TwoCircles.net Staff Reporter
बेतिया(बिहार)-आज पीर मुहम्मद मूनिस की याद में चम्पारण के बेतिया शहर के एम.जे.के. कॉलेज में आज द्वितीय पीर मुहम्मद मूनिस स्मृति व्याख्यान सह-सम्मान समारोह आयोजित किया गया. पीर मुहम्मद मूनिस के बारे में ब्रिटिश दस्तावेजों में उल्लेख हैं कि वे अपने संदेहास्पद साहित्य के ज़रिए चम्पारण जैसे बिहार के पीड़ित क्षेत्र से देश दुनिया को अवगत कराने वाले और गांधी को चम्पारण आने के लिए प्रेरित करने वाले ख़तरनाक और बदमाश पत्रकार थे.
हिकमत फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस व्याख्यान को वरिष्ठ पत्रकार व राज्यसभा सांसद हरिवंश ने संबोधित करते हुए कहा, ‘चम्पारण संघर्ष व सृजन की धरती रही है. इसने देश को कई महापुरूष दिए हैं. पीर मुहम्मद मूनिस उन्हीं विभूतियों से एक थे.’ उन्होंने आगे बताया, ‘पीर मुहम्मद मूनिस आज भी मिशन पत्रकारिता के नज़ीर हैं, जिन्होंने अपनी पीड़ा व निजी चुनौतियों को दरकिनार कर समाज के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. पीर मुहम्मद मूनिस के बारे में सिर्फ़ चर्चा करना ही काफी नहीं है, बल्कि उनके कार्यों को आम जनता व बुद्धिजीवियों के सामने लाने के गंभीर प्रयास भी होने चाहिए.’
वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने कहा, ‘मूनिस अभिमानी पत्रकार थे. उन्होंने अपनी लेखनी के ज़रिए हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया. राजकुमार शुक्ल ने जितने भी पत्र गांधी को लिखे,उन सभी [पत्रों को राजकुमार शुक्ल ने नहीं, बल्कि पीर मुहम्मद मूनिस ने लिखा था.’ श्रीकांत ने आगे कहा, ‘मूनिस के आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं.’ उन्होंने इस अवसर पर मूनिस के कार्यों व लेखों को संग्रहित कर प्रकाशित कराने की अपील भी चम्पारण के लेखकों व बुद्धिजीवियों से की.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिकमत फाउंडेशन के अध्यक्ष सेवानिवृत्त आईएएस गुलरेज़ होदा ने लोगों से सवालिया अंदाज़ में कहा, ‘आज वर्तमान में जो सामाजिक व आर्थिक चुनौतियां हैं. अगर पीर मुहम्मद मूनिस होते तो क्या करते?’ फिर उन्होंने अपना जवाब पेश करते हुए कहा, ‘यक़ीनन वे बहुत ही जुझारू तरीक़े से लड़ते.’ मूनिस की लेखनी के तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए होदा ने कहा, ‘मूनिस भाषा के कारीगर थे. भाषा बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है. बल्कि मैं तो ये मानता हूं कि हमारे विचार ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होते, बल्कि उनका संचार महत्त्वपूर्ण होता है और संचार के लिए भाषा सबसे ज़रूरी चीज़ है.’
इस कार्यक्रम के ख़ास मेहमान आईपीएस अब्दुर रहमान ने पीर मुहम्मद मूनिस को सच्चा देशभक्त पत्रकार बताते हुए कहा, ‘चम्पारण के किसानों की पीड़ा को देशभर में उठाकर गांधी को चम्पारण आने के लिए मजबूर करने वाले इस पत्रकार को भारत रत्न दिये जाने की ज़रूरत है. हमें इसके लिए चम्पारण से एक मुहिम छेड़नी चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि उनके नाम पर शहर में एक लाईब्रेरी भी स्थापित किया जाए या फिर कम से कम बेतिया मेडिकल कॉलेज का नाम पीर मुहम्मद मूनिस के नाम पर रखा जाए.’
जयप्रकाश विश्ववद्यालय, छपरा के सीनेट एवं सिंडीकेट सदस्य प्रो. वीरेन्द्रनारायण यादव ने इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘आज समाज जिन समस्याओं से जुझ रहा है, उसमें पीर मुहम्मद मूनिस के तेवर एवं धार की ज़रूरत है. सच तो यह है कि चम्पारण से ही दुनिया की मुक्ति के इतिहास को संबल मिला, जिसको आगे बढ़ाना एक राष्ट्रीय कर्तव्य है.’
पीर मुहम्मद मूनिस के काम और जीवन पर शोधपरक किताब लिखने वाले पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल ने कहा, ‘यह कितना अजीब है कि कलम के सिपाही ने जिसने अपने समाज और देश के लिए संघर्ष किया, उसे न सिर्फ़ उसकी क़ौम ने बल्कि उस समाज ने भी भुला दिया है, जिसके लिए वो अपनी आख़िरी सांस तक संघर्ष करते रहें.’ इस कार्यक्रम का मंच संचालन हिकमत फाउंडेशन के सचिव डॉ. खुर्शीद कर रहे थे. वहीं धन्यवाद ज्ञापन एम.जे.के. कॉलेज के रसायनशास्त्र के विभागाध्यक्ष ओ.पी. गुप्ता ने दिया.
इस कार्यक्रम में पहला पीर मुहम्मद मूनिस पत्रकारिता पुरस्कार इस बार एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार को दिया गया. उनके नाम की घोषणा करते हुए अफ़रोज़ आलम साहिल ने बताया, ‘चम्पारण के धरती से जुड़े हुए रवीश कुमार किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उन्होंने मौजूदा पत्रकारिता को अपनी स्वतंत्र विचारधारा और शानदार शैली से एक नया आयाम दिया है. रवीश कुमार ने यह सम्मान स्वीकार करने की हामी भरकर चम्पारणवासियों को गौरवन्तित किया है. यह पीर मुहम्मद मूनिस के प्रति उनकी सच्ची श्रद्धांजलि है.’
हालांकि अपनी व्यस्तता की वजह से रवीश कुमार कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके. लेकिन इस कार्यक्रम में उनके द्वारा रिकार्ड करके भेजे गए संदेश को सुनाया गया, जिसमें रवीश कुमार ने पीर मुहम्मद मूनिस को याद करते हुए आज की पत्रकारिता पर चिंता व्यक्त की है.