संघ की छांव में जलता मध्य प्रदेश

जावेद अनीस

मध्य प्रदेश वह सूबा है जहां संघ परिवार अपने शुरुआती दौर में ही दबदबा बनाने में कामयाब रहा है. इस प्रयोगशाला में संघ ने सामाजिक स्तर पर अपनी गहरी पैठ बनाने में सफल रहा है और मौजूदा परिदृश्य में हर तरह से हावी है.


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इधर मध्य प्रदेश में भगवा खेमे के मंसूबे नए मकाम तय कर रहें हैं. ताजा मामला आईएएस अधिकारी और बड़वानी के कलेक्टर अजय गंगवार का है, जिन्हें फेसबुक पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तारीफ की वजह से शिवराज सरकार के कोप का सामना करना पड़ा और उनका ट्रांसफर कर दिया गया. यही नहीं, उन्हें 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक फ़ेसबुक पोस्ट को लाइक करने को सर्विस कोड कंडक्ट का उल्लंघन बताते हुए नोटिस भी जारी किया गया है.



(Representational image from IndiaWires.com)

हाल में ही ख़त्म हुए सिंहस्थ कुम्भ को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. इस आयोजन की पूरी रूपरेखा धार्मिक और सांस्कृतिक थी. लेकिन इस कार्यक्रम में प्रदेश सरकार की संलिप्तता और वैचारिक हस्तक्षेप के जरिए संघ की विचारधारा को जो जनसमर्थन पहुंचाने की कोशिश की गयी, उससे सिंहस्थ कुम्भ का पूरा स्वरुप ही बदल गया.

पिछले महीनों में प्रदेश के कई हिस्सों में सिलसिलेवार तरीके से साम्प्रदायिक तनाव के मामले सामने आये हैं. कुछ ऐसी घटनाये भी हुई है जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपना ध्यान खींचा है. फिर वह चाहे खिरकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में बीफ़ होने के शक में एक बुजर्ग मुस्लिम दंपति की पिटाई का मामला हो या धार में भोजशाला विवाद का. भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को नरमपंथी दिखाने का मौका ना चूकते हों लेकिन यह सब कुछ उनकी सरकार के संरक्षण में संघ परिवार के सहयोगी संगठनों द्वारा ही अंजाम दिया जा रहा है. इन सबके बीच एक और चौकाने वाली नई घटना भी सामने आई है. हिंदू महासभा के नेता द्वारा पैगम्बर के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में जिस तरह से भोपाल, इंदौर सहित जिले स्तर पर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन हुए हैं और इनमें बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं. यह एक अलग और खास तरह के ध्रुवीकरण की तरफ इशारा कर रहे हैं. हालांकि अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका है कि एक साथ इतने बड़े स्तर पर हुए इन संगठित प्रदर्शनों की पीछे कौन-सी ताकतें है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया सकता है.

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान दावा करते हैं कि जबसे उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला है तबसे मध्यप्रदेश की धरती पर एक भी दंगा भी नहीं हुआ. लेकिन गृह मंत्रालय के हालिया आंकड़े बताते हैं कि देश में हुई सांप्रदायिक घटनाओं में से 86 प्रतिशत घटनायें 8 राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और केरल में हुई हैं. 2012 और 2013 में दंगों के मामले में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान रहा है, जबकि 2014 में मध्य प्रदेश पांचवे स्थान पर था.

