आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मेरठ : तबस्सुम बेग़म इस्माईल गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल हैं. इस्माईल गर्ल्स कॉलेज मेरठ शहर कोतवाली की ठीक सामने है, जहां लगभग 2 हज़ार लड़कियां पढ़ती हैं.
तबस्सुम कहती हैं, ‘क्या आप भी नसीम भाई को ढूंढ़ रहे हैं. वो आजकल बहुत परेशान हैं. गरीब आदमी को सता दिया. बेचारा!
तबस्सुम 1996 से इस कॉलेज की प्रिंसिपल हैं, जबकि नसीम 1988 से यहां चौकीदार हैं. कॉलेज के एक दूसरे कर्मचारी अली को वो उन्हें तलाशने भेजती हैं.
तबस्सुम बताती हैं कि वो मस्जिद में जाकर बैठ जाते हैं और बारगाह-ए-इलाही में अपना दर्द सुनाते हैं. दर्द बस इतना है कि उन्होंने 29 साल की नौकरी में पैसा इकठ्ठा किया. बड़े बेटे ने लोन लिया और 30 लाख का एक घर खरीद लिया. घर पर मिठाई आ गई. जब इस नए घर में आमद के लिए पहुंचे तो ‘हर हर महादेव’ और ‘जय श्री राम’ का उदघोष करती हुई सैकड़ों लोगों की एक भीड़ गले में भगवा डाले पहुंची और नसीम अहमद को बैरंग लौटा दिया.
इस बीच नसीम (60 साल) भी पहुंच चुके हैं. तबस्सुम की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, उन्होंने कहा “तुम मुसलमान हो तुम्हें हिन्दू मोहल्ले में नहीं बसने देंगे.”
तब्बसुम आगे बताती हैं कि, “नसीम भाई, मेरे ऑफिस के ऊपर वाले कमरे में रहते हैं. उनका कमरा इतना ही बड़ा है, जितना आप मेरा ऑफिस देख रहे हैं. उस कमरे में यह 7 लोग हैं. नसीम भाई उनकी बीवी और 5 बच्चे. इनमें 2 बेटी हैं जिन्होंने बीएड किया है. अब आप असली दर्द सुनिए. इनकी बेटी की रिश्ते के लिए एक बार मेहमान आए, मगर एक ही कमरा देखकर वापस लौट गए, कमरे के अंदर भी नहीं गए.
29 साल का सपना एक पल में कुचल दिया गया. इलाक़े के मुसलमानों में नसीम की बेइंतहा इज़्ज़त है. पड़ोसी अख़्तर खान कहते हैं, “वो नसीम से ज़्यादा शरीफ़ किसी को नहीं जानते हैं. इनके 5 बच्चे हैं. सबको आला तालीम दी है. नसीम यहां 29 साल से ही कभी इनकी किसी से कोई बहस नहीं हुई.”
यहां के मुसलमान नसीम के साथ खड़े हैं और उनके बारे में बात करके बहुत दुख जताते हैं.
एडवोकेट ज़फ़र कहते हैं, “समझ में नहीं आ रहा है कि यह कौन सा विकास चाहते हैं. क्या कभी किसी मुसलमान ने अपनी संपत्ति हिन्दू को नहीं बेची है. मेरठ में ऐसे सैकड़ों मामले हैं.”
नसीम के घर खरीदने के बाद से यहां हिन्दू संगठनों में हलचल है. घर नसीम के बेटे नोमान अली के नाम है और इस पर 18 लाख रुपए बैंक से क़र्ज़ लिया गया है.
नसीम बताते हैं कि, लोन बेटे ने अपने नाम से लिया है. उसी ने मेरा ख़्वाब पूरा किया.
नसीम के मंझले बेटे उस्मान कहते हैं कि, अब्बू ने भैया और बाजी और हमें पढ़ाने पर अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा खर्च किया. बड़े भाई इंजीनियर हैं और बाजी ने बीएड किया है.
बाबा गोस्वामी नाम के एक स्थानीय प्रोपर्टी एजेंट इस मकान को दिलवाने में बिचौलिया बने थे. TwoCircles.net से बातचीत में बताते हैं कि, मेरे पड़ोसी पूर्व भाजपा पार्षद मोहित रस्तोगी ने अपना और पैपे रस्तोगी ने 3 मकान मुसलमानों को बेचे हैं, उन पर यह शोर नहीं मचा रहे हैं.
संजीव रस्तोगी ने नोमान अली को यह मकान बेचने की वजह स्थानीय कोतवाल यशवीर सिंह को बताई थी, “सर मैंने अपनी कार बेच दी. अपनी दुकान बेच दी. अब घर बेच दिया. मैं भारी क़र्ज़े में हूं. अपनी इज़्ज़त बचा रहा हूं.”
इंस्पेक्टर यशवीर सिंह कहते हैं, अब कोई भी अपनी संपत्ति किसी को भी बेचे, इसमें कुछ ग़लत नहीं है.
नसीम बताते हैं, कोतवाली में बैठकर बात हुई थी. संजीव ने पैसे लौटाने का डेढ़ महीने का वक़्त मांगा है. बैनामा में संजीव का बेटा भी गवाह है.
नसीम बताते हैं कि, बैंक से लोन लेने की प्रक्रिया में मकान के दस चक्कर काटे गए. कई बार जांच-पड़ताल हुई, तब किसी को कोई ऐतराज़ नहीं था. अब ज़मीन भी हिन्दू-मुसलमान हो गई.
आदिल चौधरी मेरठ का एक पुराना मामला हमें बताते हैं. वो कहते हैं कि, मशहूर शायर बशीर बद्र साहब ने हिन्दू बहुल पॉश कॉलोनी शास्त्री नगर में घर लिया. उसके बाद यहां दंगा हो गया. भीड़ ने उनका घर जला दिया. इस पर उन्होंने एक शेर लिखा —
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, वो तरस खाते नहीं बस्तियां जलाने में…
समाजवादी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा रखने वाले इसरार सैफ़ी हमारी जानकारी में यह कहकर इज़ाफ़ा करते हैं कि, “मेरठ में 90 के दशक के बाद मुसलमानों और हिन्दुओ के बीच एक तरह की सरहदें हैं. वो मिल-जुलकर कम ही रहते हैं. अब कुछ महीने तौफ़ीक़ इलाही के भांजे ने भी ऐसे ही एक मकान लिया था, जिस पर ख़ूब हगांमा हुआ. उसे अपना मकान वापस करना पड़ा.
मोरिपाड़ा वो जगह है, जहां नोमान अली ने मकान ख़रीदा था. यह पूरी तरह हिन्दू बहुल इलाक़ा है. अब यह मकान वापस हो गया है. बस पैसे अभी तक नोमान को नहीं मिले हैं.