कलन्दर: एक मुस्लिम बिरादरी जो अपनी बेटियों को स्कूल नही भेजती

रामराज कस्बा के लडकियों (Photo: Aas Mohammed Kaif/TwoCircles.net)

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

रामराज, मेरठ: अक्सर आपने कलन्दर शब्द सुना होगा, शायरी में, किताबों में बहादुरी में कलाबाजी में और इतिहास में भी. कलन्दर मुस्लिम समाज की फ़कीर बिरादरी का एक हिस्सा है.


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अपनी साफ़गोई,अलग तरह की जिंदगी जीने वाली यह आबादी अब सिमट गई है. यह वही बिरादरी है जो सूफ़ीइज़्म से प्रभावित रही है.

 भले कभी उनके इशारे पर भालू और लंगूर नाचते हो, लेकिन कलंदर समुदाय आज भी कबीलाई संस्कृति से आगे नहीं निकल पाया. ज्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाले कलंदर समुदाय की आबादी लगभग पांच लाख हैं.

फरहाना(22)आठवी तक पढ़ी है(Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

 इसे पिछड़ापन ही कहेंगे क्यूंकि तमाम सहूलियतें होने के बाद भी ये समुदाय अभी भी अपनी घर की लडकियों को पढने नहीं भेजता. रामराज एक ऐसा कस्बा है जिसकी सीमा बिजनोर, मुजफ्फरनगर और मेरठ जनपद से मिलती है. वहां पर कलंदर समुदाय की आबादी हैं. वहां रहने वाली फरहाना(22)आठवी तक पढ़ी है, उसकी गोद मे उसकी एक साल की बेटी है वो मेरठ के एक गांव किला परिक्षितगढ़ की रहने वाली है. चार  साल पहले उसकी रामराज में शादी हुई है. फरहाना इस बस्ती की बेटी नही है बहु है वो बताती है कि वो दसवीं तक पढ़ी लिखी है और बस्ती की सबसे पढ़ी लिखी लड़की हैं.

 इस कलंदरों का मोहल्ला कहे जाने वाली बस्ती में सौ से ज्यादा घर है और 600 से ज्यादा आबादी है, फरहाना के अलावा नर्गिस(11) पूरी बस्ती में एकमात्र बेटी है जो पांचवी पास है. अपने घर के बाहर टॉयलेट पर लिखा ‘स्वच्छ भारत मिशन’, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ वो आसानी से पढ़ लेती है. नर्गिस के साथ की  आधा दर्जन लड़कियां पढ़ने की बात सुनकर अपने होंठ लगभग सी लेती है. स्थानीय निवासी  मुहर्रम अली (67) जो स्वयं कलंदर समुदाय से हैं बताते हैं कि हम लड़कियों को नही पढ़ाते.

हम लड़कियों को नही पढ़ाते कहने वाला मोहर्रम अली (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

 रामराज के प्रधान जितेंद्र कुमार के अनुसार स्थानीय शिक्षकों के साथ मिलकर वो कई बार बस्ती में जाकर लड़कियों के परिजनों से बात कर चुके है वो बताते है छोटी बच्चियों को तो स्कूल भेज देते है मगर दूसरी या तीसरी क्लास से हटा लेते है इसलिए पांचवी क्लास में पढ़ने वाली नर्गिस बस्ती में अलग सा ट्रीटमेंट पाती है.

 रामराज में सामाजिक गतिविधियों से जुड़ा युवक अब्दुल कादिर(22) कहता है”आप सिर्फ पढ़ने की बात कर रहे हैं थोड़ी सी सयानी(किशोरावस्था)हो जाने के बाद लड़की बस्ती के बाहर नही जा सकती,बाजार जाने पर पूरी तरह रोक है अकेले जंगल नही जा सकती वरना पूरे परिवार के खिलाफ पंचायत हो जाएगी और परिवार को बस्ती से निकाला भी जा सकता है.

 जमीर हसन(48) के अनुसार हम देख नही रहे देश में क्या हो रहा है किसके भरोसे पर इन्हें स्कूल भेज दे. एक उम्मीद हालांकि बिजनोर रोड पर मुझेड़ा गांव में कलंदरों की बस्ती में है यहां की वजीदा(17) एक अपवाद है अक्सर शाम में वो खतौली कुतुबपुर मार्ग पर दौड़ लगाती दिख जाती है. वजीदा लड़को के साथ कुश्ती की प्रैक्टिस करती है वो डिस्कस थ्रो में मंडल चैंपियन है और मुजफ्फरनगर जनपद में कुश्ती की गोल्ड मेडलिस्ट है. इसी साल दसवीं में मीरापुर के सुक्खनलाल आदर्श कन्या माध्यमिक विद्यालय में पढ़ती हैं. अक्सर वो स्कूल में भाषण में देती है. स्कूल की लड़कियां उससे प्रेरणा लेती है।वजीदा कहती है”पापा कहते है आसपास के 10 -15 जिलों की 5 लाख से ज्यादा कलन्दर बिरादरी में कोई लड़की 10वी में नही पढ़ रही है लोगो ने उन्हें मुझे पढ़ाने के लिए मना किया मगर वो नहीं माने”. वजीदा के पिता राजू(45) कहते है बिरादरी में बहुत पिछड़ापन है पढ़ाई की कोई जागरूकता नही है लड़कियां तो बिल्कुल नही पढ़ती मैंने तय किया है कि मैं अपनी बेटी को पढ़ाकर इन्हें ग़लत साबित करूँगा.