सबसे चर्चित मामला मध्य प्रदेश के हरदा जिले का है, जहां खिरकिया रेलवे स्टेशन ट्रेन पर एक मुस्लिम दंपति के साथ इसलिए मारपीट की गयी क्योंकि उनके बैग में बीफ होने का शक था. मारपीट करने वाले लोग गौरक्षा समिति के सदस्य थे, जो एकतरह से दादरी दोहराने की कोशिश कर रहे थे. घटना 13 जनवरी 2016 की है. मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद किसी रिश्तेदार के यहां से अपने घर हरदा लौट रहे थे. इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी. इस दौरान दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्टेशन पर आ गये और उन्हें बचाया. इस तरह से कुशीनगर एक्सप्रेस के जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते–होते रह गयी. खिरकिया में इससे पहले 19 सितम्बर 2013 को गौ-हत्या के नाम पर दंगा हुआ हो चुका है जिसमें करीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और संपत्ति को आग के हवाले कर दिया गया था. कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे, बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थी. इस मामले में भी मुख्य आरोपी गौ-रक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत ही था. यह सब करने के बावजूद सुरेन्द्र सिंह राजपूत कितना बैखौफ है इसका अंदाजा उस ऑडियो को सुन कर लगाया जा सकता है, जिसमें वह हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कह रहा है कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा. इतना सब होने के बावजूद राजपूत अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है.

दूसरी बड़ी घटना धार जिले में स्थित मनावर की है. इस साल 6 से 9 जनवरी के बीच धार में साम्प्रदायिक झडपें हुई थीं. उस दौरान बाग प्रिंट में माहिर और मशहूर 40 सदस्यों वाले खत्री परिवार पर भी हमले हुए और उनके कारखाने में आग लगा दी गई थी. खत्री परिवार द्वारा इसकी शिकायत पुलिस में भी की गयी थी लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इन सब से तंग आकर बाग प्रिंट के लिए 8 नेशनल और 7 यूनेस्को अवॉर्ड जीत चुके इस परिवार को यह कहना पड़ा कि उनको लगातार धमकियां दी जा रही हैं. वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और डरे हुए हैं इसलिए अगर हालात नहीं सुधरे तो आने वाले कुछ महीनों वे देश छोड़कर अमेरिका में बसने को मजबूर हो जायेंगें. इस पूरे हंगामे को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गयी थी. इस याचिका में धार प्रशासन को अक्षम बताते हुए कहा गया था कि जिले में कानून व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है और प्रशासन अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासियों को सुरक्षा मुहैया कराने में असफल साबित हो रहा है. यहां तक कि बाग प्रिंट के जरिए विश्व में भारत को प्रसिद्धि दिलाने वाले मोहम्मद यूसुफ खत्री का परिवार भी असुरक्षित है. याचिका पर सुनवाई के बाद शासन से छह हफ्ते में जवाब देने को कहा था.

धार में ही कमाल मौला मस्जिद-भोजशाला विवाद ने महीनों तक पूरे मालवा इलाके में साम्प्रदायिक माहौल को नाजुक बनाये रखा. इस साल बसंत पंचमी (12 फरवरी) शुक्रवार यानी जुम्मे के दिन पड़ने का संयोग था. इस वजह से हिन्दुत्ववादी संगठनों को वहां माहौल एक बार फिर गरमाने का मौका मिल गया. पूरे मालवा क्षेत्र में उन्माद का माहौल बनाने की पूरी कोशिश की गयी. इस तनाव को बढ़ाने में संघ परिवार से जुड़े संगठनों सहित स्थानीय भाजपा नेताओं की बड़ी भूमिका देखने को मिली.

दरअसल धार स्थित भोजशाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में एक ऐसा स्मारक है जिसपर हिन्दू और मुसलमान दोनों अपना दावा जताते रहे हैं. एक इसे प्राचीन स्थान वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर मानता है, तो दूसरा इसे अपनी कमाल मौला मस्जिद बताता है. इसी वजह से एएसआई की ओर यह व्यवस्था की गयी है कि वहां हर मंगलवार को हिन्दू समुदाय के लोग पूजा करेंगें जबकि हर जुम्मे (शुक्रवार) को मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा कर सकेंगें. अपनी इसी स्थिति की वजह से भोजशाला – कमाल मौला मस्जिद विवाद को अयोध्या की तरह बनाने की कोशिश की गयी हैं. इस काम में कांग्रेस और भाजपा दोनो ही पार्टियाँ शामिल रही हैं, यह कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ही थी जिसने केंद्र में तत्कालीन अटलबिहारी सरकार से विवादित इमारत को हर मंगलवार हिन्दुओं के लिए खोलने के लिए सिफारिश की थी. इस फैसले ने एक तरह से धार को बारूद के ढेर पर बैठा दिया है. 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद पूरे शहर में हिंसा फैली गयी थी और इस दंगे से काफी नुकसान हुआ था. इसी तरह से 2013 में भी बसंत पंचमी और शुक्रवार पड़ा था, उस दौरान भी माहौल बिगड़ गया. इधर कुछ सालों से वहां बसंत पंचमी के अलावा दूसरे त्यौहारों में भी हिंदूवादी संगठनों की तरफ से उग्र प्रदर्शन किये जाते हैं, जिससे वहां माहौल बिगड़ जाता है .

