अलैर एनकाउन्टर केस : “यह कोई मुठभेड़ नहीं थी, यह मर्डर था!”

राक़िब हमीद, TwoCircles.net

रियासतनगर, हैदराबाद – सईद इम्तियाज़ अली उस वक़्त अपने घर में थे जब पिछले साल उन्हें 7 अप्रैल को किसी ने फोन किया और फेसबुक चेक करने को कहा. फेसबुक पर आ रही खबरों के सत्यापन के लिए इम्तियाज़ ने न्यूज़ चैनल लगाए. खबर सही थी. तेलंगाना के नालगोंडा में एक पुलिस मुठभेड़ हुई थी. इस मुठभेड़ में इम्तियाज़ का भाई अमज़द मारा गया था.


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27 साल के सईद अमज़द अली और अन्य चार अभियुक्त उस वक़्त मारे गए जब उन्हें वारंगल कारागार से हैदराबाद कोर्ट पेशी के लिए ले जाया जा रहा था. पांच अभियुक्तों के लिए 17 पुलिसवाले थे. पुलिस ने कहा कि यह मुठभेड़ थी.


Syed Amjed ALi
अमज़द

ऑक्टोपस(ऑर्गेनाइजेशन फॉर काउंटर टेररिस्ट ऑपरेशंस) नाम से मशहूर आंध्र प्रदेश के एंटी-टेररिज्म स्क्वाड और ख़ुफ़िया विभाग द्वारा साल 2010 ने अमज़द और उनके चचेरे भाई वकारुद्दीन(33) को मुर्शिदाबाद से गिरफ्तार किया गया था. उन्हें आंध्र पुलिस द्वारा मुस्लिम युवकों के खिलाफ चलाए गए साजिशन अभियान के बदले में दो पुलिस वालों को मारने और दो खुफिया अधिकारियों पर गोली चलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था. घटनाकाल 2007.

पुलिस के अनुसार अमज़द और वकारुद्दीन ने तहरीक-ए-ग़लबा-ए-इस्लाम नामक संगठन की नींव भी रखी थी, जिसने पुलिसवालों की हत्या की जिम्मेदारी भी ली थी. उसी महीने मोहम्मद ज़ाकिर, मोहम्मद हनीफ़ और इज़हार खान को भी अमज़द और वकारुद्दीन को सहायता पहुंचाने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया. इन सभी पांच लोगों की मौत 7 अप्रैल 2015 को हुए मुठभेड़ में हुई थी.

पुलिस का दावा है कि गिरफ्तारी के बाद अमज़द और वकारुद्दीन ने यह स्वीकार किया था कि 2007 में गुजरात में एक बैंक लूटने के दौरान उन्होंने एक कॉन्स्टेबल को जान से मार दिया था. अमज़द और वकारुद्दीन पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं को मारने की साजिश रचने का भी आरोप था.

हुआ कुछ यूं था

एनकाउन्टर के रोज़ इन सभी पांच लोगों को वारंगल से हैदराबाद सुनवाई के लिए ले जाया जा रहा था. सुनवाई जेल बदलने के लिए होनी थी, जिसके लिए इन पांच कथित अभियुक्तों ने अर्जी दी थी. पुलिस के अनुसार, रास्ते के बीच वकारुद्दीन ने पेशाब करने के लिए गाड़ी रोकने को कहा. पुलिस ने अलैर के पास के गाँव में गाड़ी रोकी. जब वकारुद्दीन पेशाब करके पुलिस बस में वापिस आया तो उसने वहां मौजूद पुलिसवालों से हथियार छीनने का प्रयास किया. उसके साथ बाकी चार आरोपी भी जुड़ गये. इसके बाद छीनाझपटी में बीचबचाव करते हुए पुलिस ने आत्मरक्षा में फायरिंग कर दी, जिसके तहत सभी पांचों आरोपी बस में ही मारे गए.

पुलिस स्टेटमेंट का रुख करें तो, ‘गाड़ी में घुसने के बाद वकारुद्दीन ने वहां मौजूद हवलदार की इंसास राइफल छीन ली और गोलियां चलाने लगा. बाकी चार भी नारे लगाते हुए हथियार छीनने का प्रयास करने लगे. इसके बाद पुलिस दल ने आत्मरक्षा में गोलियां चलायीं, जिसमें वकारुद्दीन और चार आरोपी मारे गए.’

इसके बाद घटनास्थल की शेयर हो रही तस्वीरों ने पुलिस के दावों के प्रति शंका पैदा कर दी. सोशल मीडिया पर शेयर हो रही इन तस्वीरों में सभी आरोपी हथकड़ी से बंधे हुए दिख रहे थे, जिससे पुलिस के ‘आत्मरक्षा’ वाले दावे संदेह के घेरे में जा रहे थे.

