जहां रमज़ान की बरक़त हिन्दुओं पर बरसती है

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

दिल्ली: दिल्ली का एक इलाक़ा है जामिया नगर. इस इलाके के बारे में पहली तस्वीर यह बनती है कि यह एक मुस्लिमबहुल इलाक़ा है. ज़्यादातर लोग इस बात को मान भी लेते हैं, क्योंकि यहां मस्जिदों से अज़ान की आवाज़ें आती हैं. सड़कों पर टोपी पहने लोग दिखते हैं. महिलाएं बुर्के में चलती हैं. पहली नज़र में यह सौ फीसदी मुस्लिमबहुल इलाक़ा ही दिखता है. यह बात भी सही है कि जामिया नगर नई दिल्ली का सबसे घना मुस्लिमबहुल इलाक़ा है.


Support TwoCircles

लेकिन जब हम इलाक़े में भीतर तक जाते हैं तो मालूम होता है कि यहां हिन्दुओं की भी एक बड़ी खुशहाल आबादी है. यहां कई हिन्दू परिवार हैं, जो दशकों से अपना व्यापार चला रहे हैं और जिन्हें रमज़ान के महीने का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.

बटला हाउस बस स्टैण्ड से सीधे अंदर ओखला मेन मार्केट जाने पर यहां सैकड़ों दुकाने हैं और इन सैकड़ों दुकानों में तक़रीबन 50 से अधिक दुकानें हिन्दुओं की हैं.

Jamia Nagar in Ramadan

इसी मार्केट में श्री अम्बिका वस्त्रालय के मालिक 51 साल के सुशील चुनेजा को रमज़ान महीने का इंतज़ार पूरे साल रहता है. सुशील चुनेजा बताते हैं, ‘रमज़ान का पाक महीना हर लिहाज़ से बेहतर होता है. हम दुकानदारों के लिए तो काफी बरकत वाला होता है.’ जामिया नगर के बारे में बात करने पर वो खुलकर अपने विचार रखते हैं. वो बताते हैं कि 1958 से उनका परिवार इसी इलाक़े में रह रहा है. उन्हें यहां के लोग काफी अच्छे लगते हैं.

अपनी बातों को रखते हुए बताते हैं, ‘साम्प्रदायिकता दिमाग में होती है. दरअसल, ये हमारे दिमाग़ की गंध होती है. और ऐसे लोग हर समाज में मौजूद हैं.’

Jamia Nagar in Ramadan

इसी मार्केट में जीत क्लॉथ हाऊस के मालिक 25 साल के शिवम अरोड़ा बताते हैं, ‘रमज़ान का महीना बिजनेस के मद्देनज़र बाक़ी के ग्यारह महीनों से काफी बेहतर होता है.’ वो बताते हैं कि वो बचपन से इसी जामिया नगर में रह रहे हैं. यहां रहने में कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई.

बातों-बातों में शिवम यह भी बताते हैं कि उनके खानदान के कुछ लोग भोगल शिफ्ट हो गए हैं, लेकिन उन्हें भोगल कभी भी सेफ़ नहीं लगा, ‘जामिया नगर हम सबके लिए काफी महफ़ूज़ जगह है. हम चाहें तो यहां रात भर दुकान खोल सकते हैं, दिल्ली के बाक़ी इलाक़ों में ऐसा मुमकिन नहीं है.’

इस मार्केट से आगे बढ़ने पर ओखला गांव पड़ता है. यहां हिन्दुओं की अच्छी-खासी आबादी है. सामने एक मंदिर भी है, जहां रामनवमी व दशहरों के अवसर पर रामलीला व रावणवध का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. यहां रहने वाले तक़रीबन 60 साल मुकेश राठी का कहना है, ‘हम बचपन से यहीं रह रहे हैं. हमें यहां कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई. रमज़ान का महीना तो हम सबके लिए रहमत की तरह है. पूरा महीना दावतों में निकल जाता है. यही नहीं, मेरा पूरा घर इफ़्तार से भरा रहता है. यह यहां के लोगों की मुहब्बत है. ऐसी मुहब्बत आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगी.’

वहीं किस्म-किस्म के छोटे धंधे करने वाले अजय यादव कहते हैं, ‘रमज़ान में मेरी आमदनी चौगुनी हो जाती है. शाम में बर्फ़ की सिल्लियां बेच लेता हूं, तो रात में चाय की ठेली लगा लेता हूं.’

वो बताते हैं, ‘यहां हर रामनवमी में पूरे नौ दिनों तक रामलीला चलती है और ये यहां के मुसलमान भाईयों की मदद के बग़ैर संभव नहीं है. मुसलमान भाई हमें तन-मन और धन से पूरी मदद करते हैं.’

Jamia Nagar in Ramadan

ओखला हेड चौराहे पर आपको कई हलवाईयों की दुकानें नज़र आएंगी. लाला बनवारी लाल हलवाई की दुकान सबसे पहले नज़र आती है. दुकान में बैठे रवि का कहना है कि यह दुकान मेरे दादा जी ने आज से तक़रीबन 60 साल पहले खोली थी और आज तक लगातार चल रही है.

इसी दुकान में काम करने वाले 41 साल के रामेश्वर बताते हैं कि आम दिनों के मुक़ाबले रमज़ान में बिक्री अच्छी होती है. इफ़्तार के लिए पकौड़े, समोसे व जलेबियां खूब बिकती हैं. और इफ़्तार के बाद लोग मिठाईयां भी खरीदने आते हैं.

