अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना: प्रधानमंत्री मोदी की कथित ‘जुमलेबाज़ी’ बिहार के चुनाव में अपने शबाब पर है. बिहार के बांका के सुपहा मैदान से जनसभा को संबोधित कर रहे मोदी के निशाने पर इस बार झारखंड था. दरअसल, बिहार की तुलना झारखंड से करते हुए उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि झारखंड विकास के रास्ते पर चल पड़ा है और ऐसा झारखंड में भाजपा की सरकार होने की वजह से हो रहा है.
झारखंड की तुलना बिहार से करने से पहले मोदी शायद यह भूल गए कि झारखंड खनिज सम्पदा से परिपूर्ण एक प्रदेश है और जो शुरू से ही अविभाजित बिहार की आर्थिक क्षमताओं का केन्द्र रहा है. यह बात पाठकों को ध्यान दिला देनी चाहिए कि ‘झारखंड’ अन्य राज्यों की तुलना में देश के औद्योगिक नक़्शे पर बहुत पहले ही आ चुका था, तब वह बिहार में ही था. और सच तो यह है कि बिहार का सारा औद्योगिक सेटअप पहले झारखंड वाले क्षेत्र में ही था क्योंकि झारखंड हमेशा से प्राकृतिक खनिज संपदा से लबरेज़ रहा है.
शायद यही वज़ह थी कि जब 15 नवम्बर, 2000 को इसे बिहार से अलग किया जा रहा था, तब हर जागरूक बिहारी ने इसका विरोध किया. क्योंकि बिहार आर्थिक दृष्टिकोण से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था. बिहार से झारखंड का अलग हो जाने का मतलब था बिहार का उन तमाम खनिज संपदाओं से भी महरूम हो जाना, जिसे प्रकृति ने पहले अविभाजित बिहार को दिया था.
सच तो यह है कि झारखंड अलग होकर भी वो पहचान नहीं बना पाया जिसका वह हक़दार है. यहां गरीबों की संख्या में वृद्धि ने असंतुष्टों और फिर नक्सल को जन्म दिया. आंकड़े गवाह हैं कि बिहार की तुलना में झारखंड में गरीबों का प्रतिशत अधिक है. आदिवासियों की स्थिति और भी ख़राब है. इनकी ज़्यादातर ज़मीने छीन ली गई हैं. कुपोषित बच्चों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है. अगर सच में झारखंड के विकास को समझना है तो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िला के सबर समुदाय के आदिवासियों की स्थिति को देखना चाहिए. इसी जिले के पोटका ब्लॉक तक चारपहिया पहुंचने की जगह नहीं है. यहां बड़ी व लंबी गाड़ियां इन मजबूर आदिवासियों तक नहीं पहुंच पाएंगी. संभवतः प्रधानमंत्री मोदी आंकड़े पेश करते वक़्त शायद यह भूल गए कि झारखंड की आबादी लगभग 3 करोड़ के करीब है, जबकि बिहार की आबादी 10 करोड़ के ऊपर पहुंच चुकी है.
खैर, झारखंड के नाम पर बिहार के मतदाताओं को संदेश देने वाले मोदी इस बात को भी भूल गए कि झारखंड को बिहार से अलग भाजपा के नेताओं ने किया था. जिससे इस अलगाव का खामियाज़ा बिहार को उठाना पड़ा. बिहार के लिए विशेष पैकेज की मांग बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद ही उठी और उसका भी वादा तत्कालीन एनडीए सरकार ने ही किया था, लेकिन कथनी और करनी में फ़र्क होने से अभीष्ट को प्राप्त नहीं किया जा सका. ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी बिहार की तुलना झारखंड से करके बिहार के निवासियों को मुंह चिढ़ा रहे हैं और उनके पुराने ज़ख्मों को कुरेद रहे हैं.
इस बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट करके कहा है, ‘मोदी जी बैकती बहुत हो चुकी. चलो किसी ऐसी योजना का नाम बताओ जिससे युवाओं का कल्याण हुआ हो? जनाब, भाषणों से पेट नहीं भरता…’
इससे पहले लालू यादव ने अपने सुबह के ट्वीट में बिहार के लोगों को आगाह करते हुए कहा था, ‘सावधान बिहारियों! आज से जुमलों के उस्ताद, वादों के बाज़ीगर द्वारा जुमलों के फ़्री,अविश्सनीय, अविश्वासी दौर में और बड़े-बड़े जुमले फेंके जायेंगे…’
वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट करके कहा कि मोदी जी ने कालाजार से होने वाले मौतों को लेकर बिहार व झारखंड की विचित्र तुलना की है. बोलने से पहले कम से कम इस विषय पर अपने साथी सी.पी. ठाकूर से मशविरा तो कर लेते…