पुलिस के ‘रूतबे’ से मिली पुलिस सर्विसेज़ में जाने की प्रेरणा —मो. नदीमुद्दीन

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

आमतौर पर लोग पुलिस थानों से दूर ही रहना चाहते हैं, लेकिन बिदर के इस नौजवान को इसी पुलिस थाने ने इतनी प्रेरणा दी कि आज वो इस सिस्टम का हिस्सा बनने जा रहा है.


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ये कहानी कर्नाटक राज्य के बिदर शहर के ओल्ड सिटी में पुलिस स्टेशन के क़रीब रहने वाले मोहम्मद नदीमुद्दीन की है. नदीमुद्दीन का इस बार सिविल सर्विस में सेलेक्शन हुआ है. इन्हें यूपीएससी में 656 रैंक आया है.

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नदीम बताते हैं कि, बचपन से ही पुलिस सर्विस में जाने की इच्छा थी. इसकी सबसे अहम वजह मेरे घर का पुलिस स्टेशन के क़रीब होना है. मैंने पुलिस के ‘रूतबे’ को बहुत क़रीब से देखा है. वर्दी की ‘शान’ और उसकी ‘गर्मी’ को भी महसूस किया है. बस यहीं से मैंने भी ठान लिया कि मैं भी पुलिसिया सिस्टम का हिस्सा बनुंगा ताकि ग़रीबों व मज़लूमों को ‘ज़ुल्म’ से निजात दिला सकूं और इसके लिए ज़रूरी था कि पहले मैं खुद इस सिस्टम का हिस्सा बनूं जो अब मैं बनने जा रहा हूं.

नदीम आगे कहते हैं, अगर हम इंसाफ़ की बात करें तो सबसे पहले पुलिस सिस्टम ही एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां आप लोगों के लिए इंसाफ़ कर सकते हैं, उन्हें ज़ुल्म से बचा सकते हैं. उनकी ज़िन्दगी में फ़र्क़ ला सकते हैं.

पुलिस के बारे में आम लोगों की बहुत सारी शिकायतें हैं. आप पुलिस रिफ़ॉर्म को लेकर क्या सोचते हैं? ये सवाल पूछने पर नदीम बताते हैं कि, हमारी पुलिस 1860 के क़ानून से चल रही है, आज 2018 है. समाज में इतना बदलाव आ गया है. क्राईम बढ़ गया है. क्राईम का तरीक़ा बदल गया है. इसका रिफ़ॉर्म होना बहुत ज़रूरी है. हालांकि काफ़ी रिफॉर्म हो रहा है, बस रफ़्तार थोड़ी धीमी है. मेरा फोकस ‘कम्यूनिटी पुलिस’ पर ज़रूर रहेगा. यहां मैं बहुत कुछ कर सकता हूं.

25 साल के नदीमुद्दीन की पहली और आख़िरी ख़्वाहिश आईपीएस बनना है, न कि आईएएस. और उन्हें पूरी उम्मीद है कि इस बार उन्हें ये पद दे दिया जाएगा.

इनके पिता मो. नईमुद्दीन बिदर ज़िले में एक सरकारी पॉलीटेक्निक में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में असिस्टेंट लेक्चरर हैं. मां घर का कामकाज संभालती हैं. घर में नदीम तीसरे नंबर पर आते हैं. इनसे बड़ी दो बहनों की शादी हो चुकी है. छोटा भाई अभी पढ़ाई कर रहा है.

नदीम की दसवीं तक तालीम बिदर से ही हुई. उन्होंने यहां के केन्द्रीय विद्यालय में 73 फ़ीसदी नम्बरों के साथ मैट्रिक पास किया. फिर बारहवीं की पढ़ाई इन्होंने हैदराबाद के श्री चैतन्य जूनियर कॉलेज से की. इस बार  इनके 92 फ़ीसदी नंबर आएं. आगे की पढ़ाई के लिए अब ये बंग्लूरू के एम.एस. रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में थे. 2014 में इन्होंने यहां से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और फिर अपने मिशन में लग गए.

