अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
‘आम तौर पर लोग सोचते हैं कि मुसलमान अपनी लड़कियों को नहीं पढ़ातें. लेकिन आठवीं पास होने के बावजूद मेरी ख्वाहिश थी कि मैं अपनी बच्चियों को पढ़ाउंगा, उनकी तालीम में कोई कमी नहीं रहने दुंगा. इसके लिए हम दोनों मियां-बीवी खूब मेहनत भी करते थे, ताकि हमारे बच्चों को कोई तकलीफ़ न हो. लेकिन अब आप ही बताईए कि हमारी बच्ची के साथ जो कुछ हुआ है, उसके बाद कौन सा बाप उसे स्कूल भेजना चाहेगा?’
यह सवाल लाचारी, बदनामी और तंगहाली के मुहाने पर खड़ा उस बेबस बाप का है, जिसके 16 साल की लड़की को दिल्ली के किसी सुनसान इलाक़े में ले जाकर ड्रग्स का इंजेक्शन देकर चार दिनों तक लगातार 25 लोगों के ज़रिए सामुहिक बलात्कार किया गया.
इस लड़की का पूरा परिवार जामिया नगर के बटला हाऊस में रहता है और यह लड़की जामिया नगर के ही एक स्कूल में 8वीं क्लास की छात्रा है. यहां के लोगों ने इस पीड़ित लड़की को ‘जामिया नगर की निर्भया’ नाम दिया है.
‘जामिया नगर की निर्भया’ के पिता TwoCircles.net के साथ ख़ास बातचीत में इस मामले में पुलिस पर लीपापोती का संगीन आरोप लगाया है. वो बताते हैं कि पुलिस आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रही है. पुलिस जिस बच्चे को नाबालिग़ बता रही है, वो 19 साल से कम नहीं है. कोई भी एक्सर्ट उसके गले की गुठलियों को देखकर ही बता देगा कि वो नाबालिग़ नहीं है.
वो बताते हैं कि पुलिस कह रही है कि वो दसवीं क्लास का छात्र है और घटना वाले दिन वो क्लास में मौजूद था. जबकि मेरी बेटी को उसने यह बताया था कि वो जॉब करता है. तो ऐसे में स्कूल के बच्चों से पूछताछ क्यों नहीं की गई? अगर स्कूल में वो पढ़ता होगा तो सब बच्चे उसे पहचानते भी होंगे. और फिर बाक़ी 25 लोगों को पुलिस गिरफ़्तार क्यों नहीं कर रही है?
उनके मुताबिक़ पुलिस जान-बुझ कर इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश कर रही है. इसकी वजह उनके परिवार का गरीब और लाचार होना है.
‘जामिया नगर के इस निर्भया’ के पिता कभी वेल्डिंग का काम किया करते थे, लेकिन अब वो इलाक़े में ई-रिक्शा चलाते हैं. इसकी वजह वो बताते हैं कि –‘वेल्डिंग का काम करने की वजह उन्हें कई बीमारी हो गए. दम फुलने से लेकर ब्लड प्रेशर जैसे बीमारियों से वो जुझ रहे थे, तो डॉक्टर ने वेल्डिंग का काम छोड़ देने की सलाह दी. तब से वो ई-रिक्शा चलाते हैं.’
वो बताते हैं कि मेरे सात बच्चे हैं. पांच लड़कियां और 2 लड़के. जो लड़की ‘शैतानी दरिंदों’ का शिकार हुई है, वही घर में सबसे बड़ी थी. यानी घर में कमाने वाला कोई नहीं है. हां, मेरी बीवी एक-दो घरों में जाकर झाड़ू-पोछा का काम करती है और मैं ई-रिक्शा चलाता हूं. दिनभर रिक्शा चलाने के बाद 400 रूपये तो किराए का चला जाता है और मेरे पास सिर्फ़ 250-300 रूपये ही बचते हैं.
इन बातों को बताते-बताते उनकी आंखों से आंसू छलक आते हैं. अपने आंसुओं को पोछते हुए कहते हैं कि –‘इस मामले ने उनसे ये रोज़गार भी छिन लिया है. इंसाफ़ की आस में दिन भर थाने के चक्कर काटते रहने के फेर में अब अपना रोज़गार भी अदा नहीं कर पा रहे हैं.’
