आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
मौजूदा दौर में मानव मल को अपने हाथो से साफ करने वाली महिलाओ के लिए आज कल शर्मनाक हालात है. इसे मजबूरी कहे या फिर समाज में बनायीं हुई व्यवस्था, आज भी बहुत से लोग मानव मल साफ कर रहे हैं. समाज में अलग थलग ये वर्ग कहने को तो दलित समुदाय में आता हैं लेकिन इनकी हालत बदतर होती जा रही हैं. कहने को तो कानूनी रूप से इसको ख़त्म कर दिया गया हैं लेकिन ये पेशा आज भी जारी हैं. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के माध्यम से प्रकाशित एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में मैला उठाने की आधे से ज्यादा आबादी सिर्फ उत्तर प्रदेश में है.सर्वे में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में 28796 लोग आज भी मैला उठाते वाल्मीकि समुदाय में सामाजिक गतिविधि में सक्रिय एड़वोकेट मनोज सौदाई के अनुसार इसके अलावा लगभग दो गुनी संख्या वो है जो पंजीकरण कराने ही नही गई. ये आंकड़े सिर्फ घरों से मैला (मानव मल) उठाने वालों के है.
ऐसे पेशे में लगे लोगो के घर और मोहल्ले अलग होते हैं, लोग उनके यहाँ जाने और खाने पीने से परहेज़ करते और इनके बच्चे इसी दंश को झेल रहे हैं. एक नज़र ऐसे समाज के रहन सहन पर जो अभी भी मुख्यधारा से कटे हुए हैं.
भारत की राजधानी दिल्ली से 165 किलोमीटर दूर मुज़फ्फरनगर में एक गली में घूमते सुअर, गंदी बस्ती और बदबूदार मौहल्लो से वाल्मीकि समाज के इलाके की पहचान हो जाती हैं.
मुजफ्फरनगर के मीरापुर के पड़ाव चौक से पूर्व की और जैसे ही सड़क पार करते है तो बदबू नाक सिकोड़ने को मजबूर कर देती है,गली में गंदगी सुवर के दड़बे और कूड़ा करकट वाला यह मोहल्ला उन लोगों का है जो दूसरों की गंदगी साफ करते है. मीरापुर की वाल्मीकि बस्ती में आधा दर्जन से अधिक महिलाये भी मैला ढोने का काम करती है कमलेश(56) कहती है “बुरा लगता है मगर और क्या करें,इसमें रोटी मिल जाती है और 10-20 रुपए भी. बहुतों ने छोड़ दिया है हमभी छोड़ना चाहते है”.
अपने मिट्टी के कच्चे घर के बाहर बैठे भूषण (71)के बेटे के एक दुर्घटना में मौत हो चुकी है और उसकी पत्नी भी मर चुकी है.भूषण कहते हैं”यहां नेता सिर्फ चुनाव में आते है वो भी हमारे ही समाज के ‘ठेकेदार उन्हें पक्का आश्वासन दे देते है हमारी बस्ती में तो उन्हें बदबू आती है मेरा हाल देख लीजिए किसी को भी हमारी परवाह नही है सब बातें किताबी होती है.”
20 साल से सर पर रखकर मैला ढ़ो रही बालेश(43) कहती है “हमे बहुत बुरा लगता है लोग हमें छोटा समझते है अगर कोई दूसरा रोजगार मिले तो हम
इसे छोड़ देंगे मैं सिलाई कर सकती हूँ,दूसरे काम भी कर लुंगी मैला उठाना बहुत बुरा लगता है 20-30 रुपए सिर्फ मिलते है”.
इस मौहल्ले में पिछले 20 साल से चिकित्सा सेवा देने वाले साकिब कुरैशी कहते है”समझ नही सकता इस समाज ने बदलाव लाने की कोशिश क्यों नही की,अगर लड़के पढ़ते भी है तो वो सफाई कर्मचारी की नौकरी से संतुष्ट हो जाते है,दुर्भाग्यपूर्ण रूप से वो हीन भावना से ग्रसित है और इसमें एक दो मामलो को छोड़कर कोई सकारात्मक बदलाव नही आया है.
चार सौ लोगो के आसपास वाली इस बस्ती में कोई स्कूल नही है और तमाम मेडिकल सुविधाएं निजी है जिसके लिए उन्हें पैसे देने पड़ते है.बस एक अच्छी बात यह है कि यहां कुछ गलियां अब बन गई है. लड़कियां यहां कम ही पढ़ती है अधिकतर 10वी के बाद पढ़ाई छोड़ देती है.सोनम(16) आठवीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ चुकी है. युवा अमित हांडा(32) कहते है, “समाज मे हीन भावना बहुत ज्यादा है और यह सामाजिक भेदभाव से पनपी है लोग हमारी जाति जानने के बाद पहले जैसे वव्यहार नही करते. ऐसा कोई नहीं है जो इसे पहचान से बाहर नही निकलना चाहता है बुरा बर्ताव स्कूल में भी होता है.कुछ खास बच्चे हमसे दोस्ती भी नही करते. हम एक मुश्किल पहचान के साथ जी रहे है. हम भी कोढ़ में खाज यह है समाज के अधिकतर पुरुष काम नहीं करते.”
नाम न छापने के भरोसे पर एक महिला बताती हैं.ज्यादातर लोग अनपढ़ है और शराब पीते है उनकी औरते काम करती है अब आमदनी का अंदाजा आप लगा सकते है अब बाकी सुविधाएं की बात छोड़िये लोग हमें इंसान समझ ले यह सबसे महत्वपूर्ण बात है।हम भी एक बेहतर जिंदगी जीना चाहते है.शीला कहती है सारी जिंदगी हो गए गु में धँसते हुए अब तो इससे मुक्ति मिल जानी चाहिए।
शीला (54) विजनेश(65) दोनों अभी भी मैला ढोने का काम करती है और इस गंदगी को छोड़ना चाहती है.शीला कहती है सारी जिंदगी हो गए गु में धँसते हुए अब तो इससे मुक्ति मिल जानी चाहिए।
पिछले दिनों वाल्मीकि नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री लाल जी निर्मल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और मैला ढोना छोड़ने वालों के परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी देने की बात कही लाल जी निर्मल के मीडिया में दिए गए बयान के मुताबिक मुख्यमंत्री ने ऐसा करने का भरोसा दिलाया. वाल्मीकियों के स्थानीय नेता सुनील चंचल कहते हैं”समाज मे असमानता बहुत अधिक है एक परिवार के तो चार लोग नौकरी कर रहे हैं जबकि दूसरे में रोटी के भी लाले है सभी का ख्याल रखा जाना चाहिए.”
पूर्व सभासद सुनील भारती कहते है “बेरोजगारी इन्हें यह सब करने के लिए मजबूर कर रही है इन्हें रोजगार दिया जाए अथवा अपना अपना कारोबार करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए उम्मीद है सरकार इसपर ध्यान देगी।”