बिहार का विशेष राज्य दर्जा : कितना सही कितना गलत

संतोष कुमार झा

बीते दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने अंतर्राज्यीय परिषद की दिल्ली में हुई बैठक में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर राजनीतिक सरगर्मी फिर से तेज़ कर दी है. इस मांग को नीतिश कुमार एक लम्बे समय से उठाते रहे हैं, जिसका मकसद न सिर्फ ‘बिहारी अस्मिता’ की राजनीति को प्राथमिकता देना हैं बल्कि इसके ज़रिये केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरना भी है. इस बारे में उनकी दलील है कि जिस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिला है, वहां विकास हुआ है. आगे कहते हैं कि बिहार को पिछड़ेपन से निजात दिलाने और बिहार को विकास की राष्ट्रीय रफ़्तार तक पहुंचाने के लिए विशेष राज्य का दर्जा समय की मांग है.


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नीतिश कुमार की विशेष राज्य के दर्जे की मांग इस बुनियाद पर जायज़ ठहरती है कि बिहार में प्रति व्यक्ति आय (13,632 रु.) न सिर्फ राष्ट्रीय औसत (39,993 रु.) से लगभग तीन गुना कम है, बल्कि विशेष राज्य का स्टेटस पाए अन्य राज्यों से भी कम है. एससीओ के 2011 के आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश (47,106 रु.), सिक्किम (47,665 रु.), त्रिपुरा (37,216 रु.) और मिज़ोरम (36,372 रु.) जैसे विशेष दर्जा प्राप्त राज्य इस मामले में बिहार से काफी आगे है.

इसके अलावा रघुराम राजन समिति रिपोर्ट ने भी बिहार और नौ अन्य राज्यों को पिछड़े राज्य के तौर पर रेखांकित किया है.

ज्ञात रहे कि गाडगिल फ़ॉर्मूला को राष्ट्रीय विकास परिषद के द्वारा 1969 में पास किया गया. इसके तहत वर्ष 1969 में कुछ विशेष मापदंड निर्धारित किए गए थे. इस पर खरे उतरने वाले राज्यों को ही विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान है, लेकिन इसके अपवाद भी हैं.

इस मापदंड के आधार पर पहाड़ी और कठिन भौगोलिक स्थिति, कम संसाधन, आदिवासियों की बहुलता एवं सामरिक महत्व वाले राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने का आधार बनाया गया है. इसके तहत उत्तर-पूर्व के आठ राज्य, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को यह दर्जा प्राप्त है.

यह दर्जा प्राप्त करने वाले राज्य को केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं में 90 प्रतिशत आर्थिक सहायता केन्द्र द्वारा दी जाती है. और शेष 10 प्रतिशत उन्हें कम ऋण दरों पर दिया जाता है. साथ ही केन्द्र द्वारा राज्य को मिलने वाले विशेष पैकेज का ऑडिट भी नहीं कराया जाता है.

विशेष राज्य की इस मांग के आर्थिक के अलावा राजनीतिक पहलू भी हैं. ग़ौरतलब है कि नीतिश कुमार के नेतृत्व में जदयू-भाजपा गठबंधन लंबे समय सत्ता में रहा है लेकिन बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग नीतिश अकेले ही उठाते रहे हैं. जब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार थी तब भाजपा भी इस मसले का समर्थन कर रही थी.

पूर्व में नीतिश ने दिल्ली के रामलीला मैदान में 17 मार्च 2013 को अधिकार रैली का आयोजन किया और इस मुहिम की हिमायत में पूरे बिहार में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया. कांग्रेस की यूपीए सरकार ने उस वक़्त के अपने विरोधी नीतिश कुमार – जो उस समय एनडीए के घटक थे – की मांग को ख़ारिज कर दिया था, उस समय के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोन्टेक सिंह अहलूवालिया ने बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा के बजाय पिछड़ेपन के आधार पर अतिरिक्त पैकेज देने की बात कही थी. मगर नीतीश इस मुद्दे को उठाते रहे और लोकसभा चुनाव 2014 में भी इसकी गूंज सुनायी पड़ी.

2015 के बिहार विधानसभा के चुनाव में भी नीतिश ने इस मुद्दे के ज़रिये केंद्र में सत्तासीन भाजपा के आक्रामक चुनावी अभियान पर जवाबी हमला किया. नीतिश के इस प्रभावशाली राजनीतिक कार्ड का जवाब देने प्रधानमंत्री मोदी ने प्रचार के दौरान बिहार को एक सौ पचीस लाख करोड़ का विशेष पैकेज की घोषणा की.

बिहार विधानसभा में मिली जीत की एक बड़ी वजह नीतिश की बिहार अस्मिता की राजनीति भी थी, जिसमें बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग ने अहम भूमिका निभाई. नीतिश इस मांग को आगे भी उठाना चाहते हैं और इसके ज़रिये मोदी सरकार को घेरने की उनकी कोशिश जारी है.

दूसरी तरफ भाजपा नीतिश की इस कवायद को राजनीति से प्रेरित बताती है और पार्टी का आरोप है की नीतिश अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिए विशेष राज्य का रोना रो रहे हैं. बिहार भाजपा के प्रवक्ता और विधान पार्षद विनोद नारायण झा ने नीतिशपर हमला करते हुए कहा कि वे खुद भाजपा बिहार को विशेष राज्य के दर्जा का विरोधी नहीं है लेकिन नीतिश कब तक इस मुद्दे की आड़ में अपनी नाकामियों को छिपाते रहेंगे. आगे झा कहते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा मिल जाने से भी राज्य को बहुत अधिक लाभ नहीं होने वाले हैं क्योंकि उद्योग लगाने के लिए बिहार सरकार के पास ज़मीन नहीं है. भाजपाशासित हरियाणा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह राज्य बगैर विशेष राज्य की बैसाखी के आज विकास के रास्ते पर आगे निकल चुका है.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मोदी सरकार बिहार के विशेष राज्य के दर्जे को ख़ारिज करने के लिए अपने प्रतिद्वंदी यूपीए सरकार की दलीलों को उधार ले सकती है. मोदी सरकार की आर्थिक नीति सब्सिडी और आर्थिक पैकेज में लगातार कटौती कर रही है और इस वजह से वह नहीं चाहेगी कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर और राज्यों को इस तरह की मांग उठाने का न्योता दे. तभी तो नीतिश उस मुद्दे को उठा कर मोदी हुकूमत को न सिर्फ घेरना चाहते हैं बल्कि अपनी असली राजनीतिक जमीन बिहार में अपनी पकड़ और मज़बूत करना चाहते हैं.

[संतोष कुमार झा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]

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