वो बताते हैं कि –‘कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं. अब सब अल्लाह के भरोसे ही है. इधर कमाई के सारे ज़रिए बंद हैं, लेकिन खर्चा डबल हो गया है. घर का 7 हज़ार किराया भी भरना है. इस बात का भी डर लगा हुआ है कि कहीं मकान मालिक घर से ही न निकाल दें. अगर ऐसा हुआ तो मैं कहां जाऊंगा. अपने गांव किस मुंह से जाऊंगा? हम बहुत परेशान हैं. हमारी पूरी इज़्ज़त दांव पर लग चुकी है.’
सच पूछे तो बेटी के साथ सामुहिक बलात्कार के शिकार होने और पिता के रोज़गार के लगभग छिन जाने की स्थिति ने घर को मानसिक और आर्थिक दोनों ही तौर पर तोड़ दिया है.
‘जामिया नगर की इस निर्भया’ की मां का भी आरोप है कि लड़का नाबालिग़ नहीं है. वो भी पुलिस पर आरोप लगाती हैं कि मेरी बच्ची की तमाम बातों को पुलिस ने अपने एफ़आईआर में दर्ज नहीं किया है. मेरी बच्ची के साथ 25 लोगों ने गलत काम किया और फिर उसे बेचा गया है, लेकिन बेचने वाली बात पुलिस अपने एफ़आईआर में नहीं लिख रही है. वो सवालिया अंदाज़ में पूछती हैं कि –‘क्या गरीब की बेटियों की कोई इज़्ज़त व आबरू नहीं होती? क्या इनकी इज़्ज़त ऐसे ही लूटती रहेगी?’
पिता भी कहते हैं कि –‘मुझे हमेशा अपने देश की पुलिस पर भरोसा था. लोकतंत्र में यक़ीन था, लेकिन अब नहीं है. अब समझ में आ रहा है कि कैसे हमारे देश की पुलिस चंद सिक्कों में बिक जाती है.’ वो देश की मीडिया से गुज़ारिश करते हैं कि जैसे उन्होंने निर्भया के मामले लागातार टीवी पर दिखाकर व अख़बारों में छाप कर उसके घर वालों को इंसाफ़ दिलवाया, उसी तरह वो हमें भी इंसाफ़ दिलवाए ताकि हम गरीबों को संदेश जाए कि मीडिया सिर्फ़ अमीरों के लिए नहीं, बल्कि गरीबों के लिए भी काम करती है.
इस पूरे मामले में जामिया नगर के एक पुलिस अधिकारी नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर बताते हैं कि पुलिस इस मामले में अपने हिसाब से इंवेस्टीगेशन कर रही है. लड़के से पूछताछ के बाद वो और नाम सामने आए हैं. उनसे भी पूछताछ जारी है.
जामिया नगर के विधायक अमानतुल्लाह खान का कहना है कि –‘लड़की के पिता मुझसे मिलने आए थे. महिला आयोग से मैंने बात कर ली है. दिल्ली पुलिस को भी अपने कार्रवाई में तेज़ी लाने को कहा है. इसके अलावा मुझ से जो भी मुमकिन है, मैं वो करूंगा. आरोपी किसी भी हाल में बचेंगे नहीं.’
सच पूछ तो ‘जामिया नगर की निर्भया’ का यह केस कई बड़े व जायज़ सवाल खड़े करता है. क्या ग़रीब परिवार को इंसाफ़ पाने का हक़ नहीं नहीं है? क्या रसूखदार व धन-पशु मिलकर जैसे भी चाहेंगे अपने पक्ष में क़ानून की दिशा को मोड़ देंगे? कहां हैं वो तमाम जन-प्रतिनिधी और नेता जो इसी तबक़े के वोट पर अपनी राजनिती के दुकान सजाते हैं? क्यों वो इंसाफ़ की लड़ाई में इस गरीब परिवार का साथ नहीं दे रहे हैं? लाचारी, बदनामी और तंगहाली के मुहाने पर खड़ा ये परिवार अगर कल को कोई ग़लत क़दम उठाने पर मजबूर होता है तो इसका ज़िम्मेदार व जवाबदेह कौन होगा?