अनाथ नज़र आता है मायावती का आदर्श ग्राम ‘माल गांव’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

माल/ मलीहाबाद (लखनऊ) : ‘हमें बहन जी ने गोद में लिया कब था, ये अलग बात है कि गोद में लेने का ऐलान ज़रूर किया था, लेकिन सौतेली मां की तरह से हमें ज़मीन पर ही मरने को छोड़ दिया. हम बिलखते रहे, लेकिन उनको हम पर कभी कोई तरस नहीं आई. सौतेली मां भी ऐसी नहीं होती है. हम अनाथ ही अच्छे थे. आख़िर गोद लेने का नाटक किया क्यों?’


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ऐसा कहना है लखनऊ से क़रीब 35 किलोमीटर दूर मलीहाबाद तहसील के माल गांव में रहने वाले एक 55 साल के बुजुर्ग मो. अमानतुल्लाह अंसारी का, जो इस उम्र में भी मजदूरी करके किसी तरह से अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. इनके घर में 7 लोग हैं, 5 बच्चियां गांव में ही रहती हैं, वहीं एक लड़का दिल्ली में सिलाई का काम करता है. घर का सारा बोझ अकेले अमानुल्लाह ही उठाते हैं.    

अमानतुल्लाह उसी माल ग्राम पंचायत के रहने वाले हैं, जिस ग्राम पंचायत को नवम्बर 2014 में बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने बतौर राज्यसभा सांसद गोद लिया था. वैसे तो इस ग्राम पंचायत में 8 प्राईमरी स्कूल, दो प्राईवेट कॉलेज, एक ठीकठाक-सा हॉस्पिटल, कई सारे बैंकों की शाखाओं जैसी सारी सुविधाएं मौजूद हैं. लेकिन जब हम यहां के अंदर की बस्तियों में जाते हैं, तो सारी हक़ीक़त आंखों के सामने आ जाती है.

ग्रामसभा सदस्य सिद्धू तिवारी बताते हैं, ‘बहन जी के गोद लेने से यहां के लोगों को कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ है. हद तो यह है कि नयी लाईटें लगाने के नाम पर पुराने लाईटों भी उतार लिए गए.’ हालांकि वो बताते हैं कि बहन जी के फंड से जो थोड़ा-बहुत काम हुआ है, वो सब काम भीम बाबा टोला में ही हुआ है.

अब हमारा रूख भीम बाबा टोला की ओर था. यहां की कच्ची सड़क से गाड़ी लेकर जाना मुश्किल ही नहीं, लगभग नामुमकिन है. यहां बजबजाती नालियां थीं और सड़कों पर पानी बह रहा था. तभी हमारी नज़र एक दृष्टिविहीन बुजुर्ग पर पड़ी, जो एक बच्चे के साथ हाथ में लोटा लिए कहीं जा रहे थे. हमने पूछा कि कहां जा रहे हैं तो उन्होंने जवाब दिया. यानी उस वृद्ध बाबूलाल को उनका बेटा छोटू गांव से बाहर खेत में शौच के लिए लेकर जा रहा था.

दरअसल, ये गांव मोदी के ‘स्वच्छ भारत’ के सपनों पर झन्नाटेदार तमाचे की तरह है, क्योंकि इस भीम बाबा टोला के 90 फ़ीसदी लोग आज भी शौच के लिए खुले में ही जाते हैं. शायद इन लोगों पर अमिताभ बच्चन या विद्या बालन के विज्ञापन का कोई असर नहीं हुआ है.

ये वही इलाक़ा है जिसे सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिए जाने के लिए जब ऐलान हुआ तो सबसे अधिक ख़ुशी मनायी गयी थी.

45 साल के धर्मेन्द्र से पूछने पर कि कभी कोई नेता इस बस्ती में आया? इस पर वो गुस्से में गाली देते हुए बोलते हैं, ‘मुंह से गाली निकलता है साहब. आज तक इस भीम टोला के लोगों ने विधायक इन्दल रावत का चेहरा तक नहीं देखा है. सांसद कौशल किशोर भी कभी नहीं आए. बहन जी और न ही कोई उनका प्रतिनिधि ही यहां आया. और इन सबको तो छोड़ दीजिए, हमारी प्रधान जी भी चुनाव जीतने के बाद शायद ही कभी हमारी इस बस्ती में आई हों.’