इस साल धार में शुक्रवार के दिन पड़ने वाली बसंत पंचमी बिना किसी बड़ी हिंसा के बीत गयी है. प्रशासन यह कह कर अपनी पीठ थपथपा रहा है कि उसने नीति का अनुसरण करते हुए भोजशाला में नमाज और पूजा करवा दी है लेकिन इससे पहले स्थानीय भाजपा नेताओं और संघ से जुड़े संगठनों द्वारा माहौल में जहर खोलने की पूरी कोशिश की गयी जिसमें वे कामयाब भी रहे. ये संगठन बहुत ही उग्र तरीके से वसंत पंचमी पर पूरे दिन अखण्ड सरस्वती पूजा करने की मांग कर रहे थे, इसके लिए महाराजा भोज उत्सव समिति द्वारा भाजपा सांसद सावित्री ठाकुर के नेतृत्व में एक वाहन रैली निकाली गई. इस रैली में धार शहर के अलावा पूरे जिले से आये लोगों ने हिस्सा लिया. बताया जाता है कि धार के इतिहास में यह सबसे बड़ी रैली थी जिसमें करीब १५ से २० हज़ार शामिल हुए. सवाल यह है कि वे कौन लोग हैं जो अगर बसंत पंचमी शुक्रवार एक साथ पड़ता है तो दोनों समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न कराने के लिए कमर कस लेते हैं? इन सबसे किसे फायदा हो रहा है और ऐसा कब तक चलता रहेगा? दरअसल हर कोई इस मसले को सुलगाये रखना चाहता है जिससे जरूरत पड़ने पर इसे हवा दी जा सके.

ईसाई समुदाय की बात करें तो बीती 14 जनवरी की एक घटना है, जिसमें धार जिले के देहर गांव में धर्मांतरण के आरोप में एक दर्जन ईसाई समुदाय के लोगों को गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तार किये गये लोगों में एक नेत्रहीन दंपति भी शामिल हैं. इन आरोपियों का कहना है कि उन्होंने किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया है और उन पर यह कार्रवाई हिन्दुतत्ववादी संगठनों के इशारे की गयी है. उनका यह भी आरोप है कि पुलिस द्वारा उनके घर में घुसकर तोड़फोड़ और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गयी है. दरअसल मध्यप्रदेश में धर्मांतरण के नाम पर ईसाई समुदाय भी लगातार निशाने पर रहा है.

वर्ष 2013 में राज्य सरकार द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्यादा सख़्त बना दिया गया था. जिसके बाद अगर कोई नागरिक अपना मजहब बदलना चाहे तो इसके लिए उसे सबसे पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी. यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा. इसी तरह नए संशोधन के बाद ‘जबरन धर्म परिवर्तन’ पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई हैं और कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है. हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाई समुदाय पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर प्रताड़ित किया जाता रहा है, अब कानून में परिवर्तन के बाद से उनके लिए यह और आसान हो गया है. जाहिर है कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार संघ परिवार के संकीर्ण एजेंडे पर बहुत मुस्तैदी से चल रही है और भगवा मंसूबे बहुत तेजी अपना मुकाम तय कर रहे हैं.

[जावेद पत्रकार हैं. भोपाल में रहते हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]

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