वो बताते हैं, ‘पूरा इलाक़ा मुसलमानों का है, लेकिन हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई. यहां के लोग काफी अच्छे हैं. घुल-मिलकर रहना जानते हैं. यहां सिर्फ़ मस्जिद ही नहीं, मंदिर भी हैं, जहां हमें पूजा-पाठ करने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई.’

Jamia Nagar in Ramadan

इसी दुकान के बग़ल में श्री पन्नालाल स्वीट्स है. इस दुकान को 50 वर्षीय फूल सिंह चलाते हैं. उनका भी कहना है कि उनकी यह दुकान तक़रीबन 45 साल पुरानी है. और वे हर साल पूरी ऋद्धा से इफ़्तारी के लिए पकौड़े व जलेबियां बनाते हैं. जबकि आम दिनों पकौड़ी व जलेबियां शायद ही कभी बनाते हों, वह भी ऑर्डर मिलने पर. रमज़ान का महीना उन्हें खासतौर पर अच्छा लगता है.

बटला हाउस के सर सैय्यद रोड पर अग्रवाल स्वीट्स चलाने वाले 34 साल के राजा अग्रवाल रमज़ान महीने से थोड़े दुखी हैं. उनका कहना है कि पूरे दिन कोई काम नहीं होता. कोई ग्राहक नहीं आता. बस शाम में हम पकौड़े व जलेबियां बनाकर पूरे दिन की भरपाई करने की कोशिश करते हैं, लेकिन भरपाई हो नहीं पाती. हालांकि वो ये भी बताते हैं कि यह दुकान खुले सिर्फ़ तीन महीने ही हुए हैं.

Jamia Nagar in Ramadan

राजा अग्रवाल भी बटला हाउस में ही रहते हैं. उनका भी कहना है कि यहां कभी कोई समस्या नहीं आई.

बटला हाउस में चलने वाले अग्रवाल स्वीट्स के मालिक सोहन लाल का भी कहना है कि रमज़ान में बिक्री काफी कम हो जाती है. वे यह भी बताते हैं कि पूरे बटला हाउस में इतने पकौड़े के दुकान खुल गए हैं कि उन्होंने अब इफ़्तार के लिए पकौड़े व जलेबियां बेचना बंद कर दिया है. हालांकि वो यह भी बताते हैं कि अब पूरे इलाक़े में दस से अधिक अग्रवाल स्वीट्स हैं.

सोहन लाल बताते हैं कि रमज़ान में धंधा मंदा है तो क्या हुआ. अभी ईद तो बाकी है ना. ईद में पूरे महीने की भरपाई हो जाएगी.

दूसरी तरफ़ इलाक़े के लोगों से बात करने पर उनका कहना है कि रमज़ान महीने में यहां का हर दुकानदार ग्राहकों को खूब लूटता है.

Jamia Nagar in Ramadan

ओरिजिन नामक संस्था चलाने वाले शारिक़ नदीम बताते हैं, ‘रमज़ान के महीने में दूसरे इलाक़े की तुलना में फ़ल इत्यादि काफी महंगे बिकते हैं. दूसरे इलाक़ों के फल-विक्रेता भी इसी इलाक़े में अपना फल बेचते हैं. इन दुकानदारों में भी अच्छी-खासी हिन्दुओं की होती है.’

वहीं पत्रकार रेयाज आलम बताते हैं, ‘आप देखेंगे कि रमज़ान में पूरे जामिया नगर में भीख मांगने वालों की संख्या अचानक बढ़ जाती है. पूरे दिल्ली के भीख मांगने वाले रमज़ान के दिनों इसी इलाक़े में आ जाते हैं.’

इस संबंध में TwoCircles.net की रिपोर्टर फ़हमिना हुसैन बताती हैं कि भीख मांगने वालों में अधिकतर संख्या हिन्दुओं की होती है, लेकिन वो यहां मुस्लिम हुलिया लेकर भीख मांगते हैं. फहमिना ने इस सन्दर्भ में पहले एक रिपोर्ट लिखी थी.

थाने से मिली जानकारी के अनुसार जामिया नगर 5 – 6 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. यहां की कुल आबादी 12 से 14 लाख के बीच है, जिसमें 99 फ़ीसदी आबादी मुसलमानों की है, वहीं सिर्फ़ एक फ़ीसदी हिन्दू भी यहां बसते हैं. इस पूरे इलाक़े में 62 मस्जिद व 7 मंदिर हैं. लेकिन इतने बड़े इलाक़े में सिर्फ़ दो सरकारी स्कूल हैं तो वहीं एक भी प्राईमरी हेल्थ केयर सेन्टर या अस्पताल नहीं है. यहां विकास न होने की सबसे अहम वजह यह है कि यहां ज़्यादातर ज़मीने उत्तर प्रदेश सरकार, डीडीए और जामिया मिल्लिया इस्लामिया की हैं.

खैर, जब जामिया नगर के व्यापारियों से बात करने के दौरान ज़ेहन में कैराना उभरा. वहां के व्यापारी याद आएं और वहां का भाईचारा व आपसी सौहार्द भी दिखा जो आमतौर पर कहीं और दिखाई नहीं देता.

जामिया नगर का ज़िक्र अक्सर ‘आतंकवाद’ और बंटवारे जैसी दरारों को उभारने के लिए किया जाता रहा है, लेकिन इस सच पर कभी कोई रोशनी नहीं डालता, बल्कि यूं कहें कि डालना भी नहीं चाहता. जामिया नगर के भीतर चल रही भाईचारे की ये मिसाल उम्मीद बंधाती है कि फ़िज़ाओं को लगातार ख़राब करने की कोशिशों के बावजूद कुछ तो है जो इंसानियत को ज़िन्दा रखता है.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE