

आगे के बयान सुनने वाले को बनारस के हालात से रूबरू करा देते हैं. हिमांशु कहते हैं, ‘पहले यहां सभी ओर हमारा कुनबा ही रहता था. लोग नौकरी-कमाई के सिलसिले में आते-जाते रहे. ये लोग कहीं दिखते भी नहीं थे. जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं, तब ‘इन’ लोगों ने बढ़-चढ़कर ज़मीन पर कब्ज़ा करना शुरू किया. सरकार भी इनका साथ दे रही थी. उसी समय का बोया हुआ काटना पड़ रहा है. अब यही लोग हमपर चढ़कर बोलने लगे हैं.’ वे आगे कहते हैं, ‘अब तो जात-पात से ऊपर राजनीति हो रही है. वहां जाइए, ज़मीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का झंडा लगा हुआ है. इन लोगों का नेता है मदनलाल मौर्या, वही इन लोगों को चढ़ा रहा है.’


Villagers
बीरसिंहपुर के ग्रामीण

यह सच भी है कि विवादित भूखंड पर कम्यूनिस्ट पार्टी के झंडे मौजूद हैं. इन झंडों के बारे में पूछने पर बुद्धू बेहिचक कहते हैं, ‘हममें से कई लोग कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं, कई तो पार्टी के लिए काम भी करते हैं. उनके साथ तो बहुत से लोग खड़े हैं. हमारे पास तो सिर्फ़ आवाज़ ही है. अब जब हमें हमारे घरों से उजाड़ा जा रहा है और पार्टी हमारे साथ खड़ी है तो क्या गलत है?’

विवादित भूखंड पर दावों की सचाई जानने के लिए हम सम्बद्ध इलाके रोहनिया के राजस्व निरीक्षक और लेखपाल दिनेश कुमार राय से मिले. दिनेश राय भिन्न-भिन्न अभिलेखों और साक्ष्य के साथ हकीक़त बयान करते हैं. वे कहते हैं कि जिस भूमि पर रामाज्ञा पाण्डेय दावा कर रहे हैं, वह उनकी नहीं है. लेकिन यह भी साफ़ कर देना ज़रूरी है कि यह भूमि बंजर की श्रेणी में भी नहीं आती है. विवादित भूमि भीटा की श्रेणी में आती है. रामाज्ञा पाण्डेय ने बहुत साल पहले कागज़ी तौर पर भीटा को बंजर में तब्दील करवा दिया. फ़िर बाद में तत्कालीन अधिकारी से सांठ-गाँठ करके धारा 229B के तहत बंजर भूमि को अपने नाम करा लिया.


Agreement Copy shown by Pandey Family
बिल्डर के साथ किए गए एग्रीमेंट की प्रति

दिनेश कहते हैं, ‘अब इन्होंने अपनी होशियारी में ज़मीन के साथ लखनऊ की कंस्ट्रक्शन कम्पनी से एग्रीमेंट तो कर लिया, लेकिन कब्ज़ा दिलवाने में दिक्क़त होने लगी. उसी दिक्क़त का नतीज़ा है कि यह सब हिंसक जातीय विवाद हो गया है.’ वे आगे बताते हैं, ‘कानूनी तौर पर यह ज़मीन न तो पाण्डेय परिवार की है, न तो हरिजन-मुसहर-यादव समुदाय की. मैंने 2 जनवरी को ही रपट लगा दी थी, लेकिन अब ऊपरी स्तर की देर का ही नतीज़ा है कि यह विवाद उठ खड़ा हुआ.’ (रपट की प्रति संलग्न).

ग्रामप्रधान सुरेन्द्र प्रसाद से संपर्क करने की कई कोशिशें असफल साबित हुईं. गाँववालों ने बताया कि उन्हें भी रामाज्ञा पाण्डेय ने धमकाया है. हालांकि वे यह भी दावा कर रहे हैं कि सुरेन्द्र प्रसाद से पिछले ग्रामप्रधानों ने भी इस मामले में कोई मुस्तैदी नहीं दिखाई है. फिलहाल रामाज्ञा पाण्डेय और रामकेश पाण्डेय आईपीसी की धाराओं 323, 147, 504, 136 और एससी-एसटी एक्ट 3(1)(X) keके तहत जिला कारागार में बंद हैं.


Report submitted by Lekhpal
लेखपाल द्वारा 2 जनवरी को दी गयी रपट

कई प्रश्न अनुत्तरित हैं, उदाहरण के तौर पर कि क्या लेखपाल पहले ही थानाध्यक्ष और तहसीलदार को संज्ञान में नहीं ले सकता था ताकि यह घटना घटे ही न? या क्या ज़मीन के टुकड़े की लड़ाई को जातीय विवाद होने से नहीं बचाया जा सकता था? गांववाले कहते हैं कि वे ज़मीन किसी हाल में नहीं छोड़ेंगे. लेखपाल दिनेश राय और लोहता थाना के एसओ शमशेर बहादुर सिंह कानून का हवाला देते हैं और कहते हैं कि ज़मीन सरकार की है, उस पर सरकार की परियोजना ही लगेगी. रामाज्ञा पाण्डेय के परिवार के लोग बार-बार फ़ोन करके यह भरोसा पाने की कोशिश करते हैं कि इस खबर के लिखे जाने से उनके परिजनों का शायद कुछ भला होगा. इस बीच सरकार के भू-अधिग्रहण अधिनियम ऐसे कई मुसहरों, किसानों, हरिजनों, मजदूरों, दलितों, अल्पसंख्यकों के लिए लाचारी, दमन और संघर्ष की राह खोलते हैं. फिलहाल प्रेमादेवी की हालत स्थिर है और उनका बच्चा भी सुरक्षित है. लालू कुछ किसी काम से बाज़ार गया हुआ था. गांववालों से मुलाक़ात के वक्त बुद्धू ने कहा था, ‘हम लोग अभी भी चाहें तो इन लोगों के खिलाफ़ खड़े हो जाएं. लेकिन हम लोगों को पता है कि इस लड़ाई में किसे सबसे अधिक नुकसान झेलना होगा. हम अपनी ज़मीन और अपना हक़ नहीं छोड़ेंगे.’

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