नसीमा खातून —जिसने अपने गांव की महिलाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दिखा दिया

मो. इम्तियाज़ अहमद जोगियावी

ज़िन्दगी के पहिये को घुमाने के लिए वो अब हर रोज़ सिलाई मशीन के पहिये को जूनून के साथ घुमाती है, ताकि उसके परिवार की खुशियां बरक़रार रहे.


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ये कहानी है बिहार के ज़िला सीतामढ़ी के जोगिया गांव की 35 साल की नसीमा खातून की, जिनकी ज़िन्दगी आज सबके लिए प्रेरणा बन चुकी है.

दरअसल, जब नसीमा खातुन की शादी हुई और वह अपने पति के घर आईं तो जीवन में सब अच्छा चल रहा था. पति ज़री का काम करते थे. आमदनी भी ठिक-ठाक हो जाती थी. पूरा परिवार बहुत खुश था. देखते ही देखते नसीमा खातून के चार बच्चे हो गए. बच्चों और पति के साथ वो सुकून की ज़िन्दगी गुज़ार रही थी कि अचानक समय ने करवट बदली और नसीमा खातून की ज़िन्दगी में अंधेरा छा गया.

पति का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा. धीरे-धीरे स्थिति और बुरी होती गई. नसीमा खातून अपने पति को निजी अस्पताल में ले जाना चाहती थी, पर जाती कैसे? आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. घर संभालने वाला तो खुद बीमारी से लड़ रहा था.

सरकारी अस्पताल में बहुत इलाज के बाद पता चला कि नसीमा के पति पीलिया रोग से ग्रसित है. बीमारी के देर से सामने आने के कारण पति का स्वास्थ्य काफ़ी ख़राब हो चुका था. समय के साथ नसीमा खातून को अहसास होने लगा कि अब अगर पति के साथ घर की स्थिति को संभालना है तो उन्हें ही आगे बढ़ना होगा.

तत्पश्चात उन्होंने हिम्मत से अपने हुनर के बल पर घर की ज़िम्मेदारी लेने का निश्चय किया और आस-पास के लोगों के कपड़े सिलने की ठानी. इस काम में उसकी सहायता सीतामढ़ी लोक सेवा संस्थान ने की, जिसके द्वारा नसीमा को 2 सिलाई मशीन उपलब्ध कराई गई.

नसीमा खातून कहती हैं कि, ‘पति की बीमारी के बाद सब कुछ बिखर गया था. चार बच्चों की ज़िम्मेदारी और बीमार पति की देखभाल करना कैसे मुमकिन होगा? कुछ समझ में नहीं आ रहा था. फिर भी हिम्मत की और सहायता के रूप में दी गयी दो सिलाई मशीनों द्वारा सिलाई सेंटर खोला. शुरु-शुरु में तो बहुत कम लड़कियां थी, लेकिन इस समय मैं 20 लड़कियों को प्रशिक्षण दे रही हूं. कमाई भी अच्छी हो जाती है. आगे और काम करना चाहती हूं खासकर ग़रीब बच्चों के लिए. तीनों बच्चें सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. चाहती हूं कि वो जीवन में बहुत आगे जाएं. अच्छे और मेहनती इंसान बने.’

बच्चों के लिए नसीमा खातून के सपने बहुत ही साधारण लेकिन कठिन हैं. परंतु बच्चे स्वयं जीवन में क्या करना चाहते हैं. यह पूछने पर सबसे बड़ी बेटी फ़ातिमा परवीन कहती हैं कि, ‘मुझे पढ़ाई करना बहुत अच्छा लगता है. पिता की बीमारी के कारण बार-बार सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाए हैं तो मैंने देखा कि वहां बहुत कम नर्स होती हैं. इसलिए मैं नर्स बनना चाहती हूं ताकि डॉक्टर की पूरी पूरी सहायता कर सकूं.’ फ़ातिमा इस समय 10 वीं कक्षा में हैं.

13 साल की दूसरी बेटी चांदनी परवीन 7वीं कक्षा में पढ़ती हैं. उनका कहना है कि, ‘मैं बड़ी होकर टीचर बनना चाहती हूं. फिर मैं अपने गांव के बच्चों को पढ़ाउंगी. क्योंकि अभी भी हमारे गांव के बहुत सारे बच्चे स्कूल नहीं जाते.’

नसीमा खातुन का 10 साल का बेटा आज़म 5वीं में पढ़ता है. बड़े ही उत्साह के साथ कहता है कि, ‘मैं भी बड़ी आपी की तरह टीचर बनना चाहता हूं, लेकिन मैं गांव में नहीं पढ़ाउंगा, शहर के बड़े स्कूल में पढ़ाउंगा. मुझे शहर घुमना है और वहीं नौकरी करुंगा.’

नसीमा खातून का सबसे छोटा बेटा इस समय तीन साल का है, लेकिन बाक़ी बच्चों की बातों से साफ़ प्रतीत होता है कि नसीमा खातून अपने बच्चों को ज़िन्दगी से लड़ने का हुनर सीखा रही हैं. शायद यही कारण है कि नसीमा खातून के पति भी नसीमा खातुन से बहुत खुश हैं.

वो बताते हैं कि ‘लंबी बीमारी के कारण मेरा स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था. लगता था कभी अच्छा नहीं हो पाउंगा, लेकिन पत्नी ने जिस तरह मेहनत की और मेरे साथ-साथ घर को भी संभाला, मुझे उस पर गर्व है. मैं उसका शुक्रगुज़ार हूं उसने सच में बड़ा काम किया है.’

नसीमा खातून की मेहनत और लगन ने उन्हें समाज में भी एक अलग पहचान दिलाई है, जिसके कारण आस-पास के लोग भी उनकी इज़्ज़त करते हैं और हिम्मत की दाद देते हैं. नसीमा खातून के कारण महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में भी बदलाव आ रहा है, जिसने ग्रामीण स्तर पर अन्य महिलाओं को जीवन में आगे बढ़ने का विकल्प खोल दिया है. (चरखा फीचर्स) 

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