सुनील कुमार
नई दिल्ली : सुनीता प्रजापति उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ की रहने वाली है. वह क़रीब 7-8 सालों से दिल्ली के बलजीत नगर इलाक़े में रह रही थी. सोनू (12 साल) और काजल (9 साल) नामक उनके दो बच्चे हैं. सोनू पटेल नगर में सातवीं कक्षा का छात्र है और काजल प्रेम नगर में चौथी की छात्रा है. सुनीता के पति रामबचन दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और सुनीता घरेलू सहायिका (डोमेस्टिक वर्कर) का काम करती है. पति को कभी काम मिलती है, कभी नहीं मिलती है; कभी मिलती भी है तो बीमारी के कारण नहीं जा पाते हैं. रामबचन का ईलाज बीपीएल कार्ड पर गंगाराम अस्पताल में चल रहा है. रामबचन को ज्यादातर दवाई बाहर से ही खरीदनी पड़ती है.
यह कहानी नई दिल्ली के बलजीत नगर की है, जहां मज़दूर व निम्न मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं, जिनमें से बहुसंख्यक जनता प्राइवेट सेक्टर में छोटे-मोटे काम करती है तो कुछ के पास छोटी दुकानें हैं. बलजीत नगर का एक क्षेत्र पहाड़ी है जिस पर वर्षों पहले (क़रीब 50-60 साल) से लोग रह रहे हैं. इस भाग में कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद वे अपने लिए घर बना लिये हैं.
यह इलाक़ा जनसंख्या घनत्व के हिसाब से काफी सघन है. अगर इस इलाक़े में नया कुछ भी निर्माण करना है तो बिना पुरानी बसावट तोड़े नहीं हो सकता. यह इलाक़ा सेंट्रल दिल्ली के क़रीब है जहां से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, कनाट प्लेस कुछ किलो मीटर की दूरी पर है. इसलिए इस ज़मीन पर अब बड़े-बड़े पूंजीपतियों की गिद्ध नज़र भी है.
यहां रहने वाली सुनीता बताती हैं कि 5 जुलाई, 2017 को उनकी बस्ती तोड़ दी गई जिससे उनको कोई सामान निकालने का मौका नहीं मिला. पति के ईलाज का पेपर भी गिराये गये घर में दब गया. सुनीता रोते हुए बताती है कि अभी कुछ समय पहले ही वह 60 हज़ार रूपये पुलिस और 40 हज़ार रूपये डीडीए को देकर घर बनाई थी.
वह अपनी हाथ के छाले को दिखाती हुए बताती हैं कि बदरपुर खरीदना नहीं पड़े इसके लिए पत्थर लाकर पानी में भिगोती थी और हथौड़े से तोड़ती थी. सुनीता ने 70 हज़ार रूपये 3 प्रतिशत ब्याज पर लेकर घर बनाई थी. उनका कहना है कि वह हमसे पैसे भी ले गये और हमारे घर को भी तोड़ दिये.
इसी तरह की बात बर्फी देवी जयपुर की रहने वाली हैं और 13-14 साल से इस बस्ती में रहती हैं. बर्फी भी घरेलू सहायिका का काम करती है और पति मजदूरी करते हैं. बर्फी बताती हैं कि पुलिस 30 हज़ार रूपये तथा डीडीए 20 हज़ार रूपये घर बनाते समय लेकर गई थी.
इसी तरह की बातें पुनम और गीता बताती हैं कि उनके घर बनने पर पुलिस और डीडीए ने उनसे पैसे लेकर गये. सूरजा देवी अलीगढ़ की रहने वाली हैं. वह बताती हैं कि 16 साल से यहां रह रही हैं.
वो बताती हैं कि इस जगह पर किकड़ के पेड़ हुआ करते थे और पानी जमा रहता था. यह जगह चार माले के बराबर गड्ढे में थी, इसको हम लोग धीरे-धीरे मलवे भड़कर ऊंचा किये हैं. हम लोग यहां मिट्टी तेल से दिये जलाते थे और पानी दूर-दूर से लाते थे. वो आगे बताती हैं कि, यहां पर लोगों के घर बनने पर पुलिस और डीडीए ने पैसा लिया है, जबकि इस ज़मीन को हमने रहने योग्य बनाया है. आज बोल रहे हैं कि यह ज़मीन हमारा है. अब इस इलाक़े को कंटीले तार से सरकार द्वारा घेरा जा रहा है.
