अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मुंबई : एक ऐसे दौर में जहां मुसलमानों के बीच तालीम को लेकर भारी पसमांदगी है, मायूसी है, परेशानी व बेचैनी है… एक नौजवान लगातार तालीम की रोशनी बिखेरने की कोशिशों में लगा हुआ है. इस नौजवान का नाम आमिर अंसारी है.
40 साल के आमिर पिछले 20 साल से लगातार शिक्षा के क्षेत्र में लगे हुए हैं. रसासन शास्त्र में ग्रेजुएट आमिर पेशे से एक सरकारी टीचर हैं. बीएड की डिग्री हासिल करके इस टीचिंग के पेशे में वो 1998 से लगे हुए हैं.
आमिर मुंबई में जोगेश्वरी इलाक़े के मदनी हाई स्कूल में पढ़ाते हैं. TwoCircles.net के साथ बातचीत में आमिर बताते हैं कि, साल 2004-05 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से मुझे काउंसीलिंग में एक साल का डिप्लोमा करने का मौक़ा मिला. दरअसल, ये एक सरकारी प्रोजेक्ट था, जिसके ज़रिए हर साल कुछ टीचरों का चयन करके उन्हें बच्चों के गाईडेंस व काउंसीलिंग के लिए तैयार किया जाता है. इस कोर्स से मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला.
आमिर के मुताबिक़, 2006 में उन्हें प्रमोशन मिला. अब वो अपने स्कूल के एडिश्नल हेडमास्टर थे. यहीं से उन्हें कुछ अलग करने का मौक़ा मिला. वो बताते हैं कि, पहले मैंने अपने ही स्कूल में काफ़ी कुछ एक्सपेरिमेंट किया, फिर जोगेश्वरी के बाक़ी स्कूलों में भी जाने लगा. इसी दौरान मैंने कुछ टीचरों का एक ग्रुप ‘काविश’ बनाया, जिसके ज़रिए अलग-अलग स्कूलों में करियर गाईडेंस व काउंसीलिंग का काम करने लगें. साथ ही टीचरों के प्रोफेशनल ग्रोथ पर काम करना शुरू किया. उनके लिए भी हमने कुछ प्रोग्राम तैयार किए. हमने इसमें इस बात का ध्यान दिया कि टीचर अपनी सलाहियतों में कैसे इज़ाफ़ा करें.
आमिर ने 2008 में मुंबई के साबू सिद्दीक़ी कॉलेज में महाराष्ट्र के बच्चों के लिए ‘करियर फेस्ट’ का आयोजन किया. इस फेस्ट में 10 हज़ार से अधिक बच्चे शामिल हुए. तब से ये सिलसिला लगातार जारी है. इस तरह के कई बड़े करियर फेस्ट का आयोजन आमिर कर चुके हैं.
आमिर बताते हैं कि, फेस्ट से अलग एक और प्रोग्राम —‘हम होंगे कामयाब’ की शुरूआत की. इस साल 11 दिसम्बर को हमारा छठा‘हम होंगे कामयाब’ मुंबई के सबसे बड़े हॉल में रखा गया, जिसमें मुंबई, थाणा व भिवंडी के हज़ारों छात्र शामिल होंगे. ये प्रोग्राम सिर्फ़ दसवीं के छात्रों के लिए होता है. इसमें हम काउंसीलिंग व गाईडेंस के अलावा अलग-अलग टॉक शो रखते हैं, जिनमें अलग-अलग फिल्ड के यंग अचीवर्स आकर बच्चों से बात और उनकी हौसला-अफ़ज़ाई करते हैं.
सिर्फ़ बच्चे ही नहीं, आमिर इन बच्चों के मां-बाप पर भी काम कर रहे हैं. आमिर का कहना है कि, आमतौर पर मां-बाप की शिकायत रहती है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं. तो ऐसे में हम उन्हें सरकारी स्कीमों और स्कॉलरशिप के बारे में बताते हैं. उसे हासिल करने के लिए जिन कागज़ातों की ज़रूरत होती है, उसे बनवाते हैं. कुछ स्कूलों में पैरेन्ट्स भी अब शाम में आकर कम्प्यूटर सीख रहे हैं.
