मेरठ के हिंदू परिवार की जेल में पाकिस्तानी आबिद से मुलाक़ात, संदेह अभी भी बरक़रार

TwoCircles.net Staff Reporter

लखनऊ : 2007 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के तथाकथित अपहरण की साज़िश रचने के नाम पर जेल में बंद तथाकथित पाकिस्तानी ‘आतंकी’ आबिद को लेकर अभी भी संदेह बरक़रार है कि वो वाक़ई पाकिस्तान का आबिद है या मेरठ का प्रवीण.


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आज मेरठ से आए हिंदू परिवार ने लखनऊ जेल में पाकिस्तानी आबिद से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के बाद महेश देवी और उनके बेटे पवन कुमार ने कहा कि आबिद का चेहरा, पैर और माथे का निशान, दांत की बनावटें, लंबाई और बोलने का तरीक़ा सब कुछ प्रवीण से काफी मिलता जुलता है.

उन्होंने कहा कि बात करते समय उसकी आंखों में भी नमी थी पर वह मुस्कुराता रहा. हालांकि आबिद ने यह कहा कि वह उनका बेटा नहीं है. लेकिन आबिद को जब महेश देवी और पवन ने प्रवीण का पुराना फोटो दिखाया तो उसने भी कहा कि यह फोटो उससे काफी मिलती है.

Merut Family

परिजनों का यह भी कहना है कि चूंकि उसके सर के बाल काफी गिर चुके हैं और उसने लम्बी दाढ़ी भी रखी हुई है इसलिए क़रीब दस साल बाद उससे मिल कर पहचान पाना बहुत आसान भी नहीं हो सकता है.

परिजनों का कहना हैं कि जेल में एसटीएफए, एटीएसए, पुलिस और खुफिया के क़रीब दस लोगों की मौजूदगी यह मुलाक़ात हुई है. ऐसे में वो दबाव में भी हो सकता है. इसलिए ज़रूरी है कि उसका डीएनए टेस्ट कराया जाए.

उनका यह भी कहना है कि वैसे भी बिना डीएनए टेस्ट कराए सरकार भी उसे प्रवीण कुमार मानकर नहीं छोड़ती और ना ही हम भी उसे बिना डीएनए टेस्ट कराए प्रवीण कुमार मान लेते.

अपने खोए भाई प्रवीण को दस साल से खोज रहे पवन ने कहा कि अगर वो कह भी देता कि वो उनका भाई है तब भी उसे हम बिना डीएनए टेस्ट कराए अपना भाई नहीं मान लेते, क्योंकि उसे पाकिस्तानी आतंकी होने के आरोप में सज़ा हुई है.

महेश देवी और पवन ने यह भी कहा कि ऐसा असम्भव नहीं है कि दो लोगों की शक्लें एक दूसरे से हूबहू ना मिलती हों. ऐसे में हम किसी भी अनजान व्यक्ति को सिर्फ़ शक्ल सूरत मिलने के आधार पर अपने घर में अपना भाई मान कर कैसे रख सकते हैं.

उन्होंने कहा कि हमारी आशंका को दूर करने के लिए आबिद और हमारे परिवार के लोगों का डीएनए टेस्ट कराया जाए ताकि सच्चाई साफ़ हो सके.

लखनऊ जेल में हुई इस मुलाक़ात में मौजूद आबिद मामले के अधिवक्ता रहे रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आबिद उर्फ फत्ते ने बातचीत के दौरान अपनी गिरफ्तारी नवंबर 2007 में ग़ाजियाबाद से हुई बताई, जिसे बाद में लखनऊ में गिरफ्तार दिखा दिया गया. जो पुलिस की पूरी कहानी को ही फ़र्ज़ी साबित कर देता है कि उन्हें लखनऊ से मुठभेड़ के बाद तब पकड़ा गया था जब वो राहुल गांधी का अपहरण करने के लिए लखनऊ आए थे.

मुहम्मद शुऐब ने यह भी कहा कि आबिद का यह कहना कि उसे गाज़ियाबाद में पकड़ा गया था, पवन के संदेह को और मज़बूत करता है क्योंकि 5 मई 2006 को दिल्ली के खजूरी खास में हुए मुठभेड़ में पहले एसटीएफ ने यही दावा किया था कि मारे गए लोगों में से एक प्रवीण हो सकता है. लेकिन जब उनका परिवार वहां शव की शिनाख्त करने पहुंचा तो मारे गए लोगों में प्रवीण का शव नहीं था. जिसके बाद एसटीएफ अधिकारियों ने अख़बारों में बयान दिया था कि प्रवीण मुठभेड़ के दौरान फ़रार होने में कामयाब हो गया था.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मुठभेड़ के बाद प्रवीण को जिस तरह से एसटीएफ ने पहले मृतक और फिर फ़रार बताया वह यह संदेह पैदा करता है कि प्रवीण को एसटीएफ ने अपने अवैध कस्टडी में रख लिया हो और बाद में गुडवर्क दिखाने के नाम पर उसे पाकिस्तानी आतंकी बताकर लखनऊ में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार दिया हो. यह आशंका इससे भी पुख्ता हो जाती है कि यह मुठभेड़ भी मेरठ एसटीएफ ने की थी जिसका इनपुट उसे ही मिला था कि दिल्ली से चलकर के कुछ पाकिस्तानी आतंकी लखनऊ में किसी बड़े नेता का अपहरण करने की फिराक़ में हैं.

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आखिर क्या वजह हो सकती है कि मेरठ से ही पीछा कर रही एसटीएफ ने राजधानी लखनऊ जा रहे आतंकियों की सूचना लखनऊ पुलिस या एसटीएफ को क्यों नहीं दी. क्या इसकी वजह यह तो नहीं थी कि यह पूरा मामला ही फ़र्ज़ी था और कथित आतंकी उनकी कस्टडी में ही थे, जिन्हें उन्होंने षडयंत्र के तहत लखनऊ में गिरफ्तार दिखा दिया.

यह संदेह इस तथ्य से और भी पुख्ता हो जाता है कि 25 से 30 मिनट तक चले इस कथित मुठभेड़ में चार्जशीट के अनुसार एसटीएफ की तरफ़ से 39 राऊंड और तीनों आतंकियों की तरफ़ से 26 राऊंड गोलियां चलाई गईं. लेकिन न तो एसटीएफ का कोई अधिकारी घायल हुआ और ना ही आतंकियों में से ही कोई घायल हुआ. वहीं यह तथ्य भी पुलिस के दावे को फ़र्ज़ी और हास्यास्पद साबित कर देता है कि उन्होंने दो आतंकियों को हैंड-ग्रेनेड की पिन निकालने की कोशिश करते वक्त पकड़ लिया. जो किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है क्योंकि अगर उनके पास हैंड-ग्रेनेड थे तो वे जवाबी हमले के दौरान ही उसका इस्तेमाल कर सकते थे.

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि आबिद के इस दावे ने कि उसे ग़ाजियाबाद से पकड़कर लखनऊ से दिखा दिया गया था, वह पूरी पुलिसिया कहानी को ही संदिग्ध साबित कर देता है, जिसकी उच्चस्तरीय जांच कराई जानी चाहिए.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने प्रवीण-आबिद प्रकरण पर यूपी के मुख्यमंत्री, राज्य गृह मंत्रालय और केन्द्रीय गृह मंत्रालय से हस्तक्षेप मांग की. उन्होंने कंकर खेड़ा मेरठ निवासी महेश देवी पवन कुमार व उनके परिवार की सुरक्षा की गांरटी की भी मांग की.

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