आरती रानी प्रजापति, TwoCircles.net के लिए
जो समाज हम देखना चाहते हैं वह फ़िल्म में दिखाया जाता है या जिस तरह के समय में हम जी रहे हैं, वह फ़िल्म का विषय हो सकता है.
हाल में आई फ़िल्म पद्मावत प्रचलित कथा पर आधारित है, जिसमें रत्नसेन नाम का राजा रानी पद्मावती के साथ चित्तौड़ में रहता था. तत्कालीन शासक अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मावती को पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण किया. जिस युद्ध में रत्नसेन की मृत्यु हो जाती है और अपने सम्मान को बचाने के लिए रानी पद्मावती नगर की सभी स्त्रियों समेत जौहर कर लेती हैं.
इस फ़िल्म को लेकर काफ़ी विवाद भी किया गया. राजपूतों ने माना कि फ़िल्म में राजपूत स्त्रियों के मान-सम्मान की रक्षा नहीं की गई. सबके अलग मत हो सकते हैं.
फ़िल्म को देखने के बाद कुछ चीज़ें सामने आती हैं. जिनमें कुछ हैं- पद्मावती सुन्दर थी; रत्नसेन की पद्मावती से अलग भी पत्नियां थी; अलाउद्दीन खिलजी एक शक्तिशाली योद्धा था; उसकी पत्नी थी बावजूद इसके वह पद्मावती को पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण करता है; रत्नसेन के मरने के पश्चात पद्मावती ने अन्य स्त्रियों समेत जौहर किया आदि.
फ़िल्म की बात की जाए तो उसमें रत्नसेन को पद्मवाती से प्रेम हो जाता है. पद्मावती अत्यंत सुन्दर है. वह रत्नसेन के साथ चित्तौड़ आती है. आते ही उसे छोटी रानी का पद मिलता है. राजा के पास वह नियमित रहती है. राजनैतिक निर्णय लेती है. पद्मावती के आने के बाद नागमती उपेक्षा का पात्र बना जाती है.
पुरुष का स्त्री के प्रति आकर्षित होना, फिर उसकी पहली पत्नी या प्रेमिका का उपेक्षित बन जाना, यह समाज में व्याप्त पितृसत्ता की देन है. लेकिन यह बात कि पुरुष दूसरी स्त्री को लाएगा, समाज के लिए साधारण बन जाती है.
समाज पितृसतात्मक है इसलिए यह कोई नहीं सोचना चाहता कि इससे पहली स्त्री पर क्या प्रभाव पड़ेगा. क्यों समाज में सुन्दरता के पीछे हर बार पुरुष ही दौड़ लगा सकता है. स्त्री को सुन्दर चीज़ों के लिए लड़ने या उसे पसंद का अधिकार क्यों नहीं है.
पद्मावती को इतना सुन्दर दिखाया गया है कि हर पुरुष उसी को पाने के लिए दौड़ता है. फ़िल्म में दिखाया गया है कि राघव चेतन नाम का ब्रह्मचारी भी पद्मवाती को देखकर कामुक हो जाता है. वह रत्नसेन और पद्मावती के निजी क्षणों को देखने की कोशिश करता है.
अलाउद्दीन खिलजी भी पद्मावती की सुन्दरता के कारण उसे पाना चाहता है. सुन्दरता का पैमाना क्या है? क्या हर व्यक्ति सुन्दर नहीं हो सकता? क्या सुन्दरता जातीय और वर्गीय नहीं होती है? सुन्दरता की महानता को गढ़ना असुंदर या कम सुन्दर का अपमान करना भी होता है. पद्मावती को सुन्दर दिखाकर बाक़ी स्त्रियों की अवहेलना की गई है, क्योंकि फ़िल्म में सुन्दरता को पद मिल जाता है, इसलिए यहां हर स्त्री और पुरुष उसी सुन्दरता के गुण गा रहे हैं.
सुन्दरता जिसका एक पहलू गोरा होना भी है. जब तक ही संभव है जब तक आप मेहनत नहीं करते. समाज का 90 प्रतिशत जिस ज़िन्दगी को जीता है, उसमें सुन्दरता का वह पैमाना नहीं जिस पर अधिकतर स्त्री को उतारा जाता है.