इसी तरह की शिकायत दूसरे लोगों की भी है. इन सबकी शिकायत है कि झुग्गी तोड़ने से पहले उनको किसी भी तरह की चेतावनी नहीं दी गई कि वे अपने समान को बचा पायें. लोगों का गुस्सा नेताओं पर भी है. उनका कहना है कि नेता वोट मांगने आते हैं तो कहते हैं कि हम झुग्गी पक्का करा देंगे, आपके लिए सभी व्यवस्था करा देंगे, वोट हमको दो. जीतने के बाद कहते हैं कि वह हमारा इलाक़ा ही नहीं है, इसी तरह का आरोप वह निगम पार्षद आदेश गुप्ता व विधायक हजारी लाल पर लगाये.
प्रमोद बताते हैं कि 25 जून को जब सामने की कुछ झुग्गियां तोड़ी गईं तो हम लोग दो टाटा 407, दौ चैम्पीयन और दो बोलेरो गाड़ी से इस इलाक़े के सांसद मीनक्षी लेखी के घर गये थे. घर पर मीनाक्षी लेखी नहीं मिली, हम लोगों को अपने दफ्तर बुलाई. जब हम लोग वहां पहुंचे तो हम से अधिक संख्या में वहां पुलिस मौजूद थी और सांसद महोदया ने कहा कि ‘‘तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारे घर पर जाने की, यहां क्यों नहीं आये?’’ पुलिस वालों से बोली कि सभी को बंद कर दो एक भी नहीं बचे. सांसद महोदया के इस रूख से लोग डर गये और माफी मांगे. मीनक्षी लेखी ने कहा कि वह सरकारी ज़मीन है तुम लोग अवैध क़ब्जे किये हो और वह जगह तुम को छोड़नी होगी.
लोग झुग्गी टूटने के बाद दिल्ली सरकार के पास भी गये थे जहां से उनसे कहा गया की ‘हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हमारे पास कोई पावर नहीं है. आप हमें प्रूफ दो, हम कोर्ट में केस कर सकते हैं.’
बताते चलें कि बलजीत नगर से कुछ ही दूरी पर कठपुतली कॉलोनी है जहां पर दिल्ली की पहली गगनचुम्बी ईमारत ‘रहेजा फोनिक्स’ बनाने की योजना है, जिसको लेकर कठपुतली कॉलोनी निवासियों और सरकार के बीच कई वर्षों से तना-तनी का माहौल है. कठपुतली कॉलोनी में सरकार ने पहले घोषणा कर दी कि लोगों को फ्लैट बनाकर दिये जायेंगे, फिर उन्हें हटाना शुरू किया. इसके बाद कॉलोनी निवासियों ने प्रतिवाद शुरू कर दिया. उन्होंने कम्पनी से यह गारंटी मांगी कि यहां पर बसे सभी लोगों को फ्लैट देना सुनिश्चित किया जाये. और यह गांरटी कोर्ट में लिखित हो. इस मांग को ‘डेवलपर्स’ ने मानने से इनकार कर दिया जिसके कारण लोग अस्थायी बने कैम्पों में नहीं गये. क्या कठपुतुली कॉलोनी से यह सीख लेकर बलजीत नगर की कॉलोनी तोड़ी गई है कि पहले तोड़ दो, फिर घोषित करो कि यह ज़मीन फलां पूंजीपति को दे दी गई है, फलां काम के लिये ताकि लोग प्रश्न खड़ा नहीं करें.
लोगों का कहना है कि झुग्गी-बस्ती को लेकर सभी पार्टियां कहती हैं कि जहां झुग्गी वहां मकान देंगे. लेकिन सरकार बनते ही वह अपने वायदों से मुकर जाती है और उसकी जगह इन बस्तियों को तोड़ना शुरू कर देती हैं. 1989 में सरकार ने बस्तियों की बेहतरी के लिये ‘सीटू अपग्रेडेशन’ को अच्छा माना और कहा कि आमतौर पर बस्तियों को पुर्नवासित करने की बजाए सीटू अपग्रेडेशन पर ध्यान देना चाहिए. इसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिस विभाग की ज़मीन है अगर उसको फिलहाल में उस ज़मीन की आवश्यकता नहीं है तो उसी जगह पर बस्ती वालों को बसाना चाहिए. सरकार के इतने स्पष्ट निर्देश के बाद भी बस्तियों को क्यों तोड़ा जा रहा है? बलजीत नगर में डीडीए कौन सी परियोजना ला रही है या किसको यह ज़मीन दी गई है, उसका खुलासा डीडीए को करना चाहिए. भारत के प्रधानमंत्री बोलते हैं कि 2021 तक सभी लोगों को मकान दे दिया जायेगा, तो क्या सरकार की यह योजना है कि 2021 से पहले-पहले सभी बस्ती को तोड़ कर लोगों को बेदखल कर दिया जाये? प्रधानमंत्री जी, क्या बिना पूर्व सूचना व बिना पुनर्वास, बस्तियों को तोड़ना उचित है?