सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
कल उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के बयान के बाद उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल बेहद गर्म हो गया है. बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ दयाशंकर सिंह के अभद्र और अपमानजनक बयान के बाद पार्टी ने उन्हें पद और सदस्यता दोनों से निष्कासित कर दिया है. इसके साथ ही अरुण जेटली ने माफी भी मांग ली है. लेकिन इसके बावजूद भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी धार खोती जा रही है.
मायावती के खिलाफ बयान देना ही बस एक मसला नहीं है. मुंबई में अम्बेडकर भवन गिराए जाने के बाद लाखों की संख्या में अम्बेडकर समर्थक कल सडकों पर उतर आए और पूरी मुंबई में राज्य सरकार के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन हुआ. इसके साथ ही गुजरात के उना में गाय की हत्या के आरोप में जिन दलितों को गौ-रक्षक गुंडों ने पीटा था, उनके खिलाफ राज्य के आधे से भी ज्यादा हिस्से में कल दलितों ने प्रदर्शन किए और राज्य को यह दिखाने की कोशिश की कि पशुओं के नाम पर इस किस्म का सोशल जजमेंट बंद होना चाहिए.
लेकिन इन सभी घटनाओं को तो सभी जानते हैं. प्रश्न उठता है कि इन घटनाओं से क्या निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. ज़ाहिर है कि ये घटनाएं अभिव्यक्ति और आज़ादी के समर्थन में घटी हुई घटनाएं हैं. लेकिन यह सोचना भी आश्चर्य का विषय होगा कि इन घटनाओं ने कोई बदलाव लाया हो या न लाया हो, लेकिन पंजाब और उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों की हवा का रुख बदलने का काम ज़रूर किया है. भारतीय जनता पार्टी ने दयाशंकर सिंह को पार्टी और पद से निष्कासित तो कर दिया है लेकिन पार्टी अपने पूरे तेवर में आ चुकी मायावती को कितना रोक पाती है, यह भी देखने की बात होगी.
मायावती उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति को समझने वाली एक पुरानी नेता हैं. यह बात भी सच है कि हाल के दिनों में उनकी पार्टी की स्थिति बेहद नाज़ुक रही है. लोकसभा चुनावों में जबरदस्त हार के बाद मायावती की पार्टी से लगभग आधा दर्जन लोगों ने इस्तीफा दे दिया. इन लोगों ने इस्तीफा देने के साथ-साथ मायावती पर पैसों के बदले टिकट बांटने का आरोप भी लगाया. लेकिन इन सबके बावजूद उत्तर प्रदेश के कयासी बाज़ार का रुख करें तो इस बार दलितों के साथ-साथ मुसलमानों के भी वोट मायावती के पास जाते दिख रहे हैं. ऐसे में जब मुसलमान पहले से भाजपा के खिलाफ हैं तो इन दलित समीकरणों का लाभ उठाने में मायावती कोई देर नहीं करेंगी. उन्होंने पहले से ही दयाशंकर सिंह के बयान के बाद उत्तर प्रदेश में सवर्ण बनाम गैर-सवर्ण की नींव रख दी है.
उत्तर प्रदेश में भाजपा दलितों को अपनी ओर करने में जुटी हुई है. अमित शाह इस सिलसिले में दलितों के घर खाना खाते हुए देखे जा सकते हैं. लेकिन भाजपाशासित राज्यों महाराष्ट्र और गुजरात में हो रहे दलित आन्दोलनों के चलते उत्तर प्रदेश का एक बड़ा दलित समुदाय भाजपा से दूरी बना सकता है. और उत्तर प्रदेश ही क्यों, पंजाब में भी दलित समुदाय की एक अच्छी-खासी संख्या है. गुजरात और महाराष्ट्र में घट रही चीज़ों का असर पंजाब के चुनावों पर भी पड़ेगा, यह तय माना जा रहा है.