यूपीएससी की तैयारी के लिए सबसे पहले सितम्बर, 2014 में बिदर में ही शाहीन कॉलेज से 45 दिन का फाउंडेशन कोर्स किया. फिर इसके बाद इसी साल दिसम्बर महीने में कर्नाटका के डायरेक्टोरेट ऑफ माइनॉरिटीज़ के कोचिंग स्कीम के तहत सेलेक्ट हुए और दिल्ली आ गए. यहां इन्होंने क़रीब 10 महीने बाजीराव में क्लास की. अगस्त 2015 में ज़कात फाउंडेशन के हॉस्टल में दाख़िल हुए. जनवरी, 2017 में हमदर्द स्टडी सर्किल ज्वाईन किया. तब से वो यहीं रहकर तैयारी कर रहे थे.

नदीमुद्दीन ने ये कामयाबी दूसरी बार में हासिल की है. 2016 यूपीएसी में आप इंटरव्यू में पहुंच कर कामयाब नहीं हो सके थे.

नदीम बताते हैं कि, एक साल पहले मैं इंटरव्यू तक पहुंच कर नाकाम रहा. थोड़ी सी मायूसी हुई. मेरे एक दोस्त ने मुझे हौसला देते हुए कहा —‘इम्तेहान उन्हीं के सख़्त होते हैं, जिनके हौसले बुलंद होते हैं.’ ये बात मेरे दिल को छू गई. इसके बाद का ये एक साल मेरे लिए काफ़ी महत्वपूर्ण रहा. मैंने अपनी ही गलतियों से सीखना शुरू कर दिया. 

इस परीक्षा के लिए कौन सा सब्जेक्ट लिया था और क्यों? इस सवाल के जवाब में नदीम का जवाब है —पॉलिटिकल साईंस एंड इंटरनेशनल रिलेशन. फिर वो बताते हैं कि, हालांकि शुरू में इस सब्जेक्ट में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं था. लेकिन इसके बहुत सारे फ़ायदे हैं. ये आपके प्रीलिम्स के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद रहता है. इससे मेरे दूसरे पेपर्स में फ़ायदा हुआ. सिलेबस थोड़ा ज़्यादा है. लेकिन जब आप किसी चीज़ को पाने की ख़्वाहिश रखते हैं तो हर चीज़ में इंटरेस्ट डेवलप हो ही जाता है. अब इस सब्जेक्ट में काफ़ी दिलचस्पी पैदा हो गई.

तो फिर माना जाए कि आपकी पॉलिटिक्स में भी दिलचस्पी है. मेरे इस सवाल पर नदीम का स्पष्ट तौर पर कहना है —नहीं, बिल्कुल नहीं…

यूपीएससी की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगे? इस सवाल पर नदीम बताते हैं कि, सच कहूं तो आजकल क्लास की कोई ख़ास ज़रूरत ही नहीं है. हर चीज़ इंटरनेट पर मौजूद है. आप घर बैठकर भी तैयारी कर सकते हैं. और एक बात, मैंने पढ़ने के साथ-साथ लिखने पर ध्यान दिया. क्योंकि ज़्यादातर लोग सारा वक़्त पढ़ने में निकाल देते हैं, लेकिन लिखना उतना ही ज़रूरी है. सिर्फ़ पढ़ने से काम नहीं चलेगा, लिखने की प्रैक्टिस भी होनी चाहिए. आपने कितना पढ़ा है, इससे किसी को कोई मतलब नहीं है. आपको जज इस बात पर किया जाएगा कि आपने कितना लिखा है और क्या लिखा है.

नदीम आगे कहते हैं कि, नाकामी से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए बल्कि सफलता पाने के लिए हमें डटे रहना चाहिए. पहली बार कामयाबी नहीं मिली, कोई बात नहीं. मायूस न होकर अपनी गलतियों को देखें और उनसे सीखें. उन्हें दूर करने की कोशिश में लग जाएं.