घोड़े की देखभाल करते मौसम अली (Photo: Aas Mohammed Kaif/ Two Circles.net)

 लडकियों के अलावा लडको में भी पढाई के लिए ज्यादा रूझान नहीं हैं.  रामराज कस्बे  में फारुख के बेटे सुएब अकेला लड़का है जिसने 12वी की परीक्षा पास की है. उसके अलावा कोई लड़का 10वी तक भी नही पढ़ पाया है. दिलखुश(27) के मुताबिक लोगों को लगता है बेटियां पढ़कर बिगड़ जाती है.और लड़कों को पढ़कर नौकरी मिलेगी नही इसलिए यहां कोई नही पढ़ता. बस्ती में ज्यादातर नोजवानों पर स्मार्ट फोन है मगर लड़कियों को फोन पर बात करने की इज़ाज़त नही है.

अपने रहन सहन के बारे में जानकारी देता ओड कबीला का युवा मुखिया नफीस(Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

 शारीरिक रूप से बेहद मजबूत कलन्दर जाति के युवक दावे करते है कि वो अपने से दुगनी ताक़त वाले आदमी से कुश्ती लड़ सकते है. साजिद(34) कहते है बदन की ताकत में कलन्दर किसी भी अन्य से ज्यादा ताकतवर है इसकी वजह मिलावट की चीजें न खाना और जंगलो से जुड़ाव हो सकता है. एक युवक का एक समय से एक किलो मुर्गा खाना सामान्य बात है और वो तीतर और मछली खाने का शौक रखते है।शमीम अहमद(43) हमें बताते हैं कि “कलंदरों में एक शकूर नाम के आदमी 12घण्टे से ज्यादा एक ही जगह बैठकर बिना हिले डुले तीतर शिकार करने के लिए जाने जाता है. सभी कलन्दर जाति के लोग अपनी शारीरिक दक्षताओं को हासिल करने में जोर लगाते है. वो तेज दौड़ते है ऊंचा कूदते है और देर तक कुश्ती लड़ लेते हैं.

 स्थानीय डिप्टी एसपी एसकेएस प्रताप के अनुसार कुदरती मिली इसी शारीरिक दक्षता से कुछ युवकों में नकारात्मकता भी आई है और चोरी और छिनैती जैसी घटना करने लगे हैं.  अक्सर गिरफ्तारी के समय पुलिस का भारी विरोध होता है

 फारुख अली(37)कहते है कलन्दर आपराधिक जाति नही है अब कुछ कलन्दर कारोबार करने लगे है तो उनकी आर्थिक हैसियत बेहतर हो रही है इससे शिक्षा की कमी से वो आपसी रंजिश में लग जाते है इस बस्ती में भी अलग अलग पार्टियों से जुड़े नेताओ के कुछ चेले है जिनसे एक दूसरे के खिलाफ झूठी शिकायतबाजी का खेल चलता रहता है.

 कलन्दर जाति के लोग बहुत तेज़ मिर्च का खाना खाते है जो सामान्य आदमी के लिए पचना मुश्किल है।मौसम अली (70)कहते है कि”हाजमा आज भी इतना दुरस्त है कि लाकड़ पत्थर सब हजम हो जाता है हम पुराने जंगली लोग है मेहनत करते हैं”।ज्यादातर कलन्दर घोड़े पालने का काम करते है और किराये पर शादी ब्याह में बग्गी चलाते है।

 रामराज से पांच किमी दूर समाना नामक गाँव में एक दूसरा कबीला रहता है इसे ओड कहते है यह बकरियां पालने का काम करते है 26 साल का नफीस अहमद इनका मुखिया है इस बस्ती में उनकी मां एकलौती औरत है जो हज करके आई है. क़ादिर(22) बताते है कि इनके भलेपन का आलम यह है कि जब वो हज से लौट रही थी तो एयरपोर्ट पर उनके पास से सूखी रोटी बरामद हुई यह उन्होंने इकट्ठा की थी जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने जवाब दिया कि जो रोटी बच जाती थी वो उसे अपनी बकरियों के लिए इकठ्ठा कर लेती थी.  इनके बेटे नफीस बताते है कि हम सब एक सिस्टम पर काम करते है जैसे बस्ती के पांच लड़के अगर बाहर जाकर 20 हजार रुपए कमाकर लाते है तो वो पूरी बस्ती में बारे बांटे जाते है किसी भी शादी ब्याह के खर्च को मिलकर वहन किया जाता है. कोई भी छोटा बड़ा मामला थाने-पुलिस में नही ले जाया जाता उसे यहीं बैठकर निपटाया जाता है. दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से दोनों बस्तियों में लड़कियों को पढ़ाई की अनुमति नही है.

कलंदरों की झोपड़ियां (Photo: Aas Mohammed Kaif/ TwoCircles.net)

कलंदरों की झोपड़ियां

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