वोटर बोले : “हम किसी को कैसे बता दें कि किसको वोट देंगे”

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

गाज़ियाबाद : गाज़ियाबाद के गौशाला फाटक से जैसे ही आगे बढ़ते हैं, प्रेम नगर का इलाक़ा शुरू होता है. ये बस्ती रेलवे ट्रैक के ठीक बग़ल में है. लोग इस बस्ती का नाम सराय नज़र अली भी बताते हैं. यहां की आबादी में तक़रीबन हर समुदाय के लोग शामिल हैं. रेलवे ट्रैक के किनारे ही यहां के लोगों ने अपने रिक़्शे लगा रखे हैं. हर तरफ़ गंदगी का अंबार है. एक पल के लिए ऐसा अहसास होता है कि हम शायद गाज़ियाबाद में है ही नहीं. दिल में ख्याल आता है कि क्या ये वही ग़ाज़ियाबाद है, जिसे हम फ़िल्मों में देखते हैं. इसी गंदी बस्ती में बिल्लू भाई का चुनावी दफ़्तर भी मौजूद है. धीरेन्द्र यादव यानी बिल्लू भाई ग़ाज़ियाबाद विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार हैं.


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बिल्लू भाई के दफ़्तर से आगे बढ़ते ही एक चाय की दुकान है. ये दुकान 28 साल की रेखा पाल चलाती हैं. हमें ग़ाज़ियाबाद के चुनावी समीकरण को समझने के लिए यह जगह सबसे मुनासिब लगती है. रेखा पाल जी को चाय के लिए ऑर्डर करते हैं. और फिर वहां मौजूद लोगों से चुनाव की चर्चा शुरू हो जाती है. लेकिन हमने सोचा कि चुनाव में रिपोर्टर मर्दों से तो खूब बात करते हैं, क्यों न रेखा पाल जी से बात की जाए कि चुनाव को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है.

और आपकी नज़र में यहां चुनाव का क्या माहौल है? जवाब में रेखा पाल का कहना है, ‘माहौल तो सब बढ़िया है सर. माहौल को क्या हुआ है?’ उनके इतना बोलते ही सब हंस पड़ते हैं. वो चाय बनाते-बनाते आगे बोलती हैं, ‘ये नेता भी अजीब प्राणी हैं. वोट लेने के वक़्त तो सब कहते हैं कि हम ये करेंगे, वो करेंगे, लेकिन वोट लेने के बाद कोई कुछ नहीं करता. कोई पूछने भी नहीं आता. वैसे भी गरीबों को पूछता कौन है इस देश में?’

वो शीशे के गिलास में हमें चाय पीने को देती हैं. इतने यहां मौजूद बाक़ी लोग निकल जाते हैं. तभी रेखा पूछती हैं, ‘सर आप सर्वे कर कर रहे हैं क्या?’ हमने उन्हें अपनी पहचान बताते हैं तो बोलती हैं कि मतलब हम लोग का बात टीवी में आएगा. मैं उन्हें बताता हूं कि टीवी नहीं, वेबसाईट पर आएगा. फिर वो अपना अगला सवाल दागती हैं, ‘ये वेबसाइट क्या होत है?’ फिर मैं मोबाईल पर अपनी वेबसाइट खोलकर समझाता हूं. 

तभी रेखा पाल बताती हैं, ‘यहां एक स्कीम चल रहा है. मोदी जी का स्कीम है कि 8 साल से 32 साल के लड़की को दो लाख रूपये मिलेगा. हम फ़ॉर्म भी ले आएं हैं, लेकिन कल अख़बार में आया कि ऐसी कोई स्कीम नहीं है. वो अफ़वाह था. बताइए कि कैसे मोदी जी हम गरीबन को धोखा दे रहे हैं.’ फिर इसके बाद वो हमें फ़ॉर्म भी लाकर दिखाती है. (इस स्कीम की पूरी कहानी हम अगली रिपोर्ट में बताएंगे)

हमारी चाय अब ख़त्म हो चुकी थी. चलते-चलते हमने पूछा जो अमूमन नहीं पूछता हूं, ‘इस बार वोट किस पार्टी को देंगी?’ 

रेखा पाल का जवाब था, ‘अभी तक सोचा नहीं है.’ यानी आपके पति जहां कहेंगे आप उसे ही देंगी? इस पर रेखा का जवाब था, ‘उनके कहने पर क्यों दूंगी, मुझे जहां सही लगेगा वोट उसी को दूंगी.’ 

पास ही 50 साल की सुमित्रा भी हैं, उन्होंने भी तुरंत कहा, ‘वोट तो हमारा अधिकार है. हम किसी को कैसे बता दें कि किसको देंगे.’

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