अपना घर भी हार गए संगीत सोम, संजीव बालियान, हुकुम सिंह और सुरेश राणा

आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net


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शामली/सरधना/थाना भवन/मुज़फ़्फ़रनगर : कैराना नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद के चुनाव में हाजी अनवर हसन को जीत मिली है. यह दिवंगत सांसद मनव्वर हसन के भाई हैं.

हालांकि कैराना से इस समय हुकुम सिंह सांसद हैं. यहां की आबादी में हिन्दुओं की संख्या 30 फ़ीसद से ज़्यादा है. मुसलमानों में भी सांसद जी की अच्छी पकड़ है. और जानकार कहते हैं कि 5 हज़ार से ज़्यादा लोग उनके कहने पर कहीं भी वोट कर सकते हैं. बावुजूद इसके कैराना उत्तर प्रदेश में एकमात्र ऐसी नगर पालिका है, जहां भाजपा ने अपना प्रत्याशी नहीं लड़ाया. यह तब है जब हिन्दू हितों के लिए हुकुम सिंह पिछले कुछ समय से पलायन और सामूहिक बलात्कार सहित कई मुद्दों से अपनी सेकूलर छवि कुर्बान कर चुके हैं.

पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिक कहते हैं, हुकुम सिंह जी कभी सर्वमान्य नेता थे, अब वो धर्मांधता में बह गए हैं. आज उन में इतना साहस नहीं है कि वो मुसलमानों में जाकर वोट मांग सके. उनके आख़िरी दिनों की भाजपा की राजनीति ने उनकी चमक को ख़त्म कर दिया है. यह शर्मनाक है कि वो कैराना में कैंडिडेट नहीं ला पाए.

सवाल कुछ और भी है. महा-पालिकाओं में भाजपा की जीत से इतर उत्तर प्रदेश के दूसरे परिणाम में भाजपा के लिए हार छिपी है. ज़मीनी स्तर पर जहां ईवीएम मशीनें नहीं लगी थी और बैलेट से चुनाव हुए, वहां भाजपा की बुरी गत हो गई. यहां तक कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी चर्चित भाजपा नेता अपना घर तक नहीं बचा पाए.

थाना भवन से विधायक और सरकार में मंत्री सुरेश राणा, कैराना से सांसद हुकुम सिंह, सरधना से विधायक संगीत सोम और मुज़फ़्फ़रनगर से सांसद संजीव बालियान अपने ही घर में हार गए.

नतीजे बहुत कुछ कह रहे हैं. जैसे सुरेश राणा के प्रभाव वाले क़स्बे जलालाबाद में भाजपा प्रत्याशी की ज़मानत ज़ब्त हो गई. यह आश्चर्यजनक नतीजे भाईचारे की बुनियाद पर आए हैं.

कैराना के निवासी मेहरबान आलम कहते हैं कि, दरअसल निकाय चुनाव में साम्प्रदायिक कार्ड चलता नहीं है और बिना साम्प्रदयिक माहौल बनाए भाजपा की कोई हैसियत नहीं है. इसलिए भाजपा शामली ज़िले में बमुश्किल एक ही सीट जीत पाई. यह बनत की सीट है. इसपर भाजपा के राजीव कुमार को 42 वोटों से जीता हुआ घोषित किया गया. मगर दूसरे प्रत्याशी वजाहत खाँ ने सरकारी मशीनरी पर उन्हें ज़बरदस्ती जिताने का इल्ज़ाम लगाया.

जलालाबाद में बसपा प्रत्याशी अब्दुल गफ़्फ़ार को जीत मिली. इन्होंने सपा के ज़हीर मलिक को लगभग 550 वोट से हराया. भाजपा प्रत्याशी धर्मवीर की यहां ज़मानत ज़ब्त हो गई.

थाना भवन में मंत्री सुरेश राणा का निवास है. यहां भी भाजपा प्रत्याशी की ज़मानत ज़ब्त हो गई. यहां पूर्व चेयरमैन इंतज़ार अज़ीज़ की पत्नी रफ़त परवीन ने अंजली शर्मा को हराया. भाजपा प्रत्याशी अनीता तीसरे स्थान पर रही.

इसके अलावा शामली में भाजपा निर्दलीय प्रत्याशी अंजना बंसल से हार गई. अंजना बंसल को कांग्रेस और रालोद का समर्थन था. इस ज़िले की दूसरी नगर पंचायत एलम, कांधला, झिंझाना सभी  जगह भाजपा को हार मिली.

मुज़फ़्फ़रनगर में सांसद संजीव बालियान का घर है. यहां भी भाजपा हार गई. यहां कांग्रेस प्रत्याशी अंजू अग्रवाल ने भाजपा प्रत्याशी सुधाराज शर्मा को 11 हज़ार वोट से हरा दिया. यहां मुस्लिम और वैश्य समुदाय की एकजुटता ने यह परिणाम दिया. यही नहीं, जिस वार्ड में भाजपा सांसद और दो विधायक रहते हैं, वहां पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक समर्थक संगीता सभासद बन गई.

मेरठ के सरधना में भाजपा के फायर ब्रांड विधायक संगीत सोम का आवास है. यहां समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी सबीला बेग़म ने भाजपा प्रत्याशी रेखा को 4 हज़ार से ज्यादा वोटों से हरा दिया.

यह सभी नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के बड़ा चेहरा हैं. मगर यह सब अपने ही घर में भाजपा को नहीं जीता सके.

पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक कहते हैं कि, यह तो होना ही था. दरअसल यह लोग धार्मिक उन्माद पर चुनाव लड़ते हैं. मुझे तो इन्हें नेता कहने पर एतराज है. यह सब एक दुर्घटना के तहत नेता बन गए हैं.

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