कुंडा और रामपुर खास : किससे क्या बात करेंगे और क्या लिखेंगे?

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

प्रतापगढ़ : बाबागंज विधानसभा के संग्रामगढ़ गांव में एक मीटिंग आयोजित की गयी है. मीटिंग नहीं है, जनसभा है लेकिन लोग इसे मीटिंग ही कहते हैं. डाक बंगले के मैदान में जितनी जगह है, उतनी भीड़ भी मौजूद है. लगभग दस हजार लोगों की भीड़. ये राजा भईया की जनसभा है, वे ऐसी दो छोटी-छोटी जनसभाएं करके आ चुके हैं. यह तीसरी है. हम एक आदमी से पूछते हैं कि किस पार्टी की जनसभा है? कहता है, ‘बाबागंज और कुंडा में राजा भईया के अलावा कोई और का मीटिंग होत है का?’


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इस एक वाक्य से समझ में आता है कि राजा भईया के सामने अगला प्रत्याशी क्यों अपनी ज़मानत जब्त करवा बैठता है? वह क्षेत्र में ही नहीं आता है, न जनसंपर्क करता है और जनसभा तो दूर की बात है. महेशगंज के आलोक त्रिपाठी बताते हैं, ‘बाहर के लोग कहते हैं कि राजा भईया का डर है, लेकिन हम कहते हैं कि कोई भी पहले ही हार मान लेता है.’ आलोक त्रिपाठी आगे बताते हैं, ‘अब आप ये देखिए कि कुंडा के भाजपा प्रत्याशी को यही नहीं पता है कि उसका क्षेत्र क्या है? वो कल बाबागंज में जनसम्पर्क कर रहे थे तो हम लोगों ने कहा कि अरे ये आपका तो क्षेत्र ही नहीं है, तो हंसने लगे.’ आलोक त्रिपाठी ही नहीं, इस बात की तस्दीक कई लोग करते हैं.

दरअसल प्रतापगढ़ की राजनीति पर यदि बात करनी हो तो कुंडा, बाबागंज और रामपुर ख़ास की विधानसभा सीटों पर आपको अलग से बात करनी होगी. लोग कहते हैं, ‘ये सीटें राजा भईया और प्रमोद तिवारी के नाम लिख दी गयी थीं.’

बाबागंज सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर राजा भईया समर्थित विनोद कुमार ने जीत दर्ज की थी. इस साल भी वही प्रत्याशी हैं. इस सीट पर कांग्रेस और सपा दोनों ने ही कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है. भाजपा ने पवन गौतम को खड़ा किया है और बसपा ने दयाराम पासी को टिकट दिया है. बसपा के टिकट पर महेंद्र कुमार पिछले साल दूसरे स्थान पर रहे थे. वोट के अंतरों की बात की जा सकती है. 2012 में विनोद कुमार ने 69,332 वोट पाए थे जबकि महेंद्र कुमार ने 27,266 वोट पाए थे. लोग बताते हैं कि लगभग 42,000 के वोटों के इस अंतर को राजा भईया इस बार और ज़्यादा बड़ा करना चाह रहे हैं. इसलिए वे हर रैली में जनता से वोट मांगने से ज्यादा दूसरे प्रत्याशियों की जमानत जब्त करवाने की मांग करते हैं.

शायद ऐसा होता दिख भी रहा है. बाबागंज विधानसभा सीट पर पिछले साल तक ऐसे लोग मिल भी जाते थे जो किसी और को वोट करते थे और कारण भी साफ़ बताते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है. हम बाबागंज के कई गांवों में घूमे और लोगों से बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों को वोट देने की बात नहीं की. अव्वल तो किसी ने भी विनोद कुमार का नाम नहीं लिया, सभी ने केवल राजा भईया का ही नाम लिया. इसका एक कारण है जो एक वोटर नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं, ‘आप पत्रकार हैं. किसी से भी बात करिए कोई भी नहीं बोलेगा कि उसका वोट राजा भईया के खिलाफ़ जाएगा. जो वोट राजा भईया के खिलाफ जा सकता है, वो भी नहीं बोलेगा. उसको डर है.’ किसका डर है? पूछने पर बताते हैं, ‘आपको लगेगा हम बोलेंगे राजा भईया. लेकिन नहीं, सबसे पहले तो उसको राजा भईया के समर्थकों का डर है. बीस में एक मिलेगा जो राजा भईया के खिलाफ़ वोट देगा, लेकिन उसको डर लगता है कि यदि ज़ाहिर करेगा तो बाकी 19 उसके ऊपर टूट पड़ेंगे.’

