आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मोरना /सरधना : आज़ाद भारत में ग़ुलामी की दास्तान का एक सनसनीखेज़ मामला सामने आया है. मसला मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर के 89 दलित परिवारों को ज़बरदस्ती बंधक बनाकर एक साल तक काम कराने का है.
इन सभी को पंजाब के शहीद भगत सिंह नगर जनपद में ईंट भट्ठे पर काम कराने के बहाने ले जाया गया था, जहां इनसे न सिर्फ़ काम कराया गया. बल्कि इनको घर आने से ज़बरदस्ती रोका गया. रात में भट्टे मालिक के लोग हथियारों के साथ इनका पहरा देता थे, जिससे ये भाग न सके.
आरोप है कि एक स्थानीय ठेकेदार ने इन्हें भट्ठा मालिक को बेच दिया था. वहां गुलामी की ज़िन्दगी जी रहे मज़दूरों का यह मामला किसी तरह नेशनल कमेटी फॉर इरिडिक्शन ऑफ़ बौंडेड लेबर की जानकारी में आया. इसके बाद इन्हें पंजाब प्रशासन के माध्यम से मुक्त कराया गया.
यह सभी परिवार मुज़फ़्फ़रनगर जनपद के तिस्सा, बेहड़ा और भंडुर गांव के हैं. इसके अलावा 9 परिवार सलावा गांव का है. यह गांव मेरठ जनपद के सरधना क्षेत्र का हिस्सा है.
बंधन मुक्त होने के बाद से यह सभी परिवार अपने मज़दूरी के पैसे वापस पाने और न्याय के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. पिछले 6 महीने से उत्तर प्रदेश सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन इनके मुताबिक़ सरकार इनकी सुनने की तैयार नहीं है.
एक सप्ताह पहले जब भीम आर्मी इसमें सक्रिय हुई और इन दलितों ने सामूहिक धर्म परिवर्तन की घोषणा की तो पुलिस की नींद टूटी और इनको पंजाब ले जाकर ‘सौदा’ करने वाले मुख्य आरोपी लोकेश निवासी भोपा को शनिवार को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. वहीं अब भट्टा मालिकों के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज हो गया है.
बंधक बनाए गए मज़दुरों में से एक पिनु (25) ने हमें बताया कि पिछले साल नोटबंदी से पहले ठेकेदार लोकेश पुत्र सक्तु यहां के चार गांवों के 89 परिवार को मज़दूरी कराने के बहाना बनाकर पंजाब ले गया. वहां बजाज ईंट भट्ठे पर काम करने को कहा गया. भट्ठा मालिक से हमारी कोई मुलाक़ात नहीं होती थी. तीन महीने बाद लोकेश से पैसे मांगे तो उसने नोटबंदी की मुश्किल बताई. उसके बाद महीनों तक लोकेश हमारे पास नहीं आया. वो फोन पर कहता रहा कि आपका पैसा इकठ्ठा हो रहा है.
वो आगे बताता है कि, भट्ठा मालिक के लोग 15 दिन बाद आटा और चावल देते थे. हमसे ज़बरदस्ती काम कराया जा रहा था. एक दिन भट्ठा मालिक विवेक आया तो उसने बताया कि उनके 40 लाख रुपए वो दे चुका है और वो एक साल तक काम छोड़कर कहीं नहीं जा सकते. उसके बाद इनके लठैत हमारा पहरा देने लगे.
पिनु का कहना है कि, किसी भी मज़दुर को उसकी मज़दूरी नहीं मिली. दिल्ली की एक संस्था ने हमारी लड़ाई लड़ी और हमें आज़ादी मिली.
तिस्सा गांव के अनुज कुमार (34) के मुताबिक़, 9 महीने की गुलामी के बाद हम लोग अपने घर तो वापस आ गए, मगर हमने रात-दिन काम किया और पीड़ा झेली जिसपर ना हमें हमारा पैसा मिला और ना ही ठेकेदार और भट्ठा मालिक को सज़ा मिली. इसके बाद यहां समाज की पंचायत हुई और सरकारी दफ्तरों की कुंडी खड़काई गई. मगर हमारी सुनवाई नहीं हुई.
वो कहते हैं, वहां बच्चे बीमार हो जाते तो डॉक्टर को नहीं दिखा पाते थे. थोड़े से ज्यादा पैसे मज़दूरी के मिल रहे थे, इस लालच में चले गए और फंस गए.
गौरतलब रहे कि 25 जुलाई 2017 के बाद से ये लोग लगातार यहां के सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे, मगर कहीं सुनवाई नहीं हुई. पिछले महीने स्थानीय भीम आर्मी इकाई ने इस प्रकरण में दख़ल दी और इन दलितों ने धर्म परिवर्तन का ऐलान कर दिया. इसके बाद प्रशासन ने हरकत दिखाई और लगातार दबिश देकर लोकेश को हिरासत में लिया.
भीम आर्मी कार्यकर्ता कुलदीप कहते हैं, आज़ाद भारत में यह गुलामी की दर्दनाक दास्तां की कहानी है, जहां गरीब आदमी पैसे वालों की पैरों का फुटबाल बन गया है. कमाल की बात यह है कि इतना उत्पीड़न और अत्याचार सहने के बाद भी इन दलितों की कोई सुनवाई नहीं हुई. किसी अफ़सर को इनसे सहानभूति पैदा नहीं हुई. भीम आर्मी जल्दी ही ईंट भट्ठों का दौरा कर मज़दूरों से बात करेगी और अगर किसी के साथ कोई अन्याय हो रहा है तो उनकी भी लड़ाई लड़ेगी.