अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : आगरा के ताज महल के बाद अब दिल्ली में हुमायूं का मक़बरा निशाने पर है. अब इसे ध्वस्त कर क़ब्रिस्तान बनाए जाने की मांग की जा रही है.
उत्तर प्रदेश के शिया सेन्ट्रल वक़्फ़ बोर्ड, लखनऊ के अध्यक्ष सैय्यद वसीम रिज़वी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखकर कहा है कि, बादशाह हुमायूं का मक़बरा जो नई दिल्ली के मथुरा रोड पर स्थित है, उसे राष्ट्र धरोहर की सूची से हटाते हुए हुमायूं की क़ब्र पर बनी इमारत को ध्वस्त कर पूरी भूमि दिल्ली के मुसलमानों के लिए क़ब्रिस्तान घोषित कर दी जाए.
रिज़वी ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि, ‘मुग़ल बादशाह मुस्लिम धर्म के प्रचारक नहीं थे और न ही भारत के लिए अच्छे बादशाह थे. इस कारण हिन्दुस्तान में बने भव्य मक़बरे राष्ट्र की धरोहर नहीं हो सकते.’
रिज़वी इतने पर नहीं रूकते. उनका कहना है कि, मुग़ल दूसरे देशों से भारत को लूटने आए थे, जिन्होंने भारत में आकर भारतीय राजाओं से उनके राज्यों को छीना और उनको लूट कर यहां के बादशाह बनकर भारत के निवासियों की खून-पसीने की कमाई से लगान वसूल कर यहां हुकूमत करने लगे और कई पीढ़ियों तक भारत में अपनी हुकूमत करते रहें. मुग़लों ने पुरानी भारतीय संस्कृतियों को बहुत नुक़सान पहुंचाया है.
उन्होंने अपने इस पत्र में यह भी लिखा है कि, हुमायूं के मक़बरे से सरकार को कोई बड़ा वित्तीय फ़ायदा भी नहीं होता है, बल्कि उसके रख-रखाव में भारत सरकार का लाखों रूपये खर्च होता है.
रिज़वी ने प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र में यह भी लिखा है कि बादशाह हुमायूं की क़ब्र पर बने मक़बरे के रख-रखाव में जो पैसा खर्च होता है, वो भारत की जनता का है, जिसका उपयोग सिर्फ़ भारत के विकास के लिए होना चाहिए.
सूत्रों की माने तो वसीम रिज़वी को यह पत्र लिखने की प्रेरणा भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दी है. यही नहीं, रिज़वी इन दिनों आरएसएस की मुस्लिम संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मंच पर भी कई बार देखे गए हैं.
गौरतलब रहे कि 16वीं सदी के हुमायूं के मक़बरे के साथ-साथ उसके आसपास की दर्जनों इमारतें विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल हैं. वहीं पिछले दिनों केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ महेश शर्मा की ओर से लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक़ साल 2014-15 के दिल्ली में हुमायूं के इस मकबरे से भारत सरकार को 6.35 करोड़ की कमाई हुई है, वहीं लाल क़िला ने 5.97 करोड़ और कुतुब मीनार ने 10.29 करोड़ का राजस्व एकत्र किया है.
यही नहीं, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से उपलब्ध राजस्व आंकड़ों के मुताबिक़ मुग़ल काल में बने स्मारकों को देखने आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक है और सबसे अधिक कमाई भी इन्हीं स्मारकों के कारण होती है. इन स्मारकों का जलवा इतना है कि हर साल लाखों पर्यटक दुनिया के तमाम देशों से भारत घूमने सिर्फ़ इसी कारण आते हैं.
दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के ज़रिए आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ों के मुताबिक़, वक़्फ़ बोर्ड के 25 रजिस्टर्ड क़ब्रिस्तान इसी हुमायूं के मक़बरे के इर्द-गिर्द यानी निज़ामुद्दीन इलाक़े में हैं, जिनमें से अभी सिर्फ़ दो या तीन क़ब्रिस्तान ही बचे हैं. बाक़ी क़ब्रिस्तानों पर सरकारी क़ब्ज़ा है. काश! रिज़वी इन क़ब्रिस्तानों से सरकार की नाजायज़ क़ब्ज़ों को हटाने की भी बात करते.