आमिर का असल फोकस मुंबई के उर्दू स्कूल हैं. आमिर मानते हैं कि दूसरे स्कूलों की तुलना में ये स्कूल ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ व ‘एजुकेशन की क्वालिटी’ दोनों ही मामलों में कमतर हैं. ऐसे में हम टीचरों को इस बात की ट्रेनिंग देते हैं कि वो कैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके बच्चों को अच्छी तालीम दे सकते हैं. कैसे एक्टिविटी आधारित एजुकेशन दें ताकि बच्चों की दिलचस्पी भी तालीम में बनी रहे. बल्कि उनके अंदर पढ़ने और आगे बढ़ने की ललक पैदा हो. इसके लिए हर हाल हम ई-लर्निंग पर 3-4 वर्कशॉप करते हैं. इसका फ़ायदा ये हो रहा है कि टीचर खुद अपना वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर अपलोड कर रहे हैं. बच्चों को क्लासरूम में दिखा रहे हैं.
आमिर का कहना है कि, सरकारी स्कूलों में ज़्यादातर टीचर टेक्नोलॉजी से अनजान हैं. ऐसे में हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि ये टीचर खुद को इस क़ाबिल बना लें कि आज की 21वीं शताब्दी के जो छात्र हैं, उनके साथ सही तरीक़े से बात कर सकें.
आमिर फ़िक्रमंद हैं कि हमारा प्राईमरी एजुकेशन बहुत ज़्यादा खोखला हो चुका है. प्राईवेट एजेंसी ‘असर’ की रिपोर्ट बताती है कि कई मामलों में महाराष्ट्र के बच्चों की स्थिति यूपी-बिहार से भी बदतर है.
करियर गाईडेंस को लेकर आमिर भारत के दूसरे राज्यों ख़ासकर उत्तर प्रदेश, झारखंड, गोवा, दिल्ली, राजस्थान व गुजरात जा चुके हैं. पिछले साल इनका एक प्रोग्राम बहरैन देश में भी हो चुका है. इनका मानना है कि हमारे बच्चों के अंदर अहसास-कमतरी थोड़ी ज़्यादा है. हम उन्हें बताते हैं कि वो खुद को किसी से कमज़ोर न समझे. ऐसे कई उदाहरण हैं कि अब हमारे बच्चे हर फिल्ड में बेहतर कर रहे हैं. सिविल सर्विस में जाने वाले अंसार शेख़ को अब कौन नहीं जानता. 19 साल के इंजीनियरिंग का छात्र रिफ़त शाहरूख दुनिया का सबसे छोटा सेटेलाईट बना चुका है. 22 साल के साद मेनन पहला मिनी सुपर कम्प्यूटर बना चुके हैं. ये सब बच्चे गरीब घर से हैं, लेकिन आज पूरी दुनिया इन्हें जानती है. आज हमारे बच्चे राष्ट्रीय स्तर के हर इम्तिहान में काफी बेहतर कर रहे हैं.
आमिर को इस महत्वपूर्ण काम के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है. कई बार उन्हें महाराष्ट्र सरकार की ओर से बेस्ट टीचर का अवार्ड मिल चुका है. वहीं 2016 में उन्हें सरकार की ओर से अपने बेहतर कारनामों की वजह से ‘गौरव पत्र’ भी मिला. इसके अलावा एनजीओ की तरफ़ से वक़्त बवक़्त सम्मानित किए जाते रहे हैं.
आमिर यक़ीनन मुस्लिम क़ौम के लिए एक उम्मीद की किरण की तरह हैं. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उन्होंने शैक्षिक तौर पर पिछड़े और मुस्लिम बहुल आबादी वाले इलाक़े में न सिर्फ़ शिक्षा की एक लौ जलाई है, बल्कि इलाक़े के लोगों में तालीम के प्रति एक ललक भी पैदा की है. शिक्षा का मशाल जलाकर हज़ारों ज़िंदगियां रोशन की हैं. आमिर जैसे लोग मुस्लिम क़ौम के लिए एक नगीने की तरह हैं. ऐसे लोगों की वक़्त बवक़्त हौसला-अफ़ज़ाई होती रहनी चाहिए.