TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ :आज से 8 साल 7 महीने पहले जिन लोगों पर देशद्रोह का आरोप लगा था, वो इतने दिनों तक जेल में सड़ने के बाद आख़िरकार अब लखनऊ की एक स्पेशल कोर्ट ने इन्हें इस आरोप से मुक्त कर दिया है.
लखनऊ की सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने स्पेशल कोर्ट के इस फैसले को सपा सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है. साथ ही मंच ने देशद्रोह और यूएपीए को बेगुनाहों को फंसाने का पुलिसिया हथियार बताते हुए इसे ख़त्म करने की मांग की है.
गौरतलब है कि 12 अगस्त 2008 को लखनऊ कोर्ट परिसर में एडवोकेट मुहम्मद शुऐब को आतंकवाद का केस न लड़ने के लिए हिन्दुत्वादी जेहनियत वाले अधिवक्ताओं द्वारा मारने-पीटने के बाद मुहम्मद शुऐब व आतंकवाद के आरोप में क़ैद अजीर्जुरहमान, मो0 अली अकबर, नूर इस्लाम, नौशाद व शेख मुख्तार हुसैन के खिलाफ़ ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद -पाकिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगाने का झूठा आरोप लगाकर इन्हें आईपीसी की धारा 114, 109, 147, 124 ए (देशद्रोह) और 153 ए के तहत अभियुक्त बनाया गया था.
रिहाई मंच की ओर से जारी एक प्रेस बयान में अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि –‘2012 में आतंकवाद के आरोप में कैद निर्दोषों को छोड़ने के नाम पर आई सपा सरकार ने अपना वादा अगर पूरा किया होता तो पहले ही ये बेगुनाह छूट गए होते.’
उन्होंने कहा कि सरकार ने वादा किया था कि आतंक के आरोपों से बरी हुए लोगों को मुआवजा व पुर्नवास किया जाएगा, पर खुद अखिलेश सरकार अब तक अपने शासनकाल में दोषमुक्त हुए किसी भी व्यक्ति को न मुआवजा दिया न पुर्नवास किया. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को डर है कि अगर आतंक के आरोपों से बरी लोगों को मुआवज़ा व पुर्नवास करेंगे तो उनका हिन्दुत्वादी वोट बैंक उनके खिलाफ़ हो जाएगा.
मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आज दोष मुक्त हुए तीन युवक पश्चिम बंगाल से हैं. ऐसे में जब अखिलेश यादव पुर्नवास व मुआवज़ा की गारंटी नहीं कर रहे हैं, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इनके सम्मान सहित पुर्नवास की गांरटी देनी चाहिए.
मंच के प्रवक्ता राजीव यादव बताते हैं कि –‘नवंबर 2007 में यूपी की कचहरियों में हुए धमाकों के बाद आतंकवाद का केस किसी भी अधिवक्ता को न लड़ने देने का फरमान अधिवक्ताओं के बार एशोसिएशनों ने जारी किया था, उस वक्त अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने इसे संविधान प्रदत्त अधिकारों पर हमला और अदालती प्रक्रिया का माखौल बनाना बताते हुए आतंकवाद के आरोपों में कैद बेगुनाहों का मुक़दमा लड़ना शुरु किया था.’
राजीव के मुताबिक़ –‘जनवरी 2007 में कोलकाता के आफ़ताब आलम अंसारी की मात्र 22 दिनों में रिहाई से शुरु हुई बेगुनाहों की इस लड़ाई में मुहम्मद शुऐब और उनके अधिवक्ता साथियों पर प्रदेश की विभिन्न कचहरियों में हमले हुए. पर ऐसी किसी भी घटना से विचलित न होते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब अब तक दर्जन भर से अधिक आतंकवाद के आरोप में कैद बेगुनाहों को छुड़ा चुके हैं.’
राजीव यादव का कहना है कि –‘इंसाफ़ की इस लड़ाई में हम सभी ने अधिवक्ता शाहिद आज़मी, मौलाना खालिद मुजाहिद समेत कईयों को खोया है, पर इस लड़ाई में न सिर्फ़ बेगुनाह छूट रहे हैं, बल्कि देश की सुख शांति के खिलाफ़ साजिश करने वाली खुफिया-सुरक्षा एजेंसियों की हकीक़त भी सामने आ रही है.’
उन्होनें बताया कि इस मुक़दमें से बरी हुए अजीर्जुरहमान, मो0 अली अकबर हुसैन, नौशाद, नूर इस्लाम, शेख मुख्तार हुसैन के अलावां जलालुद्दीन जिनपर हूजी आतंकी का आरोप लगाया गया था, अदालत द्वारा अक्टूबर 2015 में पहले ही निर्दोष घोषित किए जा चुके हैं. जून 2007 में इनके साथ ही यूपी के नासिर और याकूब की भी गिरफ्तारी हुई थी, जिन्हें अदालत दोषमुक्त कर चुकी है.
राजीव यादव का कहना है कि –‘जून 2007 में लखनऊ में आतंकी हमले का षडयंत्र रचने वाले सभी आरोपी जब बरी हो चुके हैं, तो इस घटना पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.’
राजीव के मुताबिक़ यहां गौर करने की बात यह है कि 2007 में मायावती और राहुल गांधी पर आतंकी हमले के नाम पर मुस्लिम लड़कों को झूठे आरोपों में न सिर्फ़ पकड़ा गया, बल्कि 23 दिसबंर 2007 को मायावती को मारने आने के नाम पर दो कश्मीरी शाल बेचने वालों का चिनहट में फ़र्जी मुठभेड़ किया गया. ऐसे में आतंकवाद की राजनीति के तहत फंसाए गए इन युवकों पर राहुल और मायावती को अपना मुंह खोलना चाहिए.