70 साल की सरजू देवी व 50 साल की चंदाकली बताती हैं, ‘यहां अंधेर नगरी चौपट राजा है. यहां हमारी सुनता कौन है. वैसे भी गरीबों का तो कहीं नहीं सुना जाता.’

समाजशास्त्र से एमए की पढ़ाई कर चुके राजेश कुमार बताते हैं, ‘इस भीम बाबा टोला का असल नाम अम्बेडकर नगर है. यहां क़रीब 1100 लोगों की आबादी है, जिसमें क़रीब 500 महिलाएं शामिल हैं. यहां लड़कियों के लिए एक जूनियर हाईस्कूल भी है. कोई बीमार पड़ता है तो क़रीब दो किलोमीटर की दूरी पर अस्पताल है.’

राजेश बताते हैं कि, ‘यहां एक सामुदायिक मिलन केन्द्र बनना था. लेकिन प्रधान जी के लोगों ने इसे कहीं और बनवा लिया.’

बताते चलें कि यहां विकास के नाम पर बहन जी ने अपनी सांसद निधि से 154 मीटर लंबी सड़क पर इन्टरलाकिंग ईंटें लगवाई हैं. इस कार्य पर कुल 6 लाख 87 हज़ार रूपये खर्च किए गए हैं. इस कार्य से यहां के लोगों थोड़ी-बहुत राहत मिली है, क्योंकि इससे पहले इस कच्ची सड़क पर बरसात के दिनों में निकलना काफी कठिन काम था. इसके अलावा यहां अब बिजली के खंभे लग चुके है. यहां के लोगों के मुताबिक़ पूरे माल ग्राम पंचायत में 1100 खंभे लगाए गए हैं, जिसमें 700 खंभे इसी इलाक़े में लगे हैं. यही नहीं, पूरे ग्राम पंचायत में बहन जी ने 7-8 ट्रांसफार्मर लगवाए हैं, जिसमें एक ट्रांसफार्मर इस इलाक़े में भी है.

28 साल के श्रवण कुमार एमबीए कर चुके हैं. लुधियाना में नौकरी करते हैं. लेकिन वोट देने के मक़सद से वो गांव आए हुए हैं. उनका कहना है कि इस अम्बेडकर नगर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां लोगों के पास शादी-ब्याह करने के लिए कोई जगह नहीं है.

70 साल की तुलसा बताती हैं, ‘हम जो ज़िन्दा हैं, लेकिन सरकारी बाबुओं ने हमें कब का मार दिया है. 3 साल से वृद्धा पेंशन नहीं मिल रहा है. आंख की समस्या की वजह से आधार कार्ड भी नहीं बन पा रहा है.’ 60 साल की रूकाना देवी को भी 6 साल से वृद्धा पेंशन नहीं मिल रहा है. न ही इनके पास राशन कार्ड है, न ही शौचालय और न ही उज्जवला स्कीम के तहत मिलने वाला गैस कनेक्शन.

यहां के लोगों के मुताबिक़ यहां जॉब कार्ड अधिकतर लोगों के बने हुए हैं, लेकिन मनरेगा की यहां कोई सुविधा नहीं है. कहीं कोई काम नहीं हो रहा है और न ही किसी को किसी तरह का भत्ता ही मिल रहा है. अधिकतर लोगों के पास बीपीएल कार्ड है, लेकिन उज्जवला स्कीम में लोगों का नाम ही नहीं है. 2013 में इस इलाक़े में सिर्फ़ तीन बच्चियों को ही अखिलेश यादव का लैपटॉप मिल पाया है. हालांकि यहां क़रीब 100 लोगों को समाजवादी पेंशन मिल रहा है, लेकिन लोगों की शिकायत है कि वो भी कभी मिलता है तो कभी नहीं.

भीम बाबा टोला के बाद अब हम चिकवन टोला की ओर निकलते हैं. यह इलाक़ा अम्बेडकर नगर से भी अधिक बदहाल नज़र आता है, यहां मुस्लिम रहते हैं. यहां ज़्यादातर लोग बात करने से भी कतराते नज़र आए. कुछ लोगों ने यहां तक पूछ लिया कि कहीं आप सांसद या बहन जी के आदमी तो नहीं हैं.

55 साल की हसीन बानो बताती हैं, ‘कभी कोई नेता यहां नहीं आता. चुनाव के समय भी सिर्फ़ नेताओं के चमचे ही आते हैं. अभी चुनाव है तो बिजली खूब रहती है.’