आपको नाम बताकर और फोटो खींचने की अनुमति देने वाले वोटर बहुत कम मिलेंगे जो यह ज़ाहिर करेंगे कि किसे वोट करेंगे. रिकॉर्ड पर लगभग सभी वोटर ये कहते हैं कि वे राजा भईया को वोट करेंगे और राजा भईया को इसलिए वोट करेंगे कि वे हमेशा मिल जाते हैं. हमने विपक्षी दलों के प्रत्याशियों से बातचीत करने की कोशिश की तो कोई बात करने को तैयार नहीं हुआ. भाजपा प्रत्याशी ने कहा कि चुनाव लड़ने उतरे हैं, किसी को हराने नहीं. बाबागंज में किसी और प्रत्याशी का जनसंपर्क कार्यक्रम बेहद मुश्किल से दिखता है और जनसभा तो बेहद मुश्किल से दिखती है. कुछ बड़े नेताओं ने जनसभाएं की हैं, जिनके बारे में आलोक त्रिपाठी बताते हैं कि उसका क्या फर्क पड़ेगा.

बाबागंज को रामपुर ख़ास और कुंडा से जोड़ने वाली सड़क अच्छी है. गांव के भीतर कई जगहों पर सड़कें ख़राब हैं, लेकिन उतनी नहीं कि जनाधार प्रभावित कर सकें. यदि सड़कें वैसी होतीं भी तो भी शायद ही कोई असर पड़ता. गंदगी नहीं है, बस राजा भईया हैं.

रामपुर ख़ास की सीट कई दशकों से कांग्रेस नेता और अब राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी के पास है. इस बार प्रमोद तिवारी तो नहीं खड़े हो रहे हैं, लेकिन उनकी बेटी अराधना इस सीट पर खड़ी हो रही हैं. अराधना को समर्थन भी प्राप्त है और वे जीत भी सकती हैं. इलाके में यह अफवाह भी आम है कि यदि गठबंधन की सरकार बनती है तो प्रमोद तिवारी उपमुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन फोन पर हुई बातचीत में अराधना तिवारी इस संभावना पर कोई ख़ास जवाब नहीं देती हैं. भले ही यह बात कोरी अफवाह ही हो, लेकिन इस अफवाह का लाभ भी प्रमोद तिवारी की बेटी को मिलेगा. उनका बनवाया कॉलेज सड़क पर ही है, सड़कें भी अच्छी हैं और चकाचक हैं. यानी प्रमोद तिवारी कुछ काम करवाए हैं, यह बात थोड़ी-बहुत दिख जाती है. ब्राह्मण बनाम ठाकुर की स्थिति को अंजाम देने के लिए भाजपा ने नागेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है और बसपा ने अशोक कुमार सिंह को टिकट देकर यही साज़िश दुहराने की कोशिश की है.

