निकहत प्रवीन
नई दिल्ली : 22 अप्रैल पृथ्वी दिवस के रुप में जाना जाता है. नाम से ही स्पष्ट है कि पृथ्वी को बचाना, उसे सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करना इस दिन का उद्देश्य है.
22 अप्रैल 1970 से इस दिन की शुरुआत हुई. तब से पूरा विश्व इस दिन को बड़ी गंभीरता से मनाता है. जगह-जगह पर वृक्षारोपण करना, स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा पर्यावरणीय मुद्दों पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना, सेमिनार का आयोजन करना, सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा नुक्कड़ नाटक के ज़रिए पर्यावरण की रक्षा हेतू लोगों को प्रोत्साहित करना, प्लास्टिक तथा कीटनाशक के दुष्प्रभाव के प्रति लोगों को जागरुक करना, इत्यादि इस दिन के क्रियाकलापों में से हैं. ताकि पृथ्वी की महत्वपूर्णता लोगों के सामने आए. हालांकि इस संदर्भ में एक प्रश्न हम सबके सामने है कि क्या इतने वर्षों से पृथ्वी दिवस मनाने का कोई विशेष लाभ पृथ्वी और पृथ्वी-वासियों को मिला भी है या नहीं?
सवाल के जवाब में बिहार की राजधानी पटना के निवासी मुहम्मद सलीमुद्दीन कहते हैं, ‘पृथ्वी दिवस मनाने से क्या होगा ज़रुरत तो इस बात की है कि हम सब अपनी क्षमता अनुसार पृथ्वी को कुछ लौटाने की कोशिश करें तभी बात बनेगी. सरकारी नौकरी होने के कारण मुझे क्वार्टर मिला हुआ है, जिसके पिछले हिस्से में खाली जगह थी. जब मैं परिवार के साथ यहां आया तो नौकरी से समय निकालकर धीरे-धीरे उस जगह पर एक छोटा सा बगीचा बना दिया है. खेती का थोड़ा बहुत ज्ञान रखता हूं, इसलिए मौसम के अनुसार कुछ मौसमी फल और सब्जियां उगाता हूं. साथ ही कई तरह के फुल भी लगाए हैं. अब हर सुबह बगीचे में ताज़ी हवा खाने को मिल जाती है, जिससे सारी थकान दूर हो जाती है.’
मुंबई में मार्केटिंग के क्षेत्र में काम करने वाले रुपेश दुबे बताते हैं, ‘पृथ्वी दिवस मनाने का एक दिन ही काफी नहीं है. क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर हमसे जुड़ा हुआ है. और पृथ्वी को स्वच्छ रखना हमारे ही हित में होगा. बात अगर मुंबई की करें तो यह भारत का आर्थिक शहर माना जाता है. यहां जनसंख्या का होना स्वाभाविक है. खूबसूरती तो यहां बहुत है, लेकिन बड़ी इमारतों से लेकर झुग्गी झोपड़ियों तक जो गंदगी है उसे ख़त्म करना ज़रुरी है. वाहनों व फैक्ट्रियों से निकले धुंए, प्लास्टिक का प्रयोग, इमारतों को बनाने में पेड़ों को नष्ट करना, यह सब इस शहर को भारी नुक़सान पहुंचा रहा है. इस कारण यहां साफ़ पानी व हवा की कमी है. इसलिए पृथ्वी को बचाने की शुरुआत हमें ही करनी होगी.’
बिहार के कटिहार ज़िला के गुलाम कौसर जो मुख्य रुप से खेती से जुड़े हैं, अपने अनुभव को साझा करते हुए कहते हैं, ‘हर साल हम बड़ी मेहनत से खेतों में अपना खून-पसीना बहाते हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से कभी बारिश समय से पहले तो कभी देर से होने के कारण बहुत नुक़सान होता है. वो तो पारिवारिक रुप से बैनर और होर्डिंग्स बनाने का जो काम है, उससे सहायता हो जाती है, नहीं तो नुक़सान की भरपाई करना मुश्किल होता. कभी-कभी लगता है कि हमने खेती किसानी से ज्यादा और कामों को इतना महत्व दे दिया है कि ज़मीन हमसे नाराज़ हो गई है. इसलिए कभी भूकंप तो कभी बाढ़ को झेलना पड़ता है. पृथ्वी दिवस का तो पता नहीं, लेकिन इतना ज़रुर कहना चाहुंगा कि हमें पर्यावरण और अपनी धरती के साथ अब ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, वरना परिणाम भंयकर हो सकते हैं.’
देश की राजधानी दिल्ली के प्राईवेट कंपनी में काम करने वाली 23 वर्षीय कोमल दिवान कहती हैं, ‘मैं राजस्थान की रहने वाली हूं, पर जॉब के लिए यहां आना पड़ा. दिल्ली जहां अपनी खूबसूरती के लिए मशहुर है, वहीं पिछले कई वर्षो से प्रदूषण के लिए भी. मैं तो कहती हूं कि दिल्ली जैसे शहर में जहां हर व्यक्ति ऑफिस में काम करता है, वहां रुल बना देना चाहिए कि हम रोज़ या हफ्ते का एक दिन इकट्ठा पर्यावरण को बचाने के काम में लगाएंगे.’
पटना विश्वविद्धालय से मेडिकल की पढ़ाई कर रही आफ़रीन खानम ने बताया, ‘मेरा मानना है कि धरती को बचाने के लिए सिर्फ़ पेड़-पौधे लगाने से भी कुछ नहीं होता, बल्कि आधुनिकता के नाम पर हम टेक्नोलॉजी का जिस तरह अंधाधुंध उपयोग करते हैं, उसकी वजह से भी धरती को नुक़सान पहुंच रहा है. एक दुसरे की बराबरी करने के लिए हमने मिसाईल तो कई बना लिए लेकिन उससे पर्यावरण को कितना नुक़सान पहुंचता है, इस बारे में कोई सोचता ही नहीं.’
स्वतंत्र पत्रकार नासिर हुसैन के अनुसार पृथ्वी को बचाने में पेड़-पौधे बड़ी भूमिका मिभाते हैं, लेकिन दिन-प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या के कारण खाली जगह की कमी होती जा रही है. ऐसे में आबादी और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने का कोई विकल्प तलाश करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी जीवित रहे.
पृथ्वी दिवस के प्रति लोगों का नज़रिया हमारे सामने है. स्पष्ट है कि धरती को बचाने के लिए हर कोई चिंतित है और अपने-अपने स्तर पर प्रयासरत भी. बात अगर आंकड़ों की करें तो मालूम होगा कि पर्यावरण के लिए काम करने वाली गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर साईंस एंड इनवायरमेंट (सीएसआई) ने बताया है कि अमेरिका की हेल्थ इफैक्ट इंस्टीट्यूट की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण से हर साल 42 लाख लोगों की मौत होती है. इनमें 11 लाख मौते सिर्फ़ भारत में होती हैं. ओजोन प्रदूषण के कारण भी सबसे ज्यादा मौत भारत में ही होती है, जो चीन की तुलना मे 33 गुणा अधिक है.
साफ़ है कि प्रदूषण तीव्र गति से दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है. इसलिए आवश्यक है कि जनता का प्रतिनिधि होने के नाते प्रत्येक देश की सरकार देश-वासियों को तकनीक और आधुनिकता से जोड़ने से पहले पर्यावरण से जोड़े तभी धरती को बचाने में सफल हो सकते हैं ताकि अगली पीढ़ी को साफ़ और स्वच्छ वातावरण में सांस लेने का मौक़ा मिले.