इस बातचीत के दौरान हम हसीन बानो की फोटो लेने के लिए जैसे ही कैमरा निकालते हैं तो पास ही खड़ी उनकी बेटी यह कहते हुए मना कर देती है कि फोटो मत लो, आगे हमें प्रॉब्लम हो जाएगी.

आगे पश्चिम टोला में मो. आरिफ़ कहते हैं कि मायावती के गोद लेने से सिर्फ़ इतना फ़ायदा हुआ है कि हमारे इलाक़े में ट्रांसफार्मर लग गया है. इसके अलावा कोई लाभ नहीं मिला है. वहीं गुफ़रान का कहना है कि पानी की टंकी इलाक़े में बन गई है, लेकिन टंकी में आज तक पानी नहीं आया. लोगों कि शिकायत है कि पीने का साफ़ पानी लगभग न के बराबर ही आता है. हालांकि पानी की सप्लाई इस इलाक़े में है. सरकारी बोरवेल भी लगे हुए हैं, लेकिन पानी कब आएगा, इसका कुछ अता-पता नहीं होता.

यहां पुरानी मस्जिद के इमाम मो. शराफ़तुल्लाह का कहना है, ‘दो चार जगह यहां लाईट लगवाए गए थे, लेकिन अब वो जलती नहीं है.’

मो. अय्यूब का कहना है, ‘यहां की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिसके घर में एक बल्ब है, उसके भी घर बिजली का 800 से 1200 रूपये तक बिल आता है और जिसके एसी और न जाने क्या-क्या है, उसके घर भी इतना ही बिल आता है. बहुत मनमानी है.’

बताते चलें कि पश्चिम टोला के लोगों का कहना है कि इस पूरे इलाक़े में एक भी स्कूल नहीं है. यहां शौचालय के लिए 70 फ़ीसदी लोगों को बाहर ही जाना पड़ता है.     

प्रधान रानी गायत्री सिंह के सुपुत्र व प्रधान प्रतिनिधि माधवेन्द्र देव सिंह का कहना है, ‘हम लोगों की अपेक्षाएं व उम्मीदें बहुत अधिक थी, हम लोगों को लगा कि रातों-रात अब माल ग्राम का कायाकल्प हो जाएगा, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं.’ बताते चलें कि आज़ादी के बाद से अब तक सारे प्रधान रानी गायत्री सिंह के परिवार से बने हैं. बस 2009-14 में यह परिवार चुनाव नहीं जीत पाया था.

ग्राम विकास अधिकारी दिनेश शर्मा का कहना है, ‘मायावती का कोई फंड ग्राम पंचायत में नहीं आया. हां, उन्होंने बिजली विभाग के माध्यम से दस हैलोजन लाईटें पूरे माल ग्राम पंचायत में लगवाई हैं. इसके अलावा वीरपुर में तक़रीबन 500-600 मीटर की सीसी रोड का निर्माण करवाया है. इसके अलावा आप भीम बाबा टोला में उनका काम देख ही चुके हैं.’

स्पष्ट रहे कि माल ग्राम पंचायत में मुख्य तौर पर चार गांव माल, वीरपुर, गांगन बरौली व बिद्धी श्यामा हैं. अगर सिर्फ़ माल गांव की बात करें तो यहां 1513 परिवार बसते हैं, जिसमें 629 परिवार अनुसूचित जाति के हैं. वहीं अगर बात जनसंख्या की करें तो इस वक़्त इसकी जनसंख्या 7981 है, जिसमें 3147 लोग अनुसूचित जाति के हैं.

बताते चलें कि सांसद आदर्श ग्राम योजना का मुख्य उदेश्य विकास करने के अलावा गांव व यहां के लोगों के मन में ग्राम विकास की नैतिक भावनाएं पैदा करना भी है ताकि गांव और ग्रामवासी अन्य लोगों के लिए मॉडल बन सकें.

ग्राम विकास अधिकारी के मुताबिक़ लोगों के व्यक्तिगत विकास के लिए पंचायत ने पंचायत भवन के बग़ल में सरकारी ज़मीन देकर लोगों के ही आर्थिक सहयोग से आर्य समाज मंदिर के साथ सामुदायिक सत्संग भवन का भी निर्माण करवाया है. यह माल गांव बहन मायावती के गोद से उतर चुका है. अब उन्होंने मोहनलाल गंज के फरेता गांव को गोद लिया है, जिसका वो अगले दो सालों में ज़बरदस्त विकास करेंगी, ऐसा दावा है. 

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