राजा भईया भले ही हमेशा सुर्खियों में रहे हो लेकिन क्षेत्र की राजनीति को अपने हिसाब से चलाने में प्रमोद तिवारी माहिर रहे हैं. प्रमोद तिवारी में रसूख की लड़ाई से ज्यादा राजनीतिक प्रतिद्वंदिता हावी रही है. इस प्रतिद्वंदिता में प्रतापगढ़ लोकसभा चुनाव में राजा भईया के चचेरे भाई गोपाल जी को राजकुमारी रत्ना सिंह से हरवाना भी शामिल रहा है. इधर प्रमोद तिवारी सपा के काफी निकट आ गए हैं. गठबंधन के बाद से वे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ देखे जाते हैं. प्रतापगढ़ में इस बार जो बड़ी बात सामने आ रही है वह है प्रमोद तिवारी और राजा भईया के बीच की रसूख की जंग का खात्मा. राजा भईया और प्रमोद तिवारी के बीच सम्बन्ध कभी मधुर नहीं रहे, इस बात को प्रतापगढ़ का हरेक निवासी जानता है. लेकिन उनके बीच में सम्बन्ध अब थोड़े सुधरे हैं, इसके बारे में भी लोग जानते हैं कि ऐसा सपा-कांग्रेस के गठबंधन की वजह से नहीं हुआ है. प्रमोद तिवारी और राजा भईया के बीच का गतिरोध तकरीबन डेढ़ साल पहले ख़त्म हुआ है. इसके बारे में जो सबसे आम कहानी है, वह ये है कि राजा भईया ने अपनी कुंडा विधानसभा के विकास के लिए प्रमोद तिवारी का दरवाजा खटखटाया और पूछा कि विकास के लिए फंड कैसे हासिल करते हैं और विकास कार्यों को किस तरह से अंजाम देते हैं? इस हास्यास्पद तथ्य के पीछे का सच यह है कि इस बात को सबसे पहले प्रमोद तिवारी के समर्थकों ने फैलाया था, लेकिन अब राजा भईया के समर्थक भी इस बात को दुहराते रहते हैं.

फिलहाल प्रमोद तिवारी का विधानसभा क्षेत्र कुंडा के मुकाबिले ज्यादा विकसित दिखता है और लोग इसे मानते भी हैं. सामुदायिक शौचालय इन तीनों ही विधानसभाओं में नहीं दिखते हैं, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता है.

आखिर में कुंडा विधानसभा पर आएं तो यहां से बैठकर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भईया प्रदेश की राजनीति की दिशा निर्धारित करते रहते हैं. राजा भईया की रैली के बाद उनके कैम्प कार्यालय में पहुंचने पर पता चलता है कि बहुत सारे लोग – जिनमें कुछ बूढ़े और लड़के भी शामिल हैं – अपनी समस्या लेकर आए हैं. पंद्रह मिनट के भीतर ही राजा भईया इन सबकी समस्याओं को दूर कर देते हैं. उस भीड़ में एक आदमी मेरे हाथ में रिकॉर्डर और डायरी देखकर पूछता है कि क्या मैं मीडिया से हूँ? जवाब मिलने पर कहता है कि मैं जो बोलूंगा उसे जरूर लिखिएगा. फिर कहता है, ‘मैं अपाहिज हूं. एक पैर नहीं है, लेकिन राजा भईया मेरे लिए भगवान हैं.’ भगवान क्यों हैं? के जवाब में वे कहते हैं, ‘एक्सीडेंट में हमारा टांग गया तो कोई इतना पैसा नहीं था कि इलाज कराया जाए. हमारे घर वाले राजा भईया के पास मदद मांगने गए तो इलाज के लिए मदद मिली. इसीलिए हम आधे कद के आदमी हैं, फिर भी बाबू की सारी मीटिंग में जाते हैं.’ यहां ‘बाबू’ राजा भईया को कहा जाता है और जैसा अखबारों में लिखा जाता है तूफ़ान सिंह, अब वैसा राजा भईया को नहीं कहा जाता है. वह पहले की बात है.

राजा भईया के क्षेत्र में प्रत्याशी कदम नहीं रखते हैं. इसीलिए अपनी रैली में राजा भईया ने कहा, ‘अरे भाई चुनाव लड़ रहे हो तो कम से कम क्षेत्र को तो पहचानो. पता चला कि बगल वाली विधानसभा में टहल रहे हो. ऐसे प्रत्याशी को क्या कहा जाए.’ यहां भाजपा के प्रत्याशी जानकीप्रसाद पाण्डेय हैं और बसपा के परवेज़ अख्तर अंसारी.