मारे गए आरोपी अमज़द अली के भाई इम्तियाज़ अली बताते हैं, ‘हमें पुलिस ने कोई जानकारी नही दी. हमें जानकारी सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों से मिली थी. 8 अप्रैल को हम अपने भाई की लाश लेने वारंगल गए. उसकी लाश गोलियों से छलनी हो चुकी थी.’


“अमज़द बताता था कि पुलिसवाले जब भी उसे पेशी के लिए हैदराबाद ले जाते हैं तो रास्ते भर बहुत ज्यादा मारते हैं. उसे बहुत ज्यादा प्रताड़ित किया गया था.”

इम्तियाज़ बताते हैं कि भाई को सुपुर्द-ए-खाक़ करने के बाद हम सभी लोगों ने पुलिस के खिलाफ़ केस दर्ज कराने का सोचा. 10 अप्रैल 2015 को अमज़द और बाकी चार आरोपियों के परिजन इस मामले की FIR दर्ज कराने अलैर थाने पहुंचे. लेकिन पुलिस ने FIR दर्ज करने के बजाय जनरल डायरी में मामला दर्ज किया.

हालांकि आरोपियों के परिजनों के मामला दर्ज कराने के पहले ही नालगोंडा के एसपी ने सभी आरोपियों के खिलाफ अलैर पुलिस स्टेशन में 120b, 143, 147, 397, 307, 224, 332 r/w 149 IPC और S25(1), आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज़ करा दिया, जिसके चलते परिजनों द्वारा की जाने वाली कानूनी कार्रवाई और पचड़े में फंसने लगी.

वजह क्या थी?

गिरफ्तारी के बाद अमज़द को चेर्लापल्ली जेल में रखा गया था. यहां उसका केस नामपल्ली कोर्ट में चल रहा था. लेकिन जेलकर्मी को पीटने के आरोप में कुछ समय बाद 2011 में वकारुद्दीन और अमज़द दोनों को वहां से लगभग 147 किलोमीटर दूर स्थित वारंगल जेल भेज दिया गया. जबकि उनके खिलाफ वारंगल में कोई भी मुक़दमा नहीं दर्ज था.


Syed Ajmed's brother, Imtiaz ALi
अमज़द के भाई इम्तियाज़

इम्तियाज़ बताते हैं, ‘उन्हें जानबूझकर वहां शिफ्ट किया गया ताकि पुलिस वाले मेरे भाई को टॉर्चर कर सकें क्योंकि मेरे भाई पर पुलिसवाले को मारने का आरोप था.’ जेल में हुई मुलाक़ात के बारे में इम्तियाज़ बताते हैं, ‘अमज़द बताता था कि पुलिसवाले जब भी उसे पेशी के लिए हैदराबाद ले जाते हैं तो रास्ते भर बहुत ज्यादा मारते हैं. उसे बहुत ज्यादा प्रताड़ित किया गया था.’

अमज़द के खिलाफ गुजरात के अहमदाबाद में मुकदमा दर्ज था. पुलिस अमज़द को वारंगल से अहमदाबाद ले जाती थी. मामले की सुनवाई हैदराबाद में होने लगी तो पुलिस वारंगल से हैदराबाद ले जाने लगी. इम्तियाज़ कहते हैं, ‘लेकिन यह बात मेरी समझ से बिलकुल बाहर है कि जब वारंगल में अमज़द के खिलाफ़ कोई भी मुक़दमा नहीं था तो उसे वहां रखा क्यों गया था?’


“अमज़द का सीना नीला पड़ गया था जैसे उसे राइफल की बट से मारा गया हो. और उसके दिल में भी गोली लगी थी, जिससे यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि उसे जान लेने की नीयत से ही मारा गया था. वकारुद्दीन का नाक की हड्डी और दांत टूटे हुए थे. ज़ाकिर का जबड़ा टेढ़ा हो गया था और हनीफ़ की पीठ पिटाई की चोट के निशानों से भरी हुई थी.”

इम्तियाज़ का आरोप है कि पुलिस वालों ने अमज़द को फर्जी मुठभेड़ में मारा है. इम्तियाज़ के मुताबिक़ पुलिस के हथियार छीनने और आत्मरक्षा में की गयी फायरिंग की कहानी बेबुनियाद है, असल में पुलिस ने अमज़द को बदले की भावना में मारा है. ‘उस दिन होने वाली पेशी में अदालत जेल बदलने का निर्णय सुना सकती थी. इसके बाद उन्हें वारंगल से हैदराबाद की किसी जेल में स्थानांतरित कर दिया जाता. ऐसे में पुलिस वालों को लगा कि यह आखिरी मौका है, इसलिए उसी दिन उन्होंने बदला लेने के लिए उन सभी को मार दिया.’

