TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ : अपने पुराने पेंशन व अन्य कई मांगों को लेकर लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों पर पुलिस द्वारा किए गए लाठी चार्ज में शिक्षक रामाशीष सिंह की मौत के बाद पूरे उत्तर प्रदेश के शिक्षकों में काफी रोष है. पूरे उत्तर प्रदेश में इस मामले को लेकर विरोध-प्रदर्शन और अपने कार्य का बहिष्कार किया. शिक्षकों ने जगह-जगह धरना देते हुए मांग की कि शिक्षक रामाशीष सिंह के परिजनों को एक करोड़ का मुआवज़ा व परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए.
वहीं उत्तर प्रदेश की सामाजिक-राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने लखनऊ में शिक्षकों पर पुलिसिया हमले और उसमें शिक्षक रामाशीष सिंह की मौत के लिए अखिलेश यादव को ज़िम्मेदार ठहराया है.
मंच ने कहा कि पिछले 2 नवम्बर को भी हज़रतगंज गांधी प्रतिमा पर इंसाफ़ मांगते रिहाई मंच नेताओं पर इसी तरीक़े से क़ातिलाना हमला पुलिस ने किया था. आज जिस तरह पुलिस ने शिक्षक का क़त्ल किया और सैकड़ों को गंभीर रूप से घायल किया, वह साफ़ करता है कि यह हमले सिर्फ़ पुलिसिया नहीं है बल्कि यह सब सरकार की सरपरस्ती में हो रहे हैं.
रिहाई मंच के लाटूश रोड स्थित कार्यालय पर हुई बैठक में मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने शिक्षक रामाशीष सिंह के क़त्ल के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अखिलेश अपनी धूमिल छवि को बचाने के लिए इंसाफ़ मांगते लोगों पर क़ातिलाना हमले करवा रहे हैं.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि जिस तरीक़े से सूबे की राजधानी में शिक्षक रामाशीष सिंह की दौड़ा-दौड़ा पीटा और हत्या की, वह साबित करता है कि सूबे में क़ानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.
उन्होंने कहा कि इस सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पुलिस और नेता क़त्ल करते हैं और फिर अखिलेश मुआवज़ा देते हैं. यह इंसाफ़ को कुचलने की एक परंपरा सी बन गई है. जिस तरीक़े से पिछले दिनों बांदा में पांच मुस्लिम युवकों को मार-मार कर पुलिस ने चमड़ी उधेड़ ली. इलाहाबाद के एक युवक आरिफ़ को इतना मारा कि वह कोमा में है. ठीक इसी तरीक़े से सरकार के मंत्री राममूर्ति वर्मा ने पत्रकार जगेन्द्र को जिन्दा जलवा दिया. बाराबंकी में पत्रकार की मां से थाने में बलात्कार की कोशिश और फिर उन्हें ज़िन्दा जला दिया जाना, बहराइच में आरटीआई कार्यकर्ता को पुलिस की मौजूदगी में दौड़ा कर मार दिया जाना- ये सिर्फ़ घटनाएं नहीं हैं बल्कि अखिलेश सरकार का वह क्रूरतम चेहरा है, जिस पर विकास का नक़ाब लगाकर अखिलेश राजनीति करना चाहते हैं.
आगे उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश दलित, मुस्लिम और महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा में सर्वोच्च स्थान पर है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी मूलभूत सुविधाएं फेल हैं. पर हमारे मुख्यमंत्री को सूबे के किसानों से छीनी गई ज़मीन पर हाइवे बनाने पर गर्व है.
रिहाई मंच नेता जैद अहमद फ़ारूक़ी ने कहा कि लखनऊ पुलिस को इंसाफ़ की मांग करने वालों का क़त्ल करने के लिए ही ‘मित्र पुलिस’ का तमगा दिया गया है. जो नेताओं के लिए तो मित्र है लेकिन अपने पेंशन की मांग करने वाले शिक्षकों और गरीब जनता के लिए शत्रु हैं.
अम्बेडकर कांग्रेस के फ़रीद खान ने आरोप लगाया कि अखिलेश सरकार में पुलिस सपा कार्यकर्ताओं की तरह काम कर रही है. वहीं शरद जायसवाल ने कहा कि काला धन के बंटवारे के लिए चचा-भतीजे की लड़ाई में शामिल होने आए प्रदेश भर के सपाई गुंडों की तो ‘मित्र पुलिस’ दामादों की तरह सेवा करती है, लेकिन अपने वाजिब हक़ की मांग करने वाले शिक्षकों को पीट कर मार डालती है.
इस पूरे मामले में पुलिस का कहना है कि शिक्षक की मौत लाठी-चार्ज में घायल होने से नहीं बल्कि हार्ट-अटैक से हुई है.
बताते चलें कि रामाशीष कुशीनगर ज़िले के हाटा स्थित गांधी स्मारक इंटर कॉलेज में दस साल से अंग्रेज़ी के अध्यापक के तौर पर कार्यरत थे.