राकेश श्रीवास्तव बताते हैं, ‘राजा भईया यहां लगभग सरकार के समानांतर एक सरकार चलाते हैं. इस प्रक्रिया में तामझाम नहीं है. राजा भईया हम लोगों को कोर्ट कचहरी जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. कभी तो पुलिस की भी ज़रुरत नहीं पड़ती है.’ गैरचुनावी दिनों में राजा भईया रोज़ दरबार लगाते हैं और सुबह से लेकर शाम तक जनसमस्याओं का निस्तारण करते हैं. उन्हें इस बात की बढ़त हासिल है कि ग्राम पंचायत के सभी सदस्य उनके हाथ में हैं. इसलिए अधिकतर समस्याओं का निस्तारण वे और भी तेजी से कर देते हैं, ऐसा उनके करीबियों और लोगों का दावा है.

2012 विधानसभा में राजा भईया ने 1.11 लाख वोट पाए थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहे शिवप्रकाश मिश्रा सेनानी ने 23,137 वोट पाए थे. अंतर तो 90 हज़ार वोटों का था, और क्षेत्र में कोई खुलकर बताता भी नहीं कि राजा भईया को वोट नहीं देंगे तो ऐसे में प्रश्न उठता है कि यह 23 हज़ार की संख्या किन वोटों की है. 80 वर्षीय जनार्दन त्रिपाठी साल 1971 से लगातार ग्राम प्रधान बने हुए हैं. राजा भईया के करीबी हैं और चुनाव प्रचार में भी लगे हुए हैं. वे बताते हैं, ‘आप ये बात लोगों से पूछेंगे तो लोग कहेंगे कि सब मुस्लिमों के वोट हैं या तो सब ब्राह्मणों के वोट हैं या तो सब दलितों के वोट हैं. लेकिन ऐसा है नहीं. दस बातें सुनने को मिलेंगी लेकिन ऐसा है नहीं. दरअसल राजा भईया के विरोध में पड़ने वाले वोटों में कुछ वोट ब्राह्मणों के शामिल हैं तो कुछ वोट मुस्लिमों के. पूरा संगठित वोट किसी का नहीं है.’

आलोक त्रिपाठी बताते हैं, ‘लोकतंत्र है न. कोई कहीं भी वोट कर सकता है. इसलिए बसपा के प्रत्याशी को कुछ वोट निकल जाते हैं. दलित, ब्राह्मण और कुछ मुस्लिम वोटों को जोड़ने पर ये 20-22 हज़ार की संख्या बनती है. इसमें कुछ भूमिहार भी हैं और कुछ ठाकुर भी हैं. ऐसा कुछ साफ़ नहीं है. वो हर चुनाव में बदल भी जाता है.’

राजा भईया के पिता विश्व हिन्दू परिषद् व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य रह चुके हैं. राजा भईया पर भी यह आरोप लगता रहता है कि वे भी मुस्लिमविरोधी हैं. डीएसपी ज़िया उल हक़ की हत्या के बाद से यह बात और भी बढ़ गयी है कि राजा भईया मुस्लिमविरोधी हैं. लेकिन इस बात को लगभग सभी नकार जाते हैं. राजा भईया के क्षेत्र में वोटरों से बात करना और असल बात खंगालकर लाना एक समस्या का मुद्दा है. कोई खुलकर बात नहीं करता है और हर जगह राजा भईया एक भगवान की तरह सामने आते हैं. प्रतापगढ़ में आंवले अब कम उगाए जाते हैं और मुरब्बे कम बिकते हुए दिखते हैं. देसी हथियार अब ज्यादा बनाए जाते हैं. प्रतापगढ़ से कुंडा, बाबागंज और रामपुर ख़ास की दूरी पचास किलोमीटर है, रास्ता सही है. बस के सफ़र में एक आदमी यह बोलता है कि बाबू के यहां से हैं तो कंडक्टर उससे चालीस के बजाय महज़ दस रूपए लेता है.

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