लेकिन इन सबके बीच ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा बुलंद करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से भाजपा की स्थिति और भी ज्यादा खराब होती जा रही है. खासकर उत्तर प्रदेश में, दलितों को लेकर भाजपा का रुख स्पष्ट न होने की साफ वजह प्रधानमंत्री की चुप्पी है. प्रदेश के दलित विचारकों का यह कहना है कि यदि प्रधानमंत्री विधानसभा चुनावों के लिए रैलियां कर सकते हैं, तो ज़ाहिर है कि वे दलित समुदाय के प्रति भाजपा का रुख ज़रूर स्पष्ट करेंगे. लेकिन इसके उलट प्रधानमंत्री के मुंह से भाजपा और दलित समुदाय के अंतर्संबंधों को साधने का कोई भी वाक्य सुनने को नहीं मिला है.
गुजरात में तीन दिनों में दलित समुदाय के जुड़े लोगों ने प्रदर्शन किए हैं. शुरुआत ऐसे हुई कि दलितों ने मरी हुई गायों से भरे ट्रक को सुरेंद्रनगर कलेक्ट्रेट के सामने पलट दिया और मरी गायों का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. इसके बाद से गुजरात के कई जिलों में दलितों ने प्रदर्शन किए और राज्य सरकार की सांस फूलने लगी. एक तरफ आरएसएस ने जहां इन दलितों को भाई कहकर गौरक्षकों से पीछा छुडाना चाहा, वहीँ विश्व हिन्दू परिषद् के एक पत्र ने और भी हिन्दूवादी ताकतों के रवैये को और भी संदिग्ध कर दिया है. इस पत्र का एक वाक्य है, ‘नैसर्गिक रूप से मरी गायों और पशुओं के निपटान की हिंदू समाज में व्यवस्था है और वह परंपरागत रूप से चली आ रही है.’ इस एक वाक्य को लिखकर विश्व हिन्दू परिषद् ने यह संकेत दे दिए हैं कि हिन्दूवादी संगठनों के भीतर मरे पशुओं के निबटारे के लिए सिर्फ दलित का ही नाम आता है. अव्वल तो हिन्दू समाज पूरी तरह से पुरानी विचारधारा पर चल रहा है, जिसके तहत दलितों पर अत्याचार कभी कम नहीं होंगे, बल्कि बढ़ते ही जाएंगे. दलित विचारक और पत्रकार दिलीप मंडल ने मांग की है कि विश्व हिन्दू परिषद् को अपने बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए.
मुंबई में जेएनयू के कन्हैया कुमार के नेतृत्व में फिर से आज़ादी के नारे लगे. लाखों की भीड़ जमा हो गयी. बारिश होती रही, लेकिन लोगों ने हिलने का नाम नहीं लिया. गुजरात के बाद एक और भाजपाशासित राज्य में दलित सरकार के खिलाफ़ उठ खड़े हुए. बिहार के मधेपुरा से सांसद पप्पू यादव ने कहा कि एक इंसान की रक्षा के लिए लाखों गायें कुर्बान की जा सकतीं हैं. यादव समुदाय के लिए गाय का बड़ा महत्त्व है लेकिन पप्पू यादव के बयान का भी है. समाजवादी राजनीति में गाय का स्थान बड़ा हो सकता है, लेकिन उस स्थान को दांव पर लगाकर पप्पू यादव ने यह साबित कर दिया है कि गाय सिर्फ भाजपा के लिए ही चुनावी मुद्दा हो सकती है.
ऐसे में कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश और पंजाब के संबंधों को देखें तो गुजरात व महाराष्ट्र में मुंह की खा रही भाजपा के पास इन दो राज्यों में चुनाव जीतने के लिए काफी मशक्क़त करनी होगी. मोदी की चुप्पी से भाजपा को बेशक़ मात कहानी होगी. यही नहीं, मोदी यदि दलितों के पक्ष में बोलते हैं तो उन्हें तुरंत मुस्लिम समुदाय के लोगों के पक्ष में भी बोलना होगा. जिन्हें बीते कुछ समय में गौरक्षकों द्वारा मारा-पीटा गया है.