फ़िल्म में अलाउद्दीन खिलजी एक क्रूर शासक एक रूप में दिखाया गया है, जो सत्ता प्राप्त कारने के लिए कुछ भी कर सकता है. क्या वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी ऐसा ही था?
फ़िल्म इस प्रश्न को दर्शक के सामने रखती है. यह बात सच है कि जब हम इतिहास या कोई भी साहित्य लिखते हैं तो उसमें अपने जातीय अहम को भूल नहीं पाते. यही कारण है कि इतिहास में प्रत्येक मुस्लिम शासक एक बुरे पात्र के रूप में चित्रित हुआ है. यही कारण है कि इतिहास अपने पुनर्लेखन की मांग करता है.
फ़िल्म युद्ध के दांव-पेच भी बताती है. युद्ध का मतलब होता है जीतना. रणभूमि में समय के साथ नियम क़ानून बदलते हैं. फ़िल्म में रत्नसेन इसी चीज़ में चूक जाता है. पद्मावती के समझाने के बाद भी वह अपने नियम क़ानून की नीति को ही लागू करता है. यह बात सिर्फ़ इतिहास जानता है कि रत्नसेन किस तरह मरा था. शायद सच उससे इतर भी हो सकता है जिस तरह दिखाया जा रहा है.
फ़िल्म में एक जगह पद्मावती राजनैतिक निर्णय लेती है. वह रत्नसेन को छुड़वाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी के कारागार तक जाती है. यहां पद्मावती की सूझबुझ को दिखाया गया है.
फ़िल्म में वह गर्व से कहती है —‘राजपूती कंगन तलवार उठाना भी जानते हैं.’ आज स्त्री अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है. यह बात फ़िल्म की काफ़ी अच्छी लगती है. लेकिन इसी फ़िल्म में वही राजपूती कंगन क्यों आत्मदाह कर लेते हैं, समझ नहीं आता. स्त्री का सम्मान क्यों हमेशा मर जाने में दिखाया जाता है.
फ़िल्म में एक संवाद है जब पद्मावती कहती है कि —‘एक युद्ध बाहर होगा एक महल के भीतर.’ लेकिन महल के भीतर का युद्ध क्यों कमज़ोर सा पड़ जाता है समझ नहीं आता.
चित्तौड़ में जितने पुरुष थे उतनी ही स्त्रियां भी थी. क्या वास्तव में एक युद्ध और नहीं लड़ा जा सकता था? यदि युद्ध नहीं ही लड़ना था तो राजपूती कंगन को इतना महिमामंडित क्यों किया गया? क्या स्त्री अपने सम्मान के लिए लड़ नहीं सकती?
रानी लक्ष्मीबाई का नाम इतिहास में अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए दर्ज है तो रानी पद्मावती का जौहर के लिए. किससे स्त्री वास्तव में सही ऊर्जा ग्रहण कर रही है यह सोचने का विषय है.
ऐसी फिल्में उसी तरह है जैसे हर रोज़ किसी बच्चे को भूत की कहानी सुनाई जाती है फिर वह उस पर विश्वास भी कर लेता है. स्त्री का सम्मान लड़कर मरने में है. वह लड़ सकती है. सिर्फ़ मरना उसकी नियति नहीं.
फ़िल्म में सबसे प्रमुख अभिनय होता है. इस फ़िल्म में अभिनय के स्तर पर कुछ कमियां लगती हैं. फ़िल्म में पद्मावती का लगातार आंखों में आंसू लेकर आना पुन: राजपूत स्त्री पर प्रश्न लगाता है.
अलाऊद्दीन खिलजी का अभिनय एक मानसिक विकृति तक पहुंच गया है. नागमती की भूमिका फ़िल्म में नगण्य है. फ़िल्म में रत्नसेन का पद्मावती को देखना और दोनों में प्यार हो जाना एक अजीब स्थिति पैदा करता है. प्रेम के लिए वहां कोई भूमिका नहीं बनती, सीधे प्यार, तुरंत शादी.
फ़िल्म में सबकुछ जैसे बहुत जल्दी-जल्दी हो जाता है. प्रेम, शादी, राघव-चेतन का घर निकाला. लगता है जैसे बहुत कुछ फ़िल्म में कहा और किया सकता था.
(आरती रानी प्रजापति जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में शोध-छात्रा हैं. आप इनसे [email protected] पर सम्पर्क कर सकते हैं.)