मुठभेड़ के एक दिन पहले ही वकारुद्दीन ने एक कबूलनामा दायर किया था, जिसमें उसने जान को ख़तरा होने की वजह से जेल बदलने की अर्जी दी थी. इम्तियाज़ कहते हैं, ‘सभी जानते थे कि पुलिस उनको मारने के लिए साज़िश रच रही थी. इसीलिए उन्होंने कोर्ट से हैदराबाद जेल में शिफ्ट करने की अपील की थी.’


A year after Aler encounter: Families ask questions that no one can answer (By Raqib Hameed Naik)
वह जगह जहां मुठभेड़ को अंजाम दिया गया

इम्तियाज़ का दावा है कि मारे गए सभी आरोपियों के शरीर पर मारपीट के निशान थे. वे बताते हैं, ‘सभी के शरीर पर कम से कम 6 से 7 गोलियों के घाव थे. पीटे जाने के निशान तो पूरे शरीर पर मौजूद थे.’ बकौल इम्तियाज़, अमज़द का सीना नीला पड़ गया था जैसे उसे राइफल की बट से मारा गया हो. और उसके दिल में भी गोली लगी थी, जिससे यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि उसे जान लेने की नीयत से ही मारा गया था. वकारुद्दीन का नाक की हड्डी और दांत टूटे हुए थे. ज़ाकिर का जबड़ा टेढ़ा हो गया था और हनीफ़ की पीठ पिटाई की चोट के निशानों से भरी हुई थी. इम्तियाज़ कहते हैं, ‘ये कोई मुठभेड़ नहीं थी. क़त्ल था, क़त्ल!’

पंचनामा की रिपोर्ट के मुताबिक़ अमज़द को कुल 11 गोलियां लगी थीं. चार गले की बाईं तरफ. एक सीने के बीच. एक रीढ़ की हड्डी के बीच. दो बाएं कंधे, दो दाएं कंधे और एक गोली कांख में मारी गयी थी. इम्तियाज़ कहते हैं, ‘उसकी लाश देखने पर ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे किसी इंसान की लाश हो.’

इंसाफ़ में देर

पूरे मामले की सुनवाई में भी एक रोचक देर होने लगी. पोस्टमॉर्टम की प्रति अभी तक परिवार को मुहैया नहीं कराई गयी है. परिवार ने दोबारा पोस्टमॉर्टम कराने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया. इम्तियाज़ पूछते हैं कि यह किस तरह की न्याय प्रणाली है? ‘न वे दोबारा पोस्टमॉर्टम की आज्ञा दे रहे हैं और न ही पुराने पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट ही दे रहे हैं. ऐसा लगता है कि वे कुछ छिपा रहे हैं?’

अमज़द के साथ-साथ वकारुद्दीन, हनीफ और ज़ाकिर के परिजनों के हाईकोर्ट में रिट पेटीशन दायर किया है, जिसके तहत उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग उठायी है. आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि एक साल पहले दायर की गयी इस याचिका की अभी तक एक बार भी सुनवाई नहीं हो सकी है.

इस बाबत इम्तियाज़ जानकारी देते हैं, ‘पिछ्ले साल हमारे वकील ने केस की सुनवाई के लिए कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. जज ने आदेश भी तो दिया था कि केस की रजिस्ट्री कर दी जाए और ऐसा हो भी गया था. लेकिन बाद में अचानक इसे वहाँ से हटा दिया गया.’ वह आगे बताते हैं, ‘इस मामले में ऊपर से प्रेशर बना हुआ है कि मुख्य आरोपियों को बचा लिया जाए. क्योंकि उन्हें पता है कि सुनवाई शुरू होते ही सचाई सामने आ जाएगी.’


Screen shot of lisiting of case on High courts webiste and later removed
Screen shot of lisiting of case on High courts webiste and later removed (2)
हाईकोर्ट की वेबसाईट से हटाई गयी केस रजिस्ट्री

कोर्ट के आदेश को हटाए जाने के मामले में जब TCN ने तहकीकात की तो हाईकोर्ट की वेबसाईट से पता चला कि पहले इस केस को सुनवाई के लिए रखा गया था, फिर बाद में हटा दिया गया. (देखें स्क्रीनशॉट)

इम्तियाज़ अभी भी न्यायव्यवस्था में विश्वास रखते हैं. कहते हैं, ‘अदालत ही हमारा आखिरी सहारा है. इस केस में यदि सुनवाई होती है, तभी हमें न्याय मिल सकता है. नहीं तो हमें ऐसा लग रहा है जैसे सिस्टम ने हमें धोखा दे दिया हो.’



इम्तियाज़ से पूरी बातचीत यहां सुनी जा सकती है

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