मोहम्मद आसिफ़ इकबाल
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पत्रकार जोगेन्द्र सिंह को जिंदा जलाकर मार डालने के मामले में केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब तलब किया है. न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल और जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने पत्रकार सतीश जैन की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र, राज्य सरकार और प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी करके जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए दो सप्ताह का वक़्त दिया है. इस जघन्य केस के आवेदक ने मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने के साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने की उच्चतम न्यायालय से अपील की है.
इस याचिका में यह भी कहा गया है कि अगर किसी भी पत्रकार की गैर-प्राकृतिक मौत होती है तो उसकी जांच अदालत की निगरानी में हो. प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया के आंकड़ों के हवाले से बात करें तो पता चलता है कि पिछले ढाई साल में 70 पत्रकारों की हत्या हुई है. ऐसे में यह ज़रुरत महसूस होती है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई गाइडलाइन तैयार की जाए. आवेदक पक्ष के वकील के तर्कों के बाद काउन्सिल को भी याचिका में पक्ष बनाया गया है. मालूम होना चाहिए कि यूपी के शाहजहांपुर के पत्रकार जगेन्द्र सिंह की मौत कुछ दिनों पहले हुई थी. उन्होंने मौत से पहले बयान दिया था कि उत्तर प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के कहने पर कुछ पुलिस वालों ने उन पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दिया था. घायल जगेन्द्र सिंह के इकबालिया बयान का वीडियो में सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें वे साफ़-साफ़ मंत्री राममूर्ति वर्मा का नाम ले रहे हैं.
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई गाइड लाइन इसलिए भी ज़रूरी हे कह पिछले कई सालों से पत्रकारों की हत्या अब एक आम बात बनती जा रही है. अभी मामला जगेन्द्र सिंह का सामने आया ही था कि मध्यप्रदेश के बालाघाट ज़िले में एक और पत्रकार के अपहरण के बाद कथित हत्या का मामला सामने आगया है. इसके बाद मुंबई में भी एक पत्रकार की हत्या की खबर सामने आई. यदि पुलिस के मुताबिक बात करें तो अपहरण के आरोप में गिरफ़्तार तीन अभियुक्तों ने कहा है कि उन्होंने पत्रकार की हत्या के बाद उनका शव जला दिया है. बालाघाट के कटंगी के निवासी 44 वर्षीय संदीप कोठारी का 19 जून की रात को अपहरण कर लिया गया था. उनके परिवार ने 20 जून को उनके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. कटंगी के एसडीओपी जगन्नाथ मरकाम ने बताया, ‘हमने इस मामले में एक टीम नागपुर भेजी है ताकि बताए हुए स्थान से लाश को बरामद किया जा सके.’
लेकिन जहां यह मामला पत्रकारों की हत्या का है, वहीं यह मामला कानून एवं व्यवस्था का भी है. पूरे मसले को लॉ एंड ऑर्डर के नज़रिए से गौर करने पर मामला और ज्यादा गंभीर नज़र आता है. जहां एक तरफ कानून एवं व्यवस्था को चुस्त-दुरस्त करने के प्रयास होने चाहिएं वहीं जनता को भी इस तरह के मामलों में अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए. अत्याचार किसी के भी साथ और कहीं भी हो, ग़लत है और यह प्रक्रिया अत्याचार व दमन को बढ़ावा देने का ज़रिया बनता है. नतीजे में ज़ुल्म व ज़्यादती में बढ़ोतरी होती है. यह स्थिति न देशवासियों के हित में होती है, और न ही समाज के हित में उपयोगी हो सकती है. इससे राजनीति को भी एक अलग किस्म का नुकसान होता रहता है, लेकिन ज़ाहिर है कि ऐसी कई घटनाएं राजनेताओं द्वारा देश के लोकतंत्र में ही अंजाम दी जाती हैं. इन घटनाओं से लाभ कहीं नहीं होता अलबत्ता ये घटनाएं विश्व स्तर पर देश की छवि खराब करने का साधन बनती हैं. कानून के दायरे में रहते हुए और शांति बनाए रखते हुए ऐसे सभी मामलों में आवाज उठाना हमारा हक़ है और इस हक़ से वंचित किए जाने के सभी प्रयास बेबुनियाद और गलत हैं. इस अवसर पर पत्रकार न सिर्फ जगेन्द्र सिंह और उसके परिजनों के साथ हैं बल्कि उन सभी साहसी पत्रकार के साथ हैं जो समाज में बढ़ते भ्रष्टाचार और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
(आसिफ़ दिल्ली में मौजूद पत्रकार हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.)