TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ : जब उत्तर प्रदेश में नेता मुसलमानों को याद करने लगें तो बस समझ लीजिए कि चुनाव की तारीख़ बहुत क़रीब है.
मायावती भी अब मुलायम के रास्ते निकल पड़ी हैं. जिन मुद्दे को आधार बनाकर अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने, अब उन्हीं मुद्दों की बात करके मायावती फिर से गद्दी पर बैठने का ख़्वाब देखने लगी हैं.
उन्होंने पिछले दिनों आज़मगढ़ रैली में कहा कि –‘निर्दोष मुसलमानों को आतंक के मामलों में झूठा फंसाया जाता है.’
इस बात को उत्तर प्रदेश की न्यायप्रिय जनता और ख़ासतौर पर मुसलमान यक़ीनन सौ फ़ीसद सच मानते हैं, लेकिन इन्हीं लोगों का कहना है कि मायावती के शासनकाल में भी जमकर बेगुनाह मुसलमानों को आंतक के मामलों में न सिर्फ़ फंसाया गया बल्कि उन्हें सालों-साल जेलों में सड़ाया भी गया.
उत्तर प्रदेश की सामाजिक संगठन रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब मायावती के इस बयान पर सवालिया निशान लगाते हुए कहते हैं कि –‘मायावती जी को कब इस ज्ञान की प्राप्ति हुई कि आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को पुलिस फंसाती है, उन्हें यह ज़रूर बताना चाहिए. कहीं उन्हें इसका ज्ञान चुनाव के कारण तो नहीं हुआ है?’
आगे वो कहते हैं कि –‘2002 गुजरात के मुस्लिम जनसंहार के बाद मोदी के प्रचार में जा चुकी मायावती बताएं कि बाटला हाउस 2008 को वह क्या मानती हैं?
उन्होंने कहा कि –‘आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की गिरफ्तारियों के ख़िलाफ़ खड़े हुए आंदोलनों के दबाव में पक्ष-विपक्ष की सत्ताधारी पार्टियां वोटों के ख़ातिर इस सवाल को उठाती हैं, पर जब वे सत्ता में रहती हैं तो वह न खुद संघ द्वारा पोषित सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर बेगुनाहों को जेलों में ठूंसने का काम करती हैं, बल्कि उनका ध्यान इस ओर भी रहता है कि कैसे सालों-साल जेल में सड़ा कर पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम किया जाए. इसके लिए निचली अदालतों से बरी युवकों के खिलाफ़ ऊपरी अदालतों में अपील भी करती हैं. इसका उदाहरण हमें कई बार देखने को मिला. कानपुर के बरी युवकों के खिलाफ़ जहां मायावती सरकार ऊपरी अदालत में गई तो वहीं बिजनौर, पश्चिम बंगाल के युवकों के खिलाफ़ अखिलेश सरकार गई है.’
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव कहते हैं कि –‘मुलायम सिंह ने अपने मुख्यमंत्री काल में इलाहाबाद से मौलाना वली उल्लाह लखनऊ से फरहान, शुएब, अमरोहा से रिजवान, शाद बंगाल से महबूब मंडल की गिरफ्तारियों का जो सिलसिला शुरु किया, उसे मायावती ने भी बढ़ाया. पर जब बेगुनाहों का सवाल राजनीतिक सवाल बन कर उभरा तो अखिलेश यादव ने चुनावी घोषणा पत्र में वादा तो किया कि बेगुनाहों को छोड़ने के साथ ही पुर्नवास भी किया जाएगा. लेकिन इस वादे से मुकरते हुए उन्होंने मुसलमानों को न सिर्फ धोका दिया बल्कि उनके पिता मुलायम सिंह ने संसद और बाहर भी लगातार इस झूट को फैलाया कि उनकी सरकार ने बेगुनाहों को छोड़ दिया है.
उन्होंने कहा कि अब चुनाव आते ही मायावती को भी आतंकवाद के नाम पर फंसाए जाने वाले बेगुनाह मुस्लिम याद आने लगे हैं.
राजीव यादव कहते हैं कि अपने को सीबीआई से बचाने के लिए मायावती जितनी मेहनत करती हैं और अखिलेश यादव अपने भाई-बंधुओं को बचाने के लिए जितनी तत्परता से यादव सिंह जैसे भ्रष्टाचारी के मामले में सुप्रिम कोर्ट पहुंच जाते हैं वैसी तत्परता बेगुनाओं की रिहाई के लिए मायावती और अखिलेश क्यों नहीं दिखाते.
उन्होंने अखिलेश और मायावती सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि आतंकवाद के नाम पर क़ैद आरोपियों को सबसे कम ज़मानत उत्तर प्रदेश में ही मिलती है, जबकि यहां मुसलमानों के वोट से ही कथित सेकुलर सरकारें बतनी रही हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि मायावती और अखिलेश हिंदू वोटों की नाराज़गी के डर से मुसलमानों को जेल में रखते हैं.