एडवोकेट मुहम्मद शुऐब
जिस तरह से भोपाल सेन्ट्रल जेल से सिमी से जुड़े होने के आरोपी आठ युवकों की कल देर रात फ़रारी और उसके बाद जिस तरह से पुलिस द्वारा मुठभेड़ को अंजाम दिए जाने की बात आ रही है, उससे इस घटना पर बहुतेरे सवाल पुलिस व सरकार खुद ही उठा दे रही है. आख़िर जब भोपाल आईजी योगेश चौधरी इस बात को कह रहे हैं कि फ़रार क़ैदियों ने पुलिस के ऊपर गोलाबारी की तो आखिर वह हथियार व गोला बारुद का ब्योरा देने से बच क्यों रहे हैं.
दरअसल, खंडवा जेल से चादरों के सहारे रस्सी बनाकर फ़रार होने की कहानी को ही फिर से पुलिस ने भोपाल में दोहराया है. अगर जेल से भागने की घटना में कोई सच्चाई होती तो पुलिस खुद ही सबक़ लेती. ठीक इसी तरह अहमदबाद की जेल में थाली, चम्मच, टूथ ब्रश जैसे औजारों से 120 फुट लंबी सुरंग खोदने का दावा किया गया था.
सच तो यह है कि लगातार सिमी और आईएम के नाम पर जेलों में बंद उन क़ैदियों हत्या की जा रही है जिनकी रिहाई होने वाली होती है. ठीक इसी तरह वारंगल में पांच युवकों की जेल ले जाते वक़्त हिरासत में हत्या कर दी गई. क्योंकि उन पर मोदी को मारने के षडयंत्र का आरोप था जो अगर बरी हो जाते तो खुफिया-सुरक्षा व इस आतंक की राजनीति का पर्दाफ़ाश हो जाता. इन घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्रीय खुफिया एजेंसियां और प्रदेश की पुलिस मिलकर इन घटनाओं को अंजाम दे रही हैं.
भोपाल सेन्ट्रल जेल में क़ैद अमजद, ज़ाकिर हुसैन सादिक़, मोहम्मद सालिक, मुजीब शेख़, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अकील और माजिद के जेल से फ़रार होने और पुलिस द्वारा मुठभेड़ के दावे पर कुछ अहम सवाल, जिन पर हमें ज़रूर ग़ौर करना चाहिए :-
1. भोपाल सेन्ट्रल जेल को अन्तर्राष्ट्रीय मानक आईएसओ-14001-2004 का दर्जा प्राप्त है, जिसमें सेक्यूरिटी भी एक अहम मानक है. ऐसे में वहां से फ़रार होने की पुलिसिया पटकथा अकल्पनीय है.
2. पुलिस जिन क़ैदियों को मुठभेड़ में मारने का दावा कर रही है उसमें से तीन क़ैदियों को वह खंडवा के जेल से फ़रार होने वाले क़ैदी बता रही है. इस साबित होता है कि मध्य प्रदेश सरकार आतंक के आरोपियों की झूठी फ़रारी और फिर गिरफ्तारी या फर्जी मुठभेड़ में मारने की आड़ में दहशत की राजनीति कर रही है.
3. यहां पर अहम सवाल है कि जिन आठ क़ैदियों के भागने की बात हो रही है वह जेल के ए ब्लाक और बी ब्लाक में बंद थे. प्राप्त सूचना अनुसार मारे गए ज़ाकिर, अमजद, गुड्डू, अकील खिलजी जहां ए ब्लाक में थे तो वहीं खालिद, मुजीब शेख, माजिद बी ब्लाक में थे. इन ब्लॉकों की काफी दूरी है. ऐसे में सवाल है कि अगर किसी एक ब्लाक में क़ैदियों ने एक बंदी रक्षक की हत्या की तो यह कैसे संभव हुआ कि दूसरे ब्लाक के क़ैदी भी फ़रार हो गए.
4. पुलिस चादर को रस्सी बनाकर सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करने का दावा कर रही है. जबकि चादर को रस्सी बनाकर ऊपर ज्यादा ऊंचाई तक फेंका जाना संभव ही नहीं है यदि फेंका जाना संभव भी मान लिया जाए तो इसकी संभावना नहीं रहती कि वह फेंकी गई चादर कहीं फंसकर चढ़ने के लिए सीढ़ी का काम करे.
5. जेल के पहरेदार सिपाही को चम्मच से चाकू बनाकर गला रेतना बताया जा रहा है, जिसके कारण यह संभवाना समाप्त हो जाती है कि उनके पास हथगोला और हथियार था जिसका प्रयोग मुठभेड़ में किया गया. दूसरे एक आदमी को मारकर कोई पुलिस चौकी की कस्टडी से नहीं भाग सकता किसी सेन्ट्रल जेल से भागना अकल्पनीय है.
6. एक संभावना और बनती है कि जेल से निकलने बाद उनको किसी ने विस्फोटक तथा हथियार मुहैया कराए हों लेकिन पुलिस की कहानी में ऐसा कोई तथ्य अभी तक सामने नहीं आया है.
7. जेल में लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज के बारे में अब तक कोई बात क्यों सामने नहीं आई.
8. पुलिस के दावे के अुनसार जिन आठों कैदियों की मुठभेड़ में मारने की बात कही जा रही है उसमें से कुछ के मीडिया में आए फोटोग्राफ्स, जिसमें उनके हाथों में घड़ी, पैरों में जूते आदि हैं, से यह भी संभावना है कि कहीं उन्हें किसी दूसरे जेल में शिफ्ट करने के नाम पर तैयार करवाया गया हो और फिर ले जाकर पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दे दिया हो.
9. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने बयान में यह कहा है कि इस मामले में जनता का सहयोग मिला, लोगों से सूचना मिली और लोकेशन का पता लगा. लेकिन मुख्यमंत्री जी को यह बताना चाहिए कि इतनी जल्दी आम लोग को जेल से फ़रार अभियुक्तों को कैसे पहचान गए.
10. पुलिस के दावे अनुसार फ़रार आठों अभियुक्तों की मुठभेड़ के दौरान हत्या यह भी सवाल उठाती है कि इतनी पुलिस की ‘बहादुराना’ कार्रवाई पर किसी ने क्या सरेंडर करने का प्रयास नहीं किया होगा. या फिर उन्हें उठाकर वहां ले जाकर आठों को मारकर पुलिस इस मामले कोई सुबूत नहीं छोड़ना चाहती थी.
(एडवोकेट मुहम्मद शुऐब रिहाई मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)