TwoCircles.net News Desk
पटना : ‘केरल के चाय बगान उद्योग में अब तमिल श्रमिकों की जगह झारखंड से गए श्रमिकों की संख्या बढ़ी है. वहां श्रमिकों की पहचान क्षेत्रीय के साथ–साथ भाषायी, जातीय इत्यादि रूपों में भी है. आमतौर पर श्रमिकों में मुख्यतः दलित और पिछड़ी जाति के लोग ही शामिल हैं.’
ये बातें डॉ. जयसीलन राज ने केरल के चाय बगान उद्योग के बारे में आज जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना और टाटा इंस्चीयूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पलायन व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए रखी.
उन्होंने कहा कि प्लांटेशन श्रमिकों की पहचान की कई श्रेणियां हैं. यह पहचान जाति, क्षेत्र, लिंग और धर्म से निर्धारित होती है. माईग्रेशन के आर्थिक पहलू के साथ सामाजिक कारण भी होते हैं. माईग्रेशन के बाद जातीय पहचान कम और वर्गीय पहचान ज्यादा हो जाती है. उत्पादन में वर्गीय पहचान मज़बूत होती है.
सभा की अध्यक्षता प्रो. अशोक अंशुमान ने की और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. पुष्पेन्द्र ने किया. संस्थान के निदेशक ने विषय–प्रवेश कराया. इस अवसर पर अमरकांत, मिथिलेश, ममीत प्रकाश, नीरज, राकेश श्रीवास्तव सहित कई बुद्धिजीवी मौजूद थे.