देश के युवाओं खास़ तौर से अपने क़ौम के युवाओं से आप क्या कहना चाहेंगे? इस पर नदीम का कहना है कि, क़ौम के नौजवानों से ज़रूर कहना चाहुंगा कि अब आप अपनी सोच चेंज कीजिए. आप अपनी ‘सीमित दुनिया’ से बाहर निकलिए. ये दुनिया बहुत शानदार है. बहुत सारे मौक़े हैं. उन्हें हासिल कीजिए. अपने विज़न को थोड़ा सा बड़ा कीजिए. तालीम पर फोकस कीजिए. तालीम के बाद आप जो कुछ भी कीजिए, उसे मेहनत व लगन के साथ कीजिए. ज़िन्दगी हमें एक बार मिलती है, ज़िन्दगी को प्रोडक्टिव बनाइए.

नदीम आगे बताते हैं कि, हमारे बिदर में सिविल सर्विसेज़ को लेकर कोई अवेयरनेस नहीं है. इस वजह से मेरा भी सफ़र चैलेंजिंग रहा. शायद इसीलिए मुझे अपनी मंज़िल पाने में तीन साल का समय लग गया. मेरे लिए कोई गाईड या मेंटर नहीं था. कुछ बताने के लिए कोई सीनियर भी नहीं था. मैंने बस ग़लतियां की और उन्हीं ग़लतियों से सीखा.

वो बताते हैं कि, मैं जिस इलाक़े से आता हूं, वहां काफ़ी नकारात्मकता है. जो पुराने ख़्यालात के लोग हैं वो पहले से ही मन में बहुत सारे वहम पाल रखे हैं. सिस्टम ट्रांसपारेन्ट नहीं है, हर जगह भेदभाव है, मुश्किल है, मुसलमानों को सरकारी नौकरी नहीं मिलती… आदि-अनादि. मुझे यही सब सुनने को मिला था. लेकिन मुझे पता है कि ऐसा कुछ नहीं है. ये सब बातें वही लोग कहते हैं, जिनको कामयाबी नहीं मिलती या जिन्होंने कभी इसके लिए कोशिश ही नहीं की. मुझे यक़ीन है कि मेरे बाद यहां के नौजवानों में कुछ सकारात्मकता ज़रूर आएगी. मैं बिदर से मुसलमानों में पहला छात्र हूं, जिसने यूपीएससी क्वालिफाई किया है.

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वो कहते हैं कि, मैं अब जब दिल्ली से बिदर जाउंगा तो शायद अपने दोस्तों व इलाक़े के नौजवानों को बता सकूंगा कि इंजीनियरिंग व मेडिकल के अलावा भी दुनिया है. बिदर में तो आज़ादी के समय से ही एयर फोर्स स्टेशन है, लेकिन किसी ने उसमें जाने के बारे में नहीं सोचा. जबकि हमें एयर फोर्स में भी जाना चाहिए.

नदीमुद्दीन को पढ़ाई के अलावा बॉक्सिंग व जिम में दिलचस्पी है. इन्होंने हमेशा से अपने फिटनेस पर पूरा ध्यान दिया है. इनका कहना है कि तीन साल से सोशल मीडिया से दूर हूं और आगे भी दूर रहने का ही इरादा है.   फिल्म के बारे में पूछने पर वो कहते हैं कि, इसमें कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है. जो था वो तैयारी के पहले ही था. मैंने आख़िरी फ़िल्म 2014 में ‘बिहाइंड एनेमी वार’ देखी थी, जो हॉलीवुड की एक अच्छी फ़िल्म है. बॉलीवुड में अपका पसंदीदा हीरो कौन है? इस सवाल पर इनका जवाब है —हीरो तो वो होता है जो देश की भलाई के लिए कुछ करता है. ये लोग तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पेड इंटेटेनर हैं. मेरे लिए असली हीरो तो मेरे अब्बा हैं.

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