TwoCircles.net News Desk
अलीगढ़ : ‘सुबह तक़रीबन 9 बजे एक बड़ा जुलूस भगवा झंडे के साथ जय श्रीराम के नारे लगते हुए शहर में घूम रहा था. इस तरह का जुलूस हमने पहले कभी 26 जनवरी को नहीं देखा था.’
ये बातें अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरो मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए नौशाद अमहद की हैं. नौशाद की उम्र लगभग 32 साल है. ये मज़दूरी करने वाले ग़रीब परिवार से आते हैं और बाज़ार के एक दुकान में काम करते हैं.
नौशाद कहते हैं कि, जब दुकान पर पहुंचे तो दुकान बंद थी, इसलिए वे वापस अपने घर की तरफ़ लौटने लगे. वे अपने घर की तरफ़ लौट ही रहे थे कि उन्हें रास्ते में पुलिस दिखाई दी. वे अपने घर की तरफ़ बढ़ रहे थे, लेकिन तभी पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी.
नौशाद के मुताबिक़ पुलिस बिल्कुल सामने से फायरिंग कर रही थी. इसी फायरिंग में एक गोली उनके दाएं पैर में जाँघों को पार करते हुए निकल गई.
नौशाद के भाई दिलशाद बताते हैं कि हमीद चौक के पास मुसलमानों ने ध्वजारोहण का प्रोग्राम रखा था, लेकिन सुबह तक़रीबन 9 बजे के आसपास भगवा झंडे के साथ 70-75 बाइक पर लोग आएं और भगवा झंडे लहराने लगे. साथ में पाकिस्तान मुर्दाबाद, वन्दे मातरम गाने के लिए ज़बरदस्ती करने लगे.
इस पर वहां मौजूद लोगों ने थाने पर इसकी सूचना दी, लेकिन उन लोगों ने मुसलमानों को गालियां देनी शुरू कर दीं और मारपीट पर उतारू हो गए. जब वे लोग मारपीट करने लगे तो लोगों ने उन्हें खदेड़ लिया. इस पर वे लोग अपनी गाड़ियां छोड़कर भागने लगे. थोड़ी देर में वहां पुलिस भी आ गई.
दिलशाद आगे बताते हैं कि, इसके लगभग एक घंटे बाद उन लोगों ने वापस और अधिक संख्या में इकट्ठा होकर वापस के घरों के पास नारेबाज़ी और हमला शुरू कर दिया. इसके बाद कुछ लोगों ने मुसलमानों के घरों में भी घुसने की कोशिश की और पुलिस मूकदर्शक बनी रही. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी और इतना होने के बाद भी धारा-144 या अलर्ट जारी नहीं किया.
वहीं नौशाद कहते हैं कि इसमें एटा के सांसद राजवीर सिंह उर्फ़ राजू ने पुलिस को न सिर्फ़ इस्तेमाल किया, बल्कि उन्हीं के संरक्षण में सांप्रदायिक हिंसा भी शुरू हुई.
नौशाद के मुताबिक़ कासगंज में 1990 के बाद से कभी कोई साम्प्रदायिक हिंसा नहीं हुई. इस बार घटना का कोई तात्कालिक कारण नहीं था, बल्कि जान-बूझ कर हिंसा फैलाई गई. इसमें पुलिस प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है. आज की घटनाएं इन आरोपों की पुष्टि करती हैं कि पुलिस ने समय रहते कार्यवाही नहीं की, इसके उलट उन्हीं लोगों का साथ दिया जो हिंसा के आरोपी हैं.
उनका कहना है कि सच अब निष्पक्ष जांच से ही सामने आएगा, लेकिन इतना तो तय है कि पुलिस प्रशासन ने जान-बूझ कर सांप्रदायिक तत्वों को खुलेआम हिंसा करने की ढील दी.
बता दें कि इस साम्प्रदायिक हिंसा में मोहम्मद अकरम जो लखीमपुर से अलीगढ़ आ रहे थे, उन पर साम्प्रदायिक तत्वों ने हमला किया जिसमें उनकी दाई आंख में लगी चोट लगने से रोशनी चली गई है.