भारतीय सीमा में घुसकर नेपाली लोगों ने किया क़ब्ज़ा, 250 मकान ग़ायब

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

वाल्मिकी नगर (बिहार) : गांधी के सत्याग्रह की ज़मीन इस समय नेपाली क़ब्ज़े से जूझ रही है. चम्पारण से सटे नेपाल बॉर्डर पर नेपाली लोगों ने अतिक्रमण से आतंक मचा कर रखा है. नेपाल के बाशिंदों ने भारत की सीमा में घुसकर भारत सरकार की ओर से बनाए 250 सरकारी घरों(क्वार्टरों) को गायब कर दिया है. हैरानी की बात यह है कि न सिर्फ़ गायब किया है, बल्कि ईंट-पत्थर के साथ-साथ नेपाल के बाशिंदे मलबा तक उठाकर ले गए हैं. अब यहां मक्का व केला आदि की फ़सलें हैं. हालांकि अभी यहां शेष एक दर्जन घर बचे हैं, उन पर भी क़ब्ज़े की तैयारी है. यहां जो सरकारी अधिकारी रह रहे हैं, उनको धमकियां दी जा रही हैं. और भारतीय प्रशासन चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठा है.


Support TwoCircles

यह सब उस दौर में हो रहा है जब हम अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को लेकर दिन-रात चेतावनी जारी कर रहे हैं. मगर एक हाथ के फ़ासले पर बैठे पड़ोसी हमारी सीमा में घुसकर अतिक्रमण को अंजाम दे रहे हैं और इस मसले पूरे देश की मीडिया ने अपनी आंखें मूँद रखी हैं. सिवाय एक स्थानीय अख़बार हिन्दुस्तान के, किसी ने भी इस मुद्दे पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी. ये स्थानीय अख़बार भी इस अपने रिपोर्टर चन्द्रभूषण की इस ख़बर को अपने अख़बारों के राष्ट्रीय संस्करण का हिस्सा नहीं बना पाया. अब चाहे इसे अख़बार की मजबूरी समझें या संपादकों की क्षेत्रीय मानसिकता कि उन्होंने इतनी महत्वपूर्ण ख़बर को क्षेत्रीय पन्ने के एक छोटे से हिस्से पर समेट कर रख दिया.

Balmiki Nagar

मुख्य पश्चिमी नहर के कार्यपालक अभियंता रमेन्द्र कुमार सिंह द्वारा रिपोर्टर को दिए एक बयान के मुताबिक़ भारत सरकार ने गंडक बराज, सूर्यपुरा विद्युत परियोजना और मुख्य पश्चिमी नहर आदि की खुदाई के समय अधिकारियों के रहने के लिए इन घरों को बनवाया था, ताकि काम करने वाले अधिकारी आराम से रह सकें. उन्हें बार-बार बराज को पार करने की ज़हमत न उठानी पड़े. लेकिन इधर कुछ माह से त्रिवेणी, रानीनगर व महलवारी के स्थानीय नेपालियों द्वारा क़रीब 250 क्वार्टरों को न सिर्फ़ तोड़ दिया गया है, बल्कि उसका मलबा तक गायब कर दिया गया है. अघोषित रूप से नेपाली प्रशासन की ओर से अतिक्रमणकारियों का समर्थन किया जा रहा है.

इन 250 के आस-पास घरों को तोड़कर वहां की ज़मीन समतल कर दी गई है और इन जगहों पर खेती भी शुरू हो चुकी है. हालांकि यहां अभी भी एक दर्जन के क़रीब घर बचे हुए हैं, जिनमें भारतीयकर्मी व उनके सगे-संबंधी रहते हैं. यहां रहने वाले लोगों की मानें तो इन पर भी अपने घरों को खाली करने का दबाव बनाया जा रहा है.

बताते चलें कि साठ के दशक में हुए अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत भारत-नेपाल बार्डर पर वाल्मीकिनगर में गंडक नदी पर गंडक बराज के निर्माण का शुभारंभ हुआ. 4 मई 1964 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व नेपाल के राजा महेंद्र विक्रम शाह ने गंडक बराज की नींव रखी थी. तभी इन क्वार्टरों यानी घरों का भी निर्माण हुआ था.

Balmiki Nagar

यहां यह भी स्पष्ट रहे कि नेपाल द्वारा भारतीय सीमा में घुसकर अतिक्रमण का यह मामला कोई नया नहीं है. इससे पहले भी बिहार व उत्तर प्रदेश की नेपाल की सीमा पर स्थित पश्चिम चंपारण ज़िले के बाल्मीकि नगर के पास नेपाल ने हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन क़ब्ज़े में लेने का मामला सामने आया था. इसे मुद्दे को लेकर पिछली सरकार के दौरान संगठन ‘भारत परिवर्तन अभियान’ के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना भी दिया था. सरकार बदल गयी लेकिन स्थिति जस की तस बरक़रार है. बल्कि यहां के स्थानीय लोगों की मानें पिछले एक-दो सालों में नेपालियों का भारतीय सीमा में अतिक्रमण काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है. जबकि इसकी सूचना यहां के अधिकारी बार-बार सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को दे रहे हैं.

हद तो यह है कि पश्चिमी चम्पारण ज़िले के बगहा अनुमंडल के नरसहिया गांव का खाता खेसरा भारत सरकार का है, पर इस पर नेपाल सरकार राजस्व वसूल रही है. वहीं कार्यपालक अभियंता रमेन्द्र कुमार सिंह की मानें तो नेपाल में बराज से लेकर महलवारी तक क़रीब 19 किलोमीटर की परिधि की भूमि पर मालगुजारी भारत सरकार देती है. जो प्रतिवर्ष एक लाख रुपयों के क़रीब होता है.

कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. इससे पहले इसी साल फरवरी महीने में आई एक दूसरी ख़बर के मुताबिक़ भारत-नेपाल सीमांकन के लिए लगे 450 खम्भे ग़ायब मिले. ये खम्भे पश्चिम व पूर्वी चम्पारण और नेपाल सीमा के बीच लगे खम्भों में से हैं. इसका खुलासा देहरादून से आयी भारतीय सर्वेक्षण विभाग की टीम के सर्वेक्षण में हुआ है. इतना ही नहीं, इस टीम के सर्वेक्षण अधिकारियों ने यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच 18.2 मीटर भूमि ‘नो मेन्स लैंड’ है. इस पर भी कई जगह पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है. इसकी भी पैमाइश की जा रही है.

यहां बताते चलें कि दोनों देशों के एक बीच समझौते के बाद 1931 में क़रीब 180 किलोमीटर की दूरी में 1870 खम्भे लगाए गए थे.

भारत और नेपाल के संबंध मौजूदा सरकार में काफी दिनों तक अच्छे नहीं रहे हैं. मधेसियों और नेपाल के मूल निवासियों के बीच का झगड़ा दोनों ही देशों के बीच खटास का एक बड़ा कारण रहा है. ऐसे में चम्पारण के भीतर नेपाल का यह अतिक्रमण इस बात की पुष्टि करता है कि दोनों ही मुल्कों के रिश्ते अभी भी तनावपूर्ण है. अंदर ही अंदर भभक रहे हैं. और ये सुगबुगाहट कभी भी विस्फोटक रूप